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गोविंद सिंह लोंगोवाल को मिला बादलों से वफादारी का ‘ईनाम’, फिर बने ‘शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी’ के प्रधान

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के पास एसजीपीसी प्रधान बनाने के निर्विवाद अधिकार थे। आखिरकार उन्होंने तमाम दूसरे नामों को दरकिनार करके अपने बेहद भरोसेमंद गोविंद सिंह लोंगोवाल पर ही आखिरी मोहर लगाई और लगातार तीसरी बार उन्हें प्रधान बना दिया।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

बादलों, खासतौर से सुखबीर सिंह बादल के प्रति अतिरिक्त 'वफादारी' काम आई और गोविंद सिंह लोंगोवाल को तीसरी बार सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था एसजीपीसी (शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी) की कमान सौंप दी गई। गोविंद सिंह लोंगोवाल 2017 में पहली बार एसजीपीसी के प्रधान बने थे, 2018 में उन्हें फिर चुना गया और आज तीसरी बार उन्हें प्रधानगी से नवाजा गया।

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शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के पास एसजीपीसी प्रधान बनाने के निर्विवाद अधिकार थे। आखिरकार उन्होंने तमाम दूसरे नामों को दरकिनार करके अपने बेहद भरोसेमंद गोविंद सिंह लोंगोवाल पर ही आखिरी मोहर लगाई और लगातार तीसरी बार उन्हें प्रधान बना दिया। लोंगोवाल के नाम पर अकाली सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल की सहमति 26 नवंबर की रात ले ली गई थी। अलबत्ता आज सुबह तक तीन दिग्गज अकाली नेता, अपने-अपने हिसाब से एसजीपीसी की प्रधानगी हासिल करने की शिद्दत के साथ कवायद कर रहे थे। बीबी जागीर कौर, जत्थेदार तोता सिंह और प्रोफेसर कृपाल सिंह बडूंगर गुपचुप कोशिशों में लगे थे। बीबी जागीर कौर तो थोड़ा खुलकर अपनी ख्वाहिश जाहिर कर चुकी थीं। उनके लिए अनौपचारिक अथवा अपरोक्ष सिफारिश हरसिमरत कौर बादल ने भी अपने ससुर और पति से की थी लेकिन सियासत में उनसे ज्यादा तजुर्बा रखने वाले बड़े और छोटे बादल ने अंततः गोविंद सिंह लोंगोवाल को ही चुना।

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सूत्रों के मुताबिक जत्थेदार तोता सिंह और प्रोफेसर कृपाल सिंह बडूंगर भी प्रधानगी के लिए लगातार बादलों के संपर्क में थे। बीबी जागीर कौर और प्रो. कृपाल सिंह बडूंगर पहले भी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान रह चुके हैं। दोनों का कार्यकाल खासा विवादास्पद रहा। बडूंगर के प्रधान रहते कई पंथक विवाद खड़े हुए और इससे शिरोमणि अकाली दल की साख को बट्टा लगा। बीबी जागीर कौर पर तो अपनी बेटी हरप्रीत कौर के कत्ल की साजिश का संगीन मुकदमा भी चला।

इस सिलसिले में उन्होंने जेल यात्रा भी की थी। वह सम्मानित समझी जाने वाली सर्वोच्च सिख संस्था एसजीपीसी की पहली महिला प्रधान थीं और यह भी पहली बार था कि एसजीपीसी प्रधान पर हत्या की साजिश सरीखा गंभीर व संगीन मुकद्दमा चला। तब भी शिरोमणि अकाली दल की काफी किरकिरी हुई थी। बीबी जागीर कौर सीबीआई जांच के दायरे में आ गई थीं। धार्मिक रुतबा भी उन्हें कानूनी शिकंजे से बचा नहीं पाया और तब के लगे दाग आज तक धुले नहीं हैं। इसलिए प्रबल दावेदारी तथा जरूरी हिमायत के बावजूद प्रधानगी से वह हर बार वंचित रह जाती हैं। जत्थेदार तोता सिंह पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं और उनके खिलाफ कई मुकदमें चले हैं।

