ऐसे समय जब लगभग हरेक हिमालयी क्षेत्र भारी बर्फबारी की मार झेल रहे हैं, एक नई पुस्तक ने खुलासा किया है कि हिन्दूकुश हिमालय के लगभग तीन-चौथाई ग्लेशियर तापमान वृद्धि के कारण साल 2100 तक पिघल चुके होंगे। अब तक तापमान वृद्धि की चर्चाएं अंटार्कटिक, आर्कटिक और ग्रीनलैंड तक ही सीमित थीं और हिमालय की चर्चा कम की जाती थी, लेकिन अब इस नई पुस्तक में हिमालय के ग्लेशियर पर विस्तृत चर्चा की गई है।
स्प्रिंगर द्वारा प्रकाशित किताब ‘द हिन्दूकुश हिमालय असेसमेंट’ को लगभग 200 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है और दुनिया भर के लगभग 125 विशेषज्ञों ने इन वैज्ञानिकों के काम का विस्तृत आकलन किया है। इस पुस्तक का संपादन फिल्लिपस वेस्टर, अरविंद मिश्रा, अदिति मुखर्जी और अरुण भक्त श्रेष्ठ ने किया है।
हिन्दूकुश हिमालय लगभग 3500 किलोमीटर के दायरे में फैला है और इसके अंतर्गत भारत समेत चीन, अफगानिस्तान, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल और म्यांमार का क्षेत्र आता है। इससे गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु समेत अनेक बड़ी नदियां उत्पन्न होती हैं। इसके क्षेत्र में लगभग 25 करोड़ लोग बसते हैं और 1.65 अरब लोग इन नदियों के पानी पर आश्रित हैं।
अनेक भू-विज्ञानी इस क्षेत्र को दुनिया का तीसरा ध्रुव भी कहते हैं, क्योंकि दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव के बाद सबसे अधिक बर्फीला क्षेत्र यही है। लेकिन तापमान वृद्धि के प्रभावों के आकलन की दृष्टि से यह क्षेत्र उपेक्षित रहा है। हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र में 5000 से अधिक ग्लेशियर हैं और इनके पिघलने पर दुनिया भर में समुद्र तल में 2 मीटर की वृद्धि हो सकती है।
इन वैज्ञानिकों के अनुसार यदि पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में साल 2100 तक अगर तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ता है तब भी हिन्दूकुश हिमालय के लगभग 36 प्रतिशत ग्लेशियर हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे। अगर तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है तब लगभग 50 प्रतिशत ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे, लेकिन अगर तापमान 5 डिग्री तक बढ़ता है, जिसकी पूरी संभावना है, तो 76 प्रतिशत ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे। यहां ध्यान रखने वाला तथ्य यह है कि साल 2018 तक तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियर बढ़ चुका है।
तापमान वृद्धि के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों के अनुसार अभी दुनिया जिस हिसाब से इसे हल्के में ले रही है, उसे ध्यान में रखते हुए तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक रोकने के बारे में सोचना तो बेमानी है और 2 डिग्री के लिए भी सरकारों को वर्तमान की तुलना में 5 गुना अधिक मेहनत करनी पड़ेगी।
यह स्थिति भी उम्मीद से परे है क्योंकि अभी तक पूरी दुनिया इस समस्या की तरफ ध्यान नहीं दे रही है। सामान्य अवस्था में इस शताब्दी के अंत तक लगभग 5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की ही उम्मीद है और ऐसी स्थिति में हिमालय के 76 प्रतिशत ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के वैज्ञानिक फिल्लिपस वेस्टर, जो इस पुस्तक के सह-संपादक भी हैं, के अनुसार यह एक ऐसी आपदा है, जिसका कारण प्रकृति नहीं बल्कि मानव है। इसके बारे में कभी विस्तार में चर्चा नहीं की जाती, लेकिन इससे करोड़ों लोग प्रभावित होंगे।
इस आपदा को गंभीरता से लेने की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि 1970 के दशक से अब तक हिन्दूकुश हिमालय के 15 प्रतिशत से अधिक ग्लेशियर खत्म हो चुके हैं। ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के कारण 100 वर्षों में जितनी भयंकर बाढ़ आती थी, उतनी अब 50 वर्षों में ही आ जाती है। ग्लेशियर खत्म होने का प्रभाव खेती के साथ-साथ पनबिजली योजनाओं पर भी पड़ेगा क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकतर बिजली इसी से उत्पन्न होती है।
रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के कारण साल 2050 से 2060 के बीच यहां से उत्पन्न होने वाली नदियों में पानी का बहाव अधिक हो जाएगा, लेकिन 2060 के बाद बहाव कम होने लगेगा और पानी की किल्लत शुरू हो जाएगी। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के प्रोफेसर जेम्मा वधम के अनुसार इस पुस्तक में जो कुछ भी कहा गया है वह पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है और इससे तापमान वृद्धि के प्रभाव से किस क्षेत्र को बचाने की आवश्यकता है, उसका भी पता चलता है।
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