अहमदाबाद के अमराईवाड़ी थाने में एक पुलिस कांस्टेबिल के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। यह एफआईआर हर्षद जाधव नाम के दलित व्यक्ति की शिकायत पर हुई है, जिसका आरोप है कि एक बड़े पुलिस अफसर ने उसकी जाति पूछकर उससे थाने में मौजूद 15 पुलिस वालों के जूते चाटने पर मजबूर किया।
एक अंग्रेजी समाचार पत्र में प्रकाशित खबर में पुलिस सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि साईंबाबा नगर सोसायटी के रहने वाले हर्षद जाधव, टेलिविजन सेटों की मरम्मत का काम करते हैं। हर्षद ने अपनी शिकायत में कहा है कि, “साईंबाबा मंदिर के नजदीक मैंने अपने घर के पास 29 दिसंबर को शोर सुना, तो बाहर निकला और देखा कि एक भीड़ी हंगामा कर रही थी। मैंने अपने पास खड़े एक व्यक्ति से पूछा कि क्या हुआ है, तो उस व्यक्ति ने मुझे थप्पड़ मार दिया। मैंने भी उसे धक्का दिया, इस पर उस व्यक्ति ने डंडे से मेरे सिर पर वार कर दिया, जिससे बचने में मेरी उंगली में चोट आई।”
जाधव का कहना है कि उस व्यक्ति ने खुद को पुलिस वाला बताया। इस हंगामे को सुनकर उनकी पत्नी जब बाहर आईं तो उन्हें भी पीटा गया, और फिर उन्हें पकड़कर अमराईवाड़ी थाने ले जाया गया। जाधव का कहना है कि उनके साथ उनके परिवार के तीन सदस्यों को पुलिस स्टेशन पर लाया गया और जाधव को कॉन्स्टेबल पर हमले के आरोप में हवालात में बंद कर दिया गया। उन पर पुलिस कांस्टेबिल पर हमले का आरोप लगाया गया।
जाधव की शिकायत के मुताबिक कुछ घंटे बाद दोपहर के वक्त डीसीपी हिमकार सिंह थाने पहुंचे और उन्हें हवालात से निकाला गया। डीसीपी हिमकार सिंह ने उन्हें पीटते हुए कहा कि , ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई एक पुलिस वाले पर हाथ उठाने की।” जाधव ने आरोप लगाया है कि इसके बाद डीसीपी ने उनसे उनकी जाति पूछी। जब उन्होंने अपनी जाति दलित बताई तो उन्हें और पीटा गया और फिर कांस्टेबिल विनोदभाई बाबू भाई के साथ ही वहां मौजूद 15 पुलिस वालों के जूते चाटने को कहा गया।
हर्षद जाधव का कहना है कि जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार किया, तो जबरन उनसे जूता चटाया गया। इसके बाद जाधव को दोबारा हवालात में डाल दिया गया। पुलिस की कारगुजारी यहीं नहीं रुकी। उन्हें घटना के बारे में जज के साथ ही किसी को न बताने की धमकी दी गई।
जाधव ने अपनी शिकायत में कहा है कि धमकी से डरकर उन्होंने जज के सामने कुछ भी नहीं बताया। जाधव का कहना है कि पुलिस प्रताड़ना की वजह से उनकी पत्नी को भी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है।
इंग्लिश लिटरेचर में ग्रेजुएट हर्षद जाधव का कहना है कि इस वाक्ये से उन्हें अपने आप पर शर्म आने लगी और उनका मन आत्महत्या करने का करने लगा। शाम के वक्त उन्हें एक जज के सामने पेश किया गया लेकिन उन्हें धमकी दी गई थी कि जज के सामने कुछ न कहें। जज ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया।
शाम को उन्होंने यह बात अपने पिता को बताई, तो जाधव के पिता ने बिरादरी के दूसरे लोगों को इस बारे में बताया। इस पर दलित समुदाय के लोगों ने अमराईवाड़ी थाने का घेराव किया और इस मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग की। घेराव से परेशान होकर पुलिस ने उनसे लिखित शिकायत ली और मामला दर्ज किया।
इस घटना के बारे में गुजरात दलित संगठन के संयोजक अशोक सम्राट का कहना है कि पुलि ने एफआईआर में सिर्फ कांस्टेबिल विनोद का नाम लिखा गया है जबकि डीसीपी हिमकार सिंह का नहीं, जिनके आदेश पर यह शर्मनाक घटना हुई। उन्होंने बताया कि, “हमने इस मामले में अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर ए के सिंह से मुलाकात कर इसकी जांच कराने की मांग की है।”
आरोपी कांस्टेबिल को भी अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। इधर डीसीपी हिमकार सिंह ने इन सभी आरोपों को खारिज किया है। उनका कहना है कि, “मैंने किसी से भी ऐसा करने को नहीं कहा। हर्षद को अमराईवाड़ी थाने में रखा गया था। बाद में उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया।” उनका कहना है कि यह घटना 29 दिसंबर की है, लेकिन उन्हें नहीं पता कि 30 दिसंबर और पहली जनवरी के बीच क्या हुआ। उनके मुताबिक थाने के बाहर भारी भीड़ को देखते हुए कानून-व्यवस्था के मद्देनजर इस मामले में कांस्टेबिल विनोद के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
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