वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत में भले ही हम बहुत सारे देशों से पीछे हों पर प्लास्टिक कचरे के अनियंत्रित उत्पादन और इसे खुले में जलाने के सन्दर्भ में दुनिया में पहले स्थान पर हैं। हाल में ही यूनाइटेड किंगडम की लीड्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक दल ने आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की मदद से वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक कचरे के अनियंत्रित उत्पादन और इसे खुले में जलाने से संबंधित विस्तृत अध्ययन किया है, और “नेचर” नामक जर्नल में प्रकाशित किया है। अनियंत्रित या अनियोजित उत्पादन का मतलब ऐसे कचरे है से है जिसका कोई प्रबंधन नहीं किया जाता, इसे एकत्रित नहीं किया जाता और खुले में फेंक दिया जाता है या जला दिया जाता है।
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इस अध्ययन के अनुसार वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर 5.2 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ। यदि इस कचरे को एक सीधी रेखा में रखा जाए तो पूरी पृथ्वी को इससे 1500 बार ढका जा सकता है। इस पूरे प्लास्टिक कचरे में से लगभग दो-तिहाई कचरा अनियंत्रित है, लगभग 57 प्रतिशत यानि 3 करोड़ मीट्रिक टन कचरा खुले में जला दिया जाता है। प्लास्टिक को खुले में जलाने पर इससे जहरीली गैसें उत्पन्न होती है, इन गैसों के संपर्क में लम्बे समय तक रहने वालों में न्यूरोलॉजिकल समस्याएं, प्रजनन में समस्याएं और फेफड़े की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इन गैसों का असर माँ के गर्भ में पलने वाले शिशु पर भी पड़ता है।
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दुनिया में कुल आबादी में से 15 प्रतिशत यानि 1.2 अरब आबादी के पास कचरा एकत्र कर सुरक्षित निपटान की सुविधा नहीं है। अनियंत्रित प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करने में सबसे आगे यही आबादी है। देशों के सन्दर्भ में सबसे अधिक अनियंत्रित प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करने वाला देश भारत है, जहां दुनिया के कुल कचरे का लगभग 20 प्रतिशत यानि 93 लाख मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है। इस सन्दर्भ में सही मायने में “विश्वगुरु” भारत के दबदबे का अंदाज इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दूसरे स्थान पर नाइजीरिया भारत की तुलना में लगभग एक-तिहाई यानि 35 लाख मीट्रिक टन कचरा ही उत्पन्न करता है। तीसरे स्थान पर 34 लाख मीट्रिक टन के साथ इंडोनेशिया और चौथे स्थान पर 28 लाख मीट्रिक टन के साथ चीन है। इस इंडेक्स में अमेरिका 90वें स्थान पर और यूनाइटेड किंगडम 135वें स्थान पर है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीने के साफ़ पानी और स्वच्छता की तरह ही कचरे का उचित प्रबंधन को भी समाज की बुनियादी आवश्यकता की तरह देखा जाना चाहिए। दुनिया के गरीब और मध्यम आय वाले देशों में भले ही प्लास्टिक का प्रति व्यक्ति उपभोग अमीर देशों की तुलना में बहुत कम हो, पर इन्हीं गरीब देशों का वैश्विक स्तर पर अनियंत्रित प्लास्टिक प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान है।
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मिन्देरू फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित, प्लास्टिक वेस्ट मेकर्स इंडेक्स 2023, के अनुसार प्लास्टिक कचरे को नियंत्रित करने और प्लास्टिक का उत्पादन बंद या कम करने पर विश्वव्यापी चर्चा के बीच एक बार उपयोग किये जाने वाले प्लास्टिक का उत्पादन और उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2019 में जितना सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन किया गया था, वर्ष 2021 में उससे 60 लाख मीट्रिक टन अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया गया था। प्लास्टिक के रीसाइक्लिंग के तमाम दावों के बाद भी, हालत यह है कि बाजार में मौजूद रीसाइक्लिंग से बने प्लास्टिक की तुलना में पेट्रोलियम पदार्थों से उत्पन्न नए प्लास्टिक की मात्रा 15 गुना अधिक है। प्लास्टिक रीसाइक्लिंग एक सीमान्त उद्योग हो चला है और पेट्रोलियम कम्पनियां नए प्लास्टिक उत्पादन को खूब बढ़ावा दे रही हैं। प्लास्टिक केवल कचरे के तौर पर ही पर्यावरण या जीवन के लिए खतरनाक नहीं है, बल्कि यह तापमान बृद्धि का भी एक बड़ा स्त्रोत है। प्लास्टिक उद्योग से प्रतिवर्ष 45 करोड़ टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, यह उत्सर्जन बहुत सारे देशों के कुल उत्सर्जन से भी अधिक है।
