सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जासूसी कांड में निर्दोष साबित हुए इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को बड़ी राहत देते हुए 50 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया है। नारायणन की याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने अपने फैसले में कहा, “इसरो जासूस कांड में नंबी नारायणन की गिरफ्तारी अनावश्यक और गैरजरूरी थी। कोर्ट उन्हें 50 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश देती है।” कोर्ट के फैसले के बाद नारायणन ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मैंने अभी आदेश नहीं देखा है। मुझे सिर्फ इतना पता है कि 50 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर मिलेंगे और एक न्यायिक जांच होगी।”
सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व वैज्ञानिक को बेवजह गिरफ्तार कर परेशान करने और मानसिक प्रताड़ना देने के मामले में केरल पुलिस के अधिकारियों की भूमिका की जांच के भी आदेश दिए हैं। कोर्ट ने इसके लिए एक तीन सदस्यीय न्यायिक कमेटी का गठन किया है, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज डीके जैन करेंगे और इसके अन्य दो सदस्यों की नियुक्ति केंद्र और केरल सरकार करेगी। नारायणन ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका केरल हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि केरल के पूर्व डीजीपी सिबी मैथ्यू और दो सेवानिवृत्त पुलिस अधीक्षक, के के जोशुआ और एस विजयन के खिलाफ किसी कार्रवाई की जरूरत नहीं है। लेकिन इन दोनों को ही सीबीआई ने वैज्ञानिक नारायणन की अवैध गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार ठहराया था। जबकि सिबी मैथ्यू ने ही इस कथित जासूसी कांड की जांच की थी।
गौरतलब है कि 1994 में भारत के अंतरिक्ष अभियान के तहत इसरो क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन पर काम कर रहा था और वह उसमें सफलता के बेहद करीब था। लेकिन उसी समय उसकी यह तकनीक लीक होने की खबर उड़ गई, जिसपर केरल पुलिस ने एसआइटी जांच शुरू कर दी। इसी जांच के दौरान पुलिस ने इसरो के क्रायोजेनिक इंजन विभाग के प्रमुख नंबी नारायणन को गिरफ्तार कर लिया। केरल पुलिस ने दावा किया था कि नारायणन ने अनुसंधान से संबंधित कुछ गुप्त दस्तावेज पाकिस्तान को दिए थे। लेकिन बाद में हुई सीबीआई जांच में ये आरोप झूठे साबित हुए।
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इसके बावजूद इस मामले में दोबारा जांच के आदेश दे दिए गए। लेकिन 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को रद्द करते हुए नंबी नाराणन को निर्दोष करार दिया था। साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को नारायणन और मामले में निर्दोष साबित हुए अन्य को एक-एक लाख रुपये मुआवजा देने का भी आदेश दिया था। इसके बाद नारायणन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाकर खुद को मानसिक पीड़ा और प्रताड़ना देने के लिए राज्य सरकार से मुआवजा मांगा था। आयोग ने भी नारायणन की मांग को जायज मानते हुए 2001 में राज्य सरकार को उन्हें दस लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। हालांकि इस फैसले से भी नाखुश नंबी नारायणन ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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