दशहरे के मौके पर कुल्लू में सदियों से चली आ रही देवी-देवताओं के समागम की परंपरा का महोत्सव गुरुवार को समाप्त हो गया। विजयदशमी से आरंभ हुए इस उत्सव में 225 देवी-देवताओं का समागम हुआ था। महोत्सव में शिरकत करने पहुंचे देवी-देवता अब अपने-अपने स्थानों को लौटने लगे हैं। गुरुवार को ढोल और शहनाई बजाकर उन्हें विदाई दी गई। हजारों श्रद्धालुओं ने भगवान रघुनाथ का रथ खींचकर उन्हें वापस रघुनाथ मंदिर में विराजमान किया। इसके साथ ही महोत्सव का समापन हो गया।
Published: 26 Oct 2018, 6:59 AM IST
कुल्लू का दशहरा उत्सव एक बार फिर बिना किसी पशु-वध की परंपरा को निभाए संपन्न हुआ।
देवों को संतुष्ट करने के लिए यहां पशु-वध की परंपरा सदियों से चली आ रही थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने 2014 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब यहां पशु-वध के बजाए रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाता है। उत्सव के एक आयोजक ने बताया कि परंपरागत रूप से मनाए जाने वाले उत्सव का समापन शांतिपूर्वक हो गया और यहां एकत्र हुए देवी-देवता लंकादहन के बाद अब वापस अपने-अपने स्थान लौट रहे हैं।
Published: 26 Oct 2018, 6:59 AM IST
बता दें कि यह उत्सव यहां सन् 1637 से मनाया जा रहा है, जब कुल्लू के राजा जगत सिंह थे। उन्होंने दशहरा के दौरान भगवान रघुनाथ के सम्मान में आयोजित उत्सव में इलाके के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया था। तभी से यह उत्सव हर साल मनाया जाता है।
Published: 26 Oct 2018, 6:59 AM IST
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी गोविंद ठाकुर ने उत्सव के समापन समारोह की अध्यक्षता की। मुख्यमंत्री ने स्थानीय देवी-देवताओं के लिए नजराने में पांच फीसदी का इजाफा करने की घोषणा की और सुदूर निवास करने वालों के लिए भत्ते में 20 फीसदी की वृद्धि का भा ऐलान किया।
Published: 26 Oct 2018, 6:59 AM IST
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: 26 Oct 2018, 6:59 AM IST