मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के विरोध में आदिवासियों के बाद अब गुजरात के सैकड़ों किसान भी उतर आए हैं। सैकड़ों किसानों ने विरोध में 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के पीएम मोदी के हाथों होने वाले अनावरण के मौके पर नर्मदा में कूदकर अपनी जान देने की धमकी दी है। ये किसान यहां के चीनी मिल को बेचे गए गन्ने के भुगतान के लिए करीब एक दशक से बाट जोह रहे हैं। किसानों ने धमकी दी है कि अगर उनका बकाया पैसा नहीं मिला तो 31 अक्टूबर को 182 मीटर ऊंची इस मूर्ति के अनावरण के मौके पर वे नर्मदा में कूद जाएेंगे और अपनी जान दे देंगे।
खबरों के मुताबिक 11 साल पहले तक एक कोऑपरेटिव के तहत एक चीनी मिल चलाया जाता था। इस चीनी मिल को आसपास के कई जिलों के किसान गन्ना दिया करते थे। लेकिन चीनी मिल के बोर्ड सदस्यों द्वारा की गई गड़बड़ियों की वजह से यह मिल अचानक बंद हो गयी। इस वजह से सैकड़ों किसानों के बकाये का भुगतान नहीं हुआ। इनमें छोटा उदेपुर, पंचमहल, वडोदरा और नर्मदा जिले के 1500 किसान भी हैं, जिन्होंने चीनी मिल को 2.62 लाख टन गन्ना बेचा था, जिसका बकाया 12 करोड़ रुपये उन्हें आज तक नहीं मिला है।
इन किसानों ने अब सरदार पटेल को समर्पित स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के अनावरण के मौके पर विरोध जताने की योजना बनाई है। उन्होंने अब सरकार से आमने-सामने की लड़ाई लड़ने का मन बनाया है। गन्ना किसानों का कहना है कि सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित स्टेच्यू ऑफ यूनिटी फैक्ट्री में स्थित है। राज्य सरकार की उदासीनता की वजह से किसानों का बकाया अब तक नहीं मिला है और उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में पिछले 11 सालों से संघर्ष कर रहे बेहाल किसानों के लिए इस मूर्ति का कोई मतलब नहीं है।
वहीं इस मामले पर छोटा उदेपुर के कलेक्टर ने बताया कि ये मामला 2008 का है, जब आर्थिक गड़बडि़यों और कुप्रबंधन की वजह से सरदार चीनी मिल बंद हो गयी थी। ऑडिट में को-ऑपरेटिव के बोर्ड के सदस्यों की गलतियां सामने आने पर बोर्ड को रद कर दिया गया था और मिल बंद हो गया था। मिल के ऊपर 10 करोड़ के कर्ज को चुकाने के लिए नीलामी का आयोजन भी किया गया था। मुंबई की एक कंपनी ने 2011 में 36 करोड़ में मिल को खरीदा था। बता दें कि इस चीनी मिल को एक को-ऑपरेटिव के तहत चलाया जा रहा था, जिसके 15 बोर्ड सदस्य सरकार द्वारा नामित किये गए थे।
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खास बात ये है कि 2009 में किसानों ने अपने हक के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली एक निवारण समिति में भी गुहार लगाई थी। 2008 से 2011 के बीच जब मिल नीलाम नहीं हुई थी, तो किसानों ने जिला कलेक्टर के साथ-साथ कृषि सहयोग और किसान कल्याण विभाग, चीनी विभाग के निदेशक सहित तमाम सरकारी विभागों और निकायों के समक्ष अपने भुगतान के लिए प्रस्ताव दिय़े थे, लेकिन उनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। मिल की निलामी के बाद किसानों को लगा कि अब उनके बकाये का भुगतान हो जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। किसानों ने इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की है, जो अभी विचाराधीन है। गौरतलब है कि को-ऑपरेटिव के तहत चल रही इस मिल के कार्यकारी निदेशक कंचन पटेल थे, जो बीजेपी के नेता हैं और पास के ही एक गांव के सरपंच भी हैं।
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