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ऐसे में बादलों के पास सीधा तर्क और बहाना था कि विवादों से घिरे व्यक्ति को मौजूदा हालात में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की कमान सौंपना मुनासिब नहीं होगा। दरअसल, 2015 में श्री गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी की घटनाओं के बाद शिरोमणि अकाली दल का जनाधार लगातार खिसकता गया। यहां तक कि बीते विधानसभा चुनाव के बाद उसे मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी नहीं मिल पाया। तब और अब पंजाब के अवाम का एक बड़ा तबका श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के लिए बादलों को सीधे तौर पर गुनाहगार मानता है।

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इसके मद्देनजर जरूरी था कि एसजीपीसी की कमान किसी बेदाग शख्सियत को दी जाए। 2017 को प्रोफेसर कृपाल सिंह बडूंगर को हटाकर इसीलिए गोविंद सिंह लोंगोवाल को प्रधान बनाया गया था। फिलहाल तक उन पर कोई गंभीर आरोप नहीं है और आमतौर पर सिखों के बीच उनकी छवि बेदाग मानी जाती है। बेशक बादल विरोधी प्रतिद्वंदी पंथक संगठन जरूर उन पर कई तरह के आरोप लगाते रहते हैं। वैसे, खुद शिरोमणि अकाली दल के कई नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि गोविंद सिंह लोंगोवाल को बादलों के प्रति अंधी वफादारी का 'इनाम' प्रधानगी के रूप में मिला है। जबकि सुखबीर सिंह बादल का कहना है कि लोंगोवाल ने श्री गुरु नानक देव जी के 550वें समारोहों में बतौर एसजीपीसी रहनुमा बहुत शानदार भूमिका निभाई, इसलिए उन्हें फिर प्रधान पद के लिए चुना गया है।

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गौरतलब है कि श्री गुरु नानक देव के प्रकाशोत्सव के सुल्तानपुर लोधी में हुए मुख्य समागम में पंजाब सरकार और शिरोमणि अकाली दल के बीच टकराव की नौबत आ गई थी, जिसे गोविंद सिंह लोंगोवाल ने किसी तरह टाला। यह भी कह सकते हैं कि उन्होंने 'बादलों की इज्जत बचाई!' यह इस संवाददाता के शब्द नहीं बल्कि प्रकाश सिंह बादल के एक करीबी टकसाली अकाली नेता के हैं।

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गोविंद सिंह लोंगोवाल को तीसरी बार एसजीपीसी का प्रधान बनाने के पीछे एक बड़ी वजह आम सिखों में उनकी धार्मिक तथा निर्विवाद छवि का होना भी है। उनके जरिए शिरोमणि अकाली दल उदार धार्मिक सिखों में खोई अपनी प्रासंगिकता फिर बहाल करना चाहता है। लोंगोवाल ने अपने पिछले दो कार्यकालों में एसजीपीसी की ओर से 'धर्म प्रचार' पर खास जोर दिया। बाकायदा एक नीति के तहत शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अपने इस व्यापक धर्म प्रचार को ग्रामीण पंजाब में फैले गुरुद्वारों में बड़े पैमाने पर लेकर गई। ऐसा इसलिए भी किया गया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सहयोगी संगठन राष्ट्रीय सिख संगत भी इन दिनों ग्रामीण पंजाब के गुरुद्वारों में खासा सक्रिय है।

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शिरोमणि अकाली दल सीधे तौर पर उससे उलझने की बजाय, एसजीपीसी के जरिए माकूल जवाब दे रही है। एसजीपीसी की नई कार्यकारिणी के एक सदस्य ने इस संवाददाता से कहा कि लोंगोवाल ने इस बाबत काफी मंथन और जमीनी काम किया है। यकीनन इसका लाभ शिरोमणि अकाली दल भविष्य में लेना चाहेगा। खासतौर से उन हालात में जब आरएसएस और बीजेपी सिखों के बीच पैठ बनाने में लगी है और पंथक मामलों में प्रत्यक्ष या परोक्ष हस्तक्षेप कर रही है। ऐसे में एक 'संपूर्ण धार्मिक' और लगभग निर्विवाद शख्सियत को एसजीपीसी का प्रधान बना कर बादलों ने एक तीर से कई निशाने लगाए हैं।

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बहरहाल जो भी हो, इतना तो तय ही है कि लगातार तीसरी बार एसजीपीसी प्रधान बने गोविंद सिंह लोंगोवाल, निश्चित तौर पर शिरोमणि अकाली दल के विशुद्ध धार्मिक-राजनीतिक एजेंडे लागू करने से गुरेज नहीं करेंगे। यही बादलों को चाहिए।

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