केंद्रीय कानून और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आधार के बारे में निजता के हनन की चिंताओं को भले ही सिरे से खारिज कर दिया हो, लेकिन हकीकत यही है कि करोड़ों भारतीय नागरिकों का डाटा बिना उनकी जानकारी और मंजूरी के इस्तेमाल हो रहा है। लोगों को बिना बताए या जानकारी दिए उनके बैंक खाते खोले जा रहे हैं और लोगों की सब्सिडी का पैसा उसमें जा रहा है। यह राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ा घोटाला हो सकता है। अपुष्ट खबरों के मुताबिक अब तक करीब 47 करोड़ रुपये की सब्सिडी अज्ञात खातों में जमा हो चुकी है।
इस बीच आम लोगों पर जबरदस्त दबाव बनाया जा रहा है कि वे 31 दिंसबर से पहले अपने बैंक खाते और 8 फरवरी से पहले अपने मोबाइल नंबर को आधार से जोड़ लें। लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से संकेत है कि इन सेवाओं को आधार से जोड़ने की समयसीमा 31 मार्च 2018 तक बढ़ाई जा सकती है। आधार के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल करने वाला समूह इस सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम सुनवाई के लिए अपील करने वाला है। इस समूह में जस्टिस के एस पुत्तुस्वामी, अरुणा राय, बेजवादा विल्सन जैसे लोग शामिल हैं।
इस दौरान तमाम कंपनियों का लोगों पर दबाव बनाने का सिलसिला जारी है कि वे आधार नंबर लें और इन सेवाओँ को उससे जोड़ें। अभी आधार से मोबाइल नंबर जोड़ने की वजह से ग्राहकों को बिना बताए 47 करोड़ रुपये की रसोई गैस की सब्सिडी के एयरटेल पेमेंट बैंक खाते में जमा होने का मामला सामने आया है।
इस बारे में आधार को जनविरोधी और निजता विरोधी होने का खुलासा करने वाली न्यायविद् उषा रमानाथन ने नवजीवन को बताया कि आधार के बहाने आम जनता से जुड़ी तमाम जानकारी को कंपनियों को बिजनेस बढ़ाने के लिए दिया जा रहा है। नागरिकों को बिना बताए, बिना उनकी मंजूरी लिए खाते खोल दिए गए और उसमें सब्सिडी के पैसे डाल दिए गए। एयरटेल द्वारा मोबाइल सेवाएं लेने वालों से बिना उनकी मंजूरी या जानकारी के बैंक खाता खोलना यह दर्शाता है कि यह पूरी प्रक्रिया में ही खामियां हैं। आधार विरोधी समूह का कहना है कि यह कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं है, बल्कि निजी क्षेत्र का कारोबार बढ़ाने के लिए लोगों का डाटा, उनकी सारी जानकारी को बेचने का मामला है।
गौरतलब है कि कई मोबाइल कंपनियों ने अपने पेमेंट बैंक भी खोल रखे हैं और एयटेल ने भी ऐसा ही किया है। रिलायंस जियो ने यह व्यवस्था स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के साथ की है, तो वोडाफोन के पेमेंट बैंक का नाम एमपैसा है। लेकिन मोबाइल कंपनियां ग्राहकों का अपने पेमेंट बैंक में खाता खोलने से पहले उपभोक्ताओं को जानकारी नहीं देते और न ही घोषित तौर पर उनकी मंजूरी लेते हैं।
जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक एयरटेल मोबाइल नंबर को आधार से जोड़ने वाले ग्राहकों की करीब 47 करोड़ रुपये की रसोई गैस सब्सिडी बिना उनकी सूचना के और बिना उनकी सहमति के खोले गए एयरटेल पेमेंट बैंक में जमा करा दी गई। इस बात का खुलासा तब हुआ, जब करोड़ों लोगों को सब्सिडी नहीं मिली। इस पर आधार जारी करने वाली एजेंसी यूआईडीईएआई ने एयरटेल को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है।
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लोगों की बिना सहमति के उनके आधार से बिना उनकी मर्जी से खाते खोलने का ऐसा ही मामला शैलजा (पहचान छिपाने के लिए रखा गया नाम) के साथ हुआ। उन्होंने बताया कि, “ मैंने सरकार और कंपनी के तमाम दबाव के बाद अपने मोबाइल नंबर को आधार से जोड़ दिया। कुछ दिन बाद मेरे पास एसएमएस आया कि मैं अपना एमपैसा बैंक खाते का पासवर्ड किसी के साथ न शेयर करूं। मैं तो हैरान रह गई कि मैंने तो ऐसा कोई खाता खोला ही नहीं। फिर मैं वोडाफोन के दफ्तर गई और पूछा कि बिना मेरी मंजूरी के खाता कैसे खुला, तो उन्होंने कहा कि आधार नंबर देने के साथ ही खुल जाता है और अगर मुझे नहीं चाहिए तो मैं इसे बंद करने के लिए चिट्ठी लिखूं। मैंने इस पर आपत्ति की औऱ कहा कि जब बिना मेरा केवाईसी और बाकी जानकारी और सहमति लिए खाता खोल दिया है, तो इसे बंद करना उनका काम है। क्योंकि उन्होंने गैर-कानूनी काम किया है। इसके बाद मेरा वह गैरकानूनी ढंग से खुला खाता बंद हुआ।“
अब बड़ा सवाल है कि ऐसा कितने लोग समझ रहे हैं और कितने लोगों को पता ही नहीं चल पा रहा है कि बिना उनकी सहमति के खाता खुल गया है। दरअसल सब्सिडी के लिए जो प्रक्रिया सरकार ने तय की है उसके मुताबिक जैसे ही देश में कोई व्यक्ति अपने मोबाइल को या बैंक को आधार से जोड़ता है, तो उसका वह बैंक खाता ही नेशनल पेमेंट कार्पोरेशन ऑफ इंडिया (जो एक निजी कंपनी है) के जरिए उसके यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) में दर्ज हो जाता है। इस यूपीआई के जरिए ही देश भर में तमाम सब्सिडी लोगों के बैंक खाते में डाली जाती है। इसमें यह प्रावधान है कि जो आखिरी बैंक खाता इस इंटरफेस में दर्ज होता है, उसी में सब्सिडी जाती है। अब चूंकि मोबाइल नंबर के साथ एयरटेल ने बैंक खाता भी खोल दिया, लिहाजा यूपीआई ने यही नंबर ले लिया। इसी पर सब्सिडी भी गई।
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