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कितने सही हैं देश में कोरोना केस और मौतों के आंकड़े ! डॉक्टर और विशेषज्ञों के सवालों के नहीं सरकार के पास जवाब

यह भी तथ्य है कि देश के तमाम गांवों में टेस्ट की कोई सुविधा ही नहीं है, तो क्या वहां कोई कोरोना से संक्रमित नहीं होगा? यह वह सवाल है जिसे बहुत से एपिडेमिओलॉजिस्ट्स उठा रहे हैं ताकि सरकार इस पर ध्यान दे।

फोटो: IANS
फोटो: IANS 

कोरोना वायरस से संक्रमित देशों में भारत तीसरे नंबर पर है और बीते पांच महीने के दौरान देश में 11 लाख से ज्यादा मामले और 27,503 मौतें इस वायरस के कारण हुई हैं। कोरोना संक्रमण के मामले में अमेरिका नंबर एक पर है जहां 35.5 लाख लोग इस वायरस से संक्रमित हैं और 1.37 लाख लोगों की जान जा चुकी है, वहीं ब्राजील दूसरे नंबर पर है, जहां 20.46 लाख लोग संक्रमित हैं और आंकड़ों के मुताबिक 77,851 लोगों की मौत हुई है।

इन आंकड़ों को देखने के बाद लगता है कि भारत ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम अच्छे से की है क्योंकि यहां मौत का आंकड़ा काफी कम है। लेकिन यह एक भ्रम है क्योंकि भारत में कोरोना से होने वाली सभी मौतों को रिकॉर्ड में शामिल ही नहीं किया जा रहा है। कुछ राज्यों में तो कोरोना से होने वाली मौतों को रिकॉर्ड ही नहीं किया जा रहा है वहीं कुछ राज्यों में कोरोना मौतों को दूसरी बीमारियों से होने वाली मौत के रूप में दर्ज किया जा रहा है। इन बीमारियों में क्रोनिक हाईपरटेंशन, डायबिटीज या कैंसर जैसी बीमारियां शामिल हैं। इस सबके चलते लोगों पर वायरस के संक्रमण का खतरा बना हुआ है।

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इसके अलावा बहुत सी ऐसी मौतें भी हुई हैं जिनमें कोरोना के लक्षण थे लेकिन मौत से पहले उनका टेस्ट नहीं किया गया या उनके टेस्ट शुरुआत में निगेटिव आए थे। इन मौतों को भी दर्ज नहीं किया जा रहा है। चीन की वुहान यूनिवर्सिटी और अमेरिका की नॉर्थवेल कोविड-19 रिसर्च कंसोर्शियम के अध्य्यन बताते हैं कि बिना कोरोना लक्षण वाले लोगों के भी फेफड़े और गुर्दे खराब हो सकते हैं।

लेकिन ये सब इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के दिशा-निर्देशों के विपरीत है। आईसीएमआर कहती है कि संदिग्ध और दूसरी बीमारियों वाली मौतों को भी कोरोनो से हुई मौत के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए। यह जरूरी है क्योंकि भारत जैसे देश में में टेस्ट की दर बहुत कम है। प्रति एक हजार व्यक्ति पर टेस्ट की दर 8.55 ही है। इसके अलावा यह भी ध्यान रखना होगा कि सभी टेस्ट (आरटी-पीसीआर, ट्रूनेट, सीबीएनएएटी और रैपिड एंटीजेन) निगेटिव रिपोर्ट दे सकते हैं। यहां तक कि सबसे सटीक माने जाने वाले आरटी-पीसीआईर टेस्ट के नतीजे भी 70 फीसदी ही सही साबित हुए हैं।

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इसके साथ ही यह भी तथ्य है कि देश के तमाम गांवों में टेस्ट की कोई सुविधा ही नहीं है, तो क्या वहां कोई कोरोना से संक्रमित नहीं होगा? यह वह सवाल है जिसे बहुत से एपिडेमिओलॉजिस्ट्स उठा रहे हैं ताकि सरकार इस पर ध्यान दे। वेलोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर और वायरोलॉजिस्ट डॉ टी जेकब कहते हैं कि, “कोरोना के मरीजों की पहचान के लिए क्या टेस्ट ही एकमात्र जरिया है? आखिर इसका क्लीनिकल डायगनोसिस क्या है? हमने कोविड-19 के लिए एक सख्त क्लीनिकल पैमाना बनाया है, अगर आप इसमें फिट बैठते हैं तो आपको टेस्ट की जरूरत नहीं है। किसी और सबूत की जरूरत ही नहीं है। इसी तरह करीब 11 पैमाने हैं जिनमें से कुछेक में ही अगर कोई फिट बैठता है तो वह संक्रमित है। यानी अगर हम टेस्ट न भी करें तो इन पैमानों के आधार पर जान सकते हैं कि वह कोरोना पॉजिटिव है या नहीं। आधे से ज्यादा मामलों में टेस्ट गलत निगेटिव रिपोर्ट दे सकता है।”

