गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करके उसके जल को साफ करने के लिए केंद्र की बीजेपी सरकार के सारे दावे खोखले नजर आ रहे हैं। मोदी सरकार ने नमामि गंगे नाम की परियोजना के तहत गंगा को साफ करने के लिए भले ही करोड़ों रूपये खर्च कर दिए हों, लेकिन बावजूद इसके गंगा का प्रदूषण स्तर हर दिन घटने की बजाए बढ़ रहा है।
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के अनुससार वाराणसी में ‘संकट मोचन फाउंडेशन’ नाम की एक एनजीओ ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है। जिसमें बताया गया है कि गंगा वाटर के अन्दर कई ऐसे कैमिकल पाए गए हैं, जो बेहद घातक हैं। संकट मोचन के आंकड़ों के अनुसार गंगा के पानी में अधिक मात्रा में कॉलीफॉर्म और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) होने का पता चला है।
गौरतलब है कि सत्ता में आने के एक साल बाद पीएम मोदी ने गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए नमामि गंगे नाम की एक परियोजना की शुरुआत की थी। जिसके लिए सरकार ने 20 हजार करोड़ रूपये का बजट रखा था। नमामि गंगे के तहत गंगा को अविरल बनाने के लिए 2019 तक का लक्ष्य रखा गया था, जिसे केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 2018 में बढ़ाकर 2020 कर दिया था।
गंगा के पानी की गुणवत्ता को जांचने के लिए संकट मोचन फाउनडेशन ने वाराणसी के तुलसी घाट पर अपनी खुद की एक प्रयोगशाला बनाई है, जिसमें वे गंगा के पानी के नमूनों की कई तरह से जांच करते हैं। इस प्रयोगशाला के आंकड़ों के अनुसार, पीने योग्य पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया 50 एमपीएन (सर्वाधिक संभावित संख्या)/100 मिलीलीटर और नहाने के पानी में 500 एमपीएन/100 मिलीलीटर होना चाहिए जबकि एक लीटर पानी में बीओडी की मात्रा 3 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए।
संकट मोचन फाउनडेशन द्वारा दिए आंकड़ों की माने तो जनवरी 2016 में उत्तर प्रदेश के नगवा कस्बे में धारा के विपरीत दिशा में फेकल कॉलीफॉर्म नाम के प्रदूषक की संख्या 4.5 लाख से बढ़कर फरवरी 2019 में 3.8 करोड़ हो गई, वहीं वरुणा नदी में धारा की दिशा में इन प्रदूषकों की संख्या 5.2 करोड़ से बढ़कर 14.4 करोड़ हो गई।
आईआईटी-बीएचयू के प्रोफेसर और संकट मोचन संस्था के अध्यक्ष वीएन मिश्रा ने एक अखबार से बातचीत में कहा, “इसी तरह जनवरी 2016 से फरवरी 2019 के दौरान बीओडी का स्तर 46.8-54 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर 66-78 मिलगीग्राम प्रति लीटर हो गया। इसी अवधि में डिसॉल्वड ऑक्सीजन (डीओ) का स्तर 2.4 मिलीग्राम प्रति लीटर से घटकर 1.4 मिलीग्राम प्रति लीटर रह गया, हालांकि इसे प्रति लीटर छह मिलीग्राम या इससे अधिक होना चाहिए। गंगा के पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया का अत्यधिक मात्रा में होना मानव स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक है।”
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