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देश की विदेश और रक्षा मंत्री महिला, लेकिन लैंगिक समानता के मामले में भारत चला गया 21 स्थान पीछे  

विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी वैश्विक लैंगिक असमानता इंडेक्स 2017 में भारत 21 स्थान नीचे पहुंच गया। अब कुल 144 देशों में अब भारत 108वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2016 में इसका स्थान 87वां था।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

2 नवम्बर को दो खबरें एक साथ आईं। पहली खबर थी कि फोर्ब्स द्वारा जारी विश्व की 100 शक्तिशाली महिलाओं में पांच भारतीय हैं। दूसरी खबर यह थी कि विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी वैश्विक लैंगिक असमानता इंडेक्स 2017 में भारत 21 स्थान नीचे पहुंच गया। अब कुल 144 देशों में अब भारत 108वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2016 में इसका स्थान 87वां था। दोनों खबरों को पढ़ने के बाद आर्थिक असमानता की गहराई समझ में आती है। अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई स्त्री और पुरूष के बीच भी दूरी बढ़ा रही है। अर्थव्यवस्था में सबसे ऊपर स्थापित लोग शक्तिशाली हो रहे हैं, जबकि मध्यम और निम्न वर्ग लगातार अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

निचले स्तर की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी तो है, पर उनकी आमदनी नगण्य है। वेतन के मामले में मध्यम और निचले स्तर पर महिलायें पुरूषों से बहुत पीछे हैं। लगभग 66 प्रतिशत महिलायें बिना वेतन के काम करती हैं। घरेलू कामकाज, परिवार की देखभाल, खेतों में काम, आवश्यकतानुसार पानी, जलावन और मवेशियों के लिए चारा और मवेशियों की देखभाल जैसे कई काम हैं जो महिलायें लगातार करती हैं, पर कोई वेतन नहीं मिलता। एक ही काम महिला और पुरूष दोनों करते हैं, पर श्रमिक महिलाओं को उस काम काअपेक्षाकृत कम वेतन मिलता है। ऐसी करोड़ों महिलायें निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में संलग्न हैं जो इसका सामना कर रही हैं।

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राजनीतिक सशक्तिकरण में एक तरफ तो विदेश और रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालय महिलाओं के पास हैं, पर तथ्य यह है कि वर्ष 2016 तक हम इस संदर्भ में 9वें स्थान पर थे और 2017 में गिरकर 15वें स्थान पर पहुंच गये।

भारत के लिए शर्मनाक तथ्य यह है कि उसका स्थान 144 देशों में 108वां है, जबकि बांग्लादेश 46वें, म्यांमार 83वें, चीन 100वें और मालदीव 104वें स्थान पर है। 109वें स्थान पर श्रीलंका और 111वें स्थान पर नेपाल है। यह रिपोर्ट आर्थिक सहभागिता और अवसर, शिक्षा के अवसर, स्वास्थ्य और राजनीतिक सशक्तिकरण जैसे बिंदुओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है। केवल राजनीतिक सशक्तिकरण के सदंर्भ में हम 15वें स्थान पर हैं, जबकि स्वास्थ्य के संदर्भ में 141वें, आर्थिक सहभागिता और अवसर में 139वें और शिक्षा के अवसर के संदर्भ में हमारा स्थान 112वां है।

विश्व आर्थिक मंच की संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष क्लाउस श्वाब ने अपनी प्रस्तावना में लिखा है, “विकास और प्रतिस्पर्धा के लिए प्रतिभा सबसे आवश्यक है। भविष्य के गतिमान और समन्वित अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए हमें यह ध्यान रखना होगा कि सबको समान अवसर मिले। इसमें यदि महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता है, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रतिभा, योग्यता, नये सोच और ज्ञान की हानि होती है।”

वैश्विक लैंगिक असमानता रिपोर्ट 2017 के अनुसार विश्व के संदर्भ में लैंगिक असमानता को 68 प्रतिशत तक कम कर लिया गया है। सबसे अधिक असमानता आर्थिक सहभागिता और राजनैतिक सशक्तिकरण के संदर्भ में है। वर्ष 2016 की तुलना में कुल 60 देश ऐसे हैं, जिसमें हमारा देश भी शामिल है, जिनके स्थान में गिरावट आई है। दक्षिण एशिया के देशों में लैंगिक असमानता 34 प्रतिशत है, जिसे पाटने में लगभग 62 वर्षों का समय लगेगा।

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फोटो: IANS
राजनीतिक सशक्तिकरण में एक तरफ तो विदेश और रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालय महिलाओं के पास हैं, पर तथ्य यह है कि वर्ष 2016 तक हम इस संदर्भ में 9वें स्थान पर थे और 2017 में गिरकर 15वें स्थान पर पहुंच गये।

रिपोर्ट के अनुसार भारत को राजनैतिक सशक्तिकरण, स्वास्थ्य और शिक्षा पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है। स्वास्थ्य के मामले में तो हम 144 देशों में 141वें स्थान पर हैं, जबकि आर्थिक सहभागिता में 139वें स्थान पर। राजनीतिक सशक्तिकरण में एक तरफ तो विदेश और रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालय महिलाओं के पास हैं, पर तथ्य यह है कि वर्ष 2016 तक हम इस संदर्भ में 9वें स्थान पर थे और 2017 में गिरकर 15वें स्थान पर पहुंच गये।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) हर वर्ष मानव विकास सूचकांक प्रकाशित करता है, जिसमें लैंगिक असमानता को शामिल किया गया है। वर्ष 2016 की रिपोर्ट में कुल 159 देशों में लैंगिक असमानता के संदर्भ में हम 125 वें स्थान पर थे। रिपोर्ट में मानव विकास सूचकांक में भारत का इंडेक्स 0.624 था, पर जब इसमें लैंगिक असमानता को भी शामिल कर लिया गया तब इंडेक्स गिरकर 0.455 तक पहुंच गया।

इतना तो स्पष्ट है कि हमारे देश में लैंगिक असमानता बहुत है और आर्थिक असमानता जिस तेजी से समाज में बढ़ रही है, उससे इस असमानता को पाट पाना कठिन होगा। फिलहाल तो सरकारें इस बारे में बात भी नहीं करतीं। ऐसे में बिना समस्या को समझे इसका समाधान नामुमकिन लगता है।

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