आर्थिक मोर्चे पर चौतरफा हिचकोलों और महाराष्ट्र में तमाम कोशिशों के बावजूद सरकार न बना पाने का जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक दबाव संसद के आगामी सत्र में बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरों के तौर पर दिखेगा। पिछले संसद सत्र में बीजेपी ने मुस्लिम समुदाय से संबंधित तीन तलाक और अनुच्छेद 370 और 35 ए को खत्म करने के साथ जिस खुशफहमी में हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा, उस सबके जमीनी झटकों को पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने बखूबी भांप लिया है। अयोध्या में राम मंदिर बनाने को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी को लगभग सभी विपक्षी पार्टियों द्वारा स्वागत किए जाने के बाद फैसले का एकतरफा श्रेय लेने का सपना भी धूमिल होता दिख रहा है।
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सत्रहवीं लोकसभा का दूसरा सत्र आगामी 18 नवंबर से आरंभ हो रहा है। संसद के गलियारों में सत्र के पहले की चहल पहल और गहमागहमी साफ तौर पर देखी जा रही है। पिछले सत्र में कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने पर बीजेपी ने भले ही बड़ी-बड़ी सुर्खियां बटोरी हैं, लेकिन वहां हालात सामान्य न होने पर मोदी सरकार सीधे तौर पर कठघरे में खड़ी है। सबसे बड़ी मुसीबत आर्थिक हालात को लेकर आए दिन सामने आ रहे हैं। सरकार को सबसे ज्यादा मुश्किलें आर्थिक हालात पर चर्चा और कश्मीर में कई माह बीतने के बाद भी नागरिकों की मुश्किलों को दूर न करने और प्रमुख विपक्षी नेताओं की नजरबंदी और हिरासत जारी रखने को लेकर मोदी सरकार को असहज स्थितियों का सामना करना होगा।
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संसद सत्र के पहले ही दूसरे राउंड की जीडीपी सरकार के लिए मुसीबतों का सबब बन रही है। सबसे बड़ी मुसीबत मोटर वाहनों की बिक्री में 4.2 प्रतिशत की और गिरावट, ढांचागत क्षेत्र, भवन निर्माण में जर्जर हालात के बारे में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भी बाकी वित्तीय बैंकिंग संस्थानों के साथ अभी से आकलन लगा लिया है कि आगामी वित्त वर्ष में हालात और भी खराब होने वाले हैं।
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यह संसद सत्र इस मायने भी अलग दिखेगा क्योंकि सरकार में साझीदार और हिंदुत्ववादी चेहरे वाली पार्टी के तौर पर अब शिव सेना संसद के भीतर भी विपक्षी दलों के सुर में सुर मिलाते दिखेगी। 17 वीं लोकसभा में अपनी दूसरी पारी के दूसरे सत्र के पहले ही बीजेपी को यह सबसे बड़ झटका लगा है। महाराष्ट्र में सत्ता की डोर हाथ से छूटने का तात्कालिक असर यह हुआ कि एनडीए के अकाली दल और जेडीयू जैसे प्रमुख सहयोगी दलों ने सरकार को आंखे तरेरनी शुरू कर दी हैं। झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले टिकटों के आवंटन में बिहार के सीएम नीतीश कुमार की जेडीयू, राम विलास पासवान की एलजेपी और आदिवासी छात्र संगठन आजसू ने बीजेपी के एकाधिकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
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इसी कड़ी में एक अहम घटनाक्रम के तहत राज्यसभा में अकाली दल के नेता नरेश गुजराल ने बीजेपी को आगाह किया कि वह सहयोगी दलों से बेहतर तालमेल बनाए रखे। उनका कहना था कि एक दौर में जब बीजेपी के साथ कोई नहीं था तो शिव सेना और अकाली दल ही उसके साथ चट्टान की तरह होते थे लेकिन अब तो हालात ये हैं कि केंद्र में अपने बल पर बहुमत मिलने के बाद बीजेपी ने घनिष्ट सहयोगी दलों की उपेक्षा आंरभ कर दी।
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दूसरी ओर जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा कि हम अरसे से बीजेपी को इस बात को लिए सलाह देते रहे हैं कि अटल-आडवाणी के दौर में एनडीए के भीतर जिस तरह मजबूत समन्वय और संवाद के लिए पैनल होता था, वैसी ही परिपाटी मौजूदा दौर में भी होनी चाहिए थी। त्यागी महाराष्ट्र के घटनाक्रम का जिक्र किए बिना कहते हैं कि बीजेपी को सहयोगी घटकों को बराबरी के आधार पर सम्मान देना चाहिए। उनका यह भी मानना है कि अच्छा होता कि झारखंड में अलग अलग चुनाव लड़ने के बजाय बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी मिलकर चुनाव लड़ते।
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राज्यसभा के लिए इस बार की सत्र ज्यादा यादगार माना जा रहा है। इस उच्च सदन की 250 वें सत्र के मौके पर एक दिन की विशेष चर्चा सार्वजनिक नीतियों के प्रति राज्ससभा की भूमिका को लेकर आयोजित की गई है। राज्यसभा सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 26 नवंबर को संविधान दिवस के मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोंविद संसद के केंद्रीय कक्ष में एक ग्रंथ को भी जारी करेंगे जिसमें संसद के उच्च सदन के बारे में विभिन्न तरह के रोचक आलेख होंगे। इसके अलावा राज्यसभा के 250वें सत्र के मौके पर एक विशेष डाक टिकट भी जारी होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस अवसर पर मुख्य अतिथि होंगे।
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