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इस रिपोर्ट में दुनिया के 20 पेट्रोलियम उद्योगों की चर्चा की गयी है, जो प्लास्टिक बनाने वाले रसायनों/पॉलीमर का बड़े पैमाने पर उत्पादन करते हैं। इस सूचि में भारत के रिलायंस इंडस्ट्रीज का नाम 8वें स्थान पर है। इन उद्योगों द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में रिलायंस 10वें स्थान पर है। इससे इतना तो स्पष्ट है कि मुकेश अंबानी केवल आर्थिक असमानता ही नहीं पैदा कर रहे हैं, बल्कि प्लास्टिक कचरा और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के मुख्य स्त्रोत भी हैं।
इन सबके बाद भी सरकारी तंत्र प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को प्लास्टिक प्रदूषण ख़त्म करने वाला मसीहा साबित करने में जुटा है। प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो की 13 अगस्त 2021 की एक विज्ञप्ति के अनुसार, “प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2022 तक एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के आह्वान के अनुरूप, भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्थलीय एवं जलीय इकोसिस्टम पर बिखरे हुए प्लास्टिक के कचरे के प्रतिकूल प्रभावों को ध्यान में रखते हुए प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित कर दिया है। यह नियम वर्ष 2022 तक कम उपयोगिता और कचरे के रूप में बिखरने की अधिक क्षमता रखने वाली एकल उपयोग की प्लास्टिक वस्तुओं को प्रतिबंधित करता है। एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं की वजह से होने वाला प्रदूषण सभी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौती बन गया है। भारत एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के कचरे से होने वाले प्रदूषण को कम करने की दिशा में कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। वर्ष 2019 में आयोजित चौथे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में, वैश्विक समुदाय के सामने एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों के प्रदूषण से जुड़े बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित करने की तत्काल जरूरत को स्वीकार करते हुए भारत ने इस प्रदूषण से निपटने से संबंधित एक प्रस्ताव पेश किया था। यूएनईए-4 में इस प्रस्ताव को स्वीकार किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम था।”
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इस विज्ञप्ति में आगे कहा गया था, “1 जुलाई, 2022 से पॉलीस्टीरीन और विस्तारित पॉलीस्टीरीन समेत एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग को प्रतिबंधित किया जाएगा, जिसमें प्लास्टिक की छड़ियों से लैस ईयर बड्स, गुब्बारों के लिए प्लास्टिक की छड़ियां, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी की छड़ियां, आइसक्रीम की छड़ियां, सजावट के लिए पॉलीस्टीरीन (थर्मोकोल) शामिल हैं। प्लेट, कप, गिलास, कांटे, चम्मच, चाकू, स्ट्रॉ, ट्रे जैसी कटलरी, मिठाई के डिब्बों के चारों ओर लपेटी जाने या पैकिंग करने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड और सिगरेट के पैकेट, 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक या पीवीसी बैनर, स्टिरर भी इसमें शामिल हैं। हल्के वजन वाले प्लास्टिक कैरी बैग की वजह से फैलने वाले कचरे को रोकने के लिए 30 सितंबर, 2021 से प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन और 31 दिसंबर, 2022 से 120 माइक्रोन कर दी गई है। मोटाई में इस वृद्धि के कारण प्लास्टिक कैरी का दोबारा उपयोग भी संभव होगा।”
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प्रधानमंत्री के नाम से शुरू होने वाले इस प्रेस विज्ञप्ति में जितने भी दावे किये गए हैं, उनमें से आज तक एक भी पूरा नहीं हुआ है और ना तो पूरी होने की भविष्य में कोई उम्मीद है। हरेक तरह का प्लास्टिक बाजार में उपलब्ध है, थर्मोकोल के बर्तनों का धडल्ले से उपयोग किया जा रहा है– जाहिर है ये सारे उत्पाद कचरा बनकर पर्यावरण में मिल रहे हैं और हम कचरे के शिखर पर विराजमान हैं।
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संदर्भ:
Costas Velis, A local-to-global emissions inventory of macroplastic pollution, Nature (2024). DOI: 10.1038/s41586-024-07758-6. www.nature.com/articles/ s41586- 024-07758-6
Charles D & Kimman L 2023, Plastic Waste Makers Index 2023, Minderoo Foundation. https://cdn.minderoo.org/content/uploads/2023/02/04205527/Plastic-Waste-Makers-Index-2023.pdf
https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1745538
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