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चीन को झटका देने की तैयारी! 12 हजार रुपये से कम वाले चीनी स्मार्टफोन्स की बिक्री पर रोक लगा सकती है भारत सरकार

ऐसी खबरें हैं कि भारत सरकार 12,000 रुपये से कम कीमत वाले चीनी फोनों की बिक्री पर रोक लगा सकती है। चीन की कंपनियों पर लगातार हो रही कार्रवाई की यह अगली कड़ी हो सकती है।

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर फोटो : सोशल मीडिया

ब्लूमबर्ग ने रिपोर्ट दी है कि भारत 12,000 रुपये (150 अमेरिकी डॉलर) से कम कीमत वाले चीनी मोबाइल फोनों की बिक्री पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है। चीनी कंपनियों को लेकर लगातार सख्ती बरत रही भारत सरकार के इस विचार का मकसद स्थानीय स्मार्ट फोन कंपनियों जैसे लावा और माइक्रोमैक्स आदि को बढ़ावा देना हो सकता है।

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अज्ञात सूत्रों के हवाले से ब्लूमबर्ग ने लिखा है कि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि भारत ऐसी कोई नीति घोषित करेगा या फिर अनौपचारिक तरीकों से चीनी स्मार्टफोन कंपनियों को सीमित करने की कोशिश की जाएगी। यह खबर तब आई है जबकि भारतीय अधिकारियों ने एक के बाद एक चीनी कंपनियों पर कानूनी कार्रवाई की है।

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भारत के स्मार्टफोन बाजार पर चीन की कंपनियों का कब्जा है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल बाजार है और खासतौर पर सस्ते स्मार्टफोन के मामले में चीन की कंपनियों शाओमी और वीवो ने उस पर कब्जा कर रखा है।

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एक दशक पहले ही बाजार में उतरीं लावा और माइक्रोमैक्स जैसी भारतीय कंपनियों का आकार बढ़ा तो है लेकिन वे चीनी प्रतिद्वन्द्वियों के मुकाबले कमजोर रही हैं। 15,000 रुपये से कम के स्मार्टफोन उपलब्ध कराने वालों में शाओमी और वीवो सबसे ऊपर हैं। दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग भी इस बाजार की हिस्सेदार है। ‘काउंटरप्वाइंट' की एक रिपोर्ट के मुताबिक 12,000 रुपये से कम के फोन बेचने के मामले में जून 2022 तक की पहली तिमाई में 80 प्रतिशत बाजार चीनी कंपनियों ने कब्जाया है। सैमसंग ने इस बाजार का एक तिहाई हिस्सा पाया।

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चीनी कंपनियों पर कार्रवाई

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अगर भारत सरकार ऐसा कोई कदम उठाती है तो शाओमी, वीवो, रीयलमी, पोको जैसे कई ब्रैंड बड़ा झटका खाएंगे। इन कंपनियों के लिए भारत में यह पहला झटका नहीं होगा। हाल ही में भारत सरकार ने शाओमी, ओप्पो और वीवो के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई शुरू की है।

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पिछले महीने ही पहले वीवो और फिर ओप्पो पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापेमारी की थी। भारतीय अधिकारियों का आरोप है कि चीनी कंपनी ग्वांगडोंग ओप्पो मोबाइल टेलीकम्यूनिकेशंस कॉर्प लिमिटेड की सब्सिडिएरी कंपनी ओप्पो इंडिया ने आयात कर में 43.9 अरब डॉलर का घपला किया।

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ओप्पो इंडिया भारत में मोबाइल फोन और उससे जुड़ी चीजें बनाने, बेचने और डिस्ट्रीब्यूशन के कारोबार में सक्रिय है। एक बयान में ईडी ने कहा कि ओप्पो इंडिया ने ऐसी कर छूट का लाभ उठाया, जिसकी वह हकदार नहीं थी। इसके अलावा रॉयल्टी और लाइसेंस फीस बचाने के लिए खातों में हेराफेरी की गई और इस तरह उसने कुल 2.9 अरब डॉलर बचा लिए। ईडी ने कहा कि इस धन का बहुत बड़ा हिस्सा चीन भेज दिया गया ताकि भारत में कर ना देना पड़े।

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इससे पहले मई में भारत में स्मार्टफोन बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनी शाओमी ने अदालत में दायर एक हलफनामे में आरोप लगाए थे कि भारतीय प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने कंपनी के अधिकारियों को मार-पीट और जोर-जबर्दस्ती की धमकी दी। प्रवर्तन निदेशालय ने इन आरोपों को गलत बताया था।

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अप्रैल में भारत ने शाओमी के स्थानीय बैंक खातों से 72.5 करोड़ डॉलर यानी लगभग 56 अरब रुपये यह कहते हुए जब्त कर लिए कि कंपनी ने रॉयल्टी भुगतान के रूप में विदेश में अवैध तरीके से धन भेजा है। शाओमी इन आरोपों को गलत बताती है। उसका कहना है कि रॉयल्टी के रूप में जो भुगतान किया गया है वह पूरी तरह जायज है।

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2020 में भारत और चीन के बीच लद्दाख में सैन्य झड़प होने के बाद से ही भारत सरकार चीनी कंपनियों को लेकर लगातार सख्त रही है। उसकी नजर चीनी ऐप्स पर भी है। हाल ही में उसने गूगल और एप्पल को आदेश दिया था कि दक्षिण कोरियाई कंपनी की मोबाइल गेम बीजीएमआई को अपने मंचों से हटा दें। कंपनी या सरकार किसी ने भी आधिकारिक तौर पर नहीं बताया कि यह कार्रवाई क्यों की गई लेकिन इससे पहले बीजीएमआई बनाने वाली कंपनी के चीनी कंपनियों से संबंधों को लेकर भी कार्रवाई हो चुकी थी।

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चीन की आपत्ति

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पिछले दो साल में भारत सरकार 300 से ज्यादा चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा चुकी है। इनमें टिकटॉक जैसे बेहद लोकप्रिय ऐप्स शामिल हैं। चीनी कंपनियों पर भारत की कार्रवाई को लेकर वहां के विदेश मंत्रालय आपत्ति जताई थी। पिछले महीने चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लीजियां ने एक बयान जारी कर भारत से निष्पक्ष व्यवहार करने को कहा था।

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लीजियां ने कहा था कि उनकी सरकार अपनी कंपनियों ने संबंधित देश के नियमों के मुताबिक कारोबार करने की उम्मीद करती है और उनके हितों व अधिकारों की रक्षा करना चाहती है। जाओ ने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि भारत कानून सम्मत तरीके से ही जांच-पड़ताल करेगा और चीनी कंपनियों के निवेश और गतिविधियों को भारत में एक निष्पक्ष और भेदभाव रहित माहौल उपलब्ध कराएगा।”

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