इसका यह भी अर्थ है कि इतनी संख्या में और मोतें हुई होंगी जिन्हें रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं किया गया। ब्रिटेन के मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में 38 वर्षीयी एक व्यक्ति को कोरोना का इलाज नहीं मिला, जबकि वह राज्य की राजधानी भोपाल में था। जब तक उसे अस्पताल ले जाया जा सका, उसकी मौत हो गई। अंतिम संस्कार के कुछ दिन बाद परिवार को पता चला कि शहर प्रशासन ने इस मौत को कोरोना से हुई मौत के रूप में दर्ज ही नहीं किया। इस बारे में जब प्रशासन से पूछा गया तो मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव फैज अहमद किदवई का कहना था कि यह स्पष्ट नहीं है कि इस व्यक्ति की मौत कोरोना से हुई, इसीलिए इसे रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया।

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यह कोई अकेला मामला नहीं है। दिल्ली, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में भी ऐसा ही हो रहा है। इन सभी राज्यों पर कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े छिपाने के आरोप हैं। दरअसल जानबूझकर मौतों की संख्या कम दिखाने के पीछे राजनीतिक कारण हैं और मंशा है कि सभी राज्य अपने यहां कोरोना संक्रमण के विस्तार को नियंत्रित करता हुआ दिखाना चाहते हैं।

इतना ही नहीं केंद्र सरकार इन्हीं आंकडों के आधार पर वायरस पर विजय की डुगडुगी बजा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा करते हं कि, “हमारी बड़ी जनसख्या के बावजूद हमने मौत की दर को काबू में रखा है और हमारा रिकवरी रेट (स्वस्थ्य होने वाले लोगों की संख्या) भी 50 फीसदी है। पूरी दुनिया में हमारे इस काम की तारीफ हो रही है।”

दो सप्ताह पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दोबारा दावा किया कि कोरोना के मामले में भारत का रिकॉर्ड दुनिया के किसी भी देश से बेहतर है। उन्होंने कहा, “पीएम मोदी के नेतृत्व वाले भारत ने कोरोना को काबू में किया है। कुछ लोगों ने बहुत बड़ी संख्या में मौतों का अनुमान लगाया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।”

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इन सारे दावों के बावजूद कोरोना संक्रमण की रफ्तार कम होती नहीं दिख रही है। टोरंटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और एपिडेमिओलॉजिस्ट प्रभात झा ने वाशिंग्टन पोस्ट से बातचीत में कहा, “यही कारण है कि कुछ राज्यों और शहरों ने लॉकडाउन दोबारा लागू किया है। संक्रमण और मौत के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है और रोज नए रिकॉर्ड बन रहे हैं।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत में संक्रमण की व्यापकता समझने के लिए बेहतर डाटा की जरूरत है।

अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता में अधिकारियों से बात करने के बाद मार्च से जून के बीच डाटा को जमा किया गया। रिपोर्ट बताती है कि मुंबई ने तो सारे आंकड़े मुहैया कराए लेकिन पश्चिम बंगाल ने इस पर कान तक नहीं धरा।

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दिल्ली में भी आंकड़ों की हेराफेरी सामने आई है। मई के पहले सप्ताह में कोरोना के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर सामने आया था कि दिल्ली सरकार आंकड़ें छिपा रही है। अब भी स्थिति ऐसी ही है क्योंकि कब्रिस्तानों और श्मशान से मिलने वाले आंकड़ों और दिल्ली सरकार के आंकड़ों में बड़ा फर्क है। दिल्ली की तीन नगर निगमों ने कुल मिलाकर 17 जुलाई तक 4.155 कोरोना मौतों को दर्ज किया है, लेकिन दिल्ली सरकार के आंकड़ों में 17 जुलाई तक देश की राजधानी में सिर्फ 3,571 मौतें ही हुई हैं। वाशिंग्टन पोस्ट के मुताबिक गुजरात के वडोदरा में भी जून के बाद से करीब 2000 नए केस सामने आए हैं। लेकिन वायरस से होने वाली मौतों की संख्या सिर्फ 57 से 60 के बीच ही है। इससे लगता है कि सरकार जानबूझकर आंकड़े छिपा रही है।

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