मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के नेता सीताराम येचुरी ने कहा है कि चुनावी बॉण्ड योजना स्वतंत्र भारत में ‘‘सबसे बड़ा घोटाला’’ है जिसमें ‘‘माफिया की तरह उगाही’’ हुई है।
उच्चतम न्यायालय चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द कर चुका है। बॉण्ड को न्यायालय में चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में सीपीएम भी शामिल थी। येचुरी ने कहा कि इस योजना को लेकर उनका विरोध सिद्धांतों पर आधारित है और चुनावों के लिए सरकार के वित्त पोषण से पारदर्शिता आ सकती है।
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येचुरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “चुनावी बॉण्ड स्वतंत्र भारत में सबसे बड़ा घोटाला बन गया है। इन चुनावी बॉण्ड को लेकर हमने जो अनुमान लगाया था, वही अब सामने आ रहा है। मैंने कहा था कि यह माफिया की तरह जबरन वसूली जैसा होगा। इसे अब हो रहे खुलासों से देखा जा सकता है।’’
सीपीएम नेता ने कहा कि जब योजना की पहली बार घोषणा की गई थी तो उन्होंने आगाह किया था कि ‘इससे साठगांठ के सौदे’ होंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘काले धन से निपटने या उस पर नियंत्रण लगाने के बजाय, आप वास्तव में धन शोधन की अनुमति दे रहे थे। आप काले धन को सफेद में बदलने और वैध बनाने की अनुमति दे रहे थे। कंपनियों ने अपने सालाना मुनाफे से कई गुना ज्यादा कीमत के चुनावी बॉन्ड खरीदे।’’
उन्होंने विभिन्न जांच एजेंसियों की जांच के घेरे में आई कंपनियों द्वारा खरीदे गए बॉण्ड का हवाला देते हुए कहा कि फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल धन शोधन के लिए किया गया। येचुरी ने कहा, ‘‘एक नयी बात जो सामने आई है कि ऐसी दवा कंपनियों ने चुनावी बॉण्ड खरीदे जो उत्पादन के लिए गुणवत्ता नियंत्रण और मानदंडों का उल्लंघन करने को लेकर जांच के दायरे में हैं। यह खतरनाक है।’’
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ईडी समेत जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली और सत्तारूढ़ दल को चुनावी वित्तपोषण के बीच किसी भी तरह के संबंध से इनकार करते हुए कहा है कि ये आरोप सिर्फ धारणा पर आधारित हैं।
शीर्ष अदालत ने 15 फरवरी को अपने ऐतिहासिक फैसले में केंद्र की चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था और बॉण्ड संबंधी विवरण के खुलासे का आदेश दिया था।
यह पूछे जाने पर कि चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता सुनिश्चित करने का क्या तरीका हो सकता है, उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाना चाहते हैं, तो कॉरपोरेट घरानों को चंदा देना चाहिए, लेकिन सीधे राजनीतिक दलों को नहीं।’’
येचुरी ने कहा, ‘‘तो यह हमारे चुनावों को वित्तपोषित करने वाले, हमारे लोकतंत्र को वित्तपोषित करने वाले कारोबारी घरानों का सवाल है, लेकिन इसे सरकारी कोष में जाना चाहिए। चुनावों के लिए सरकार द्वारा वित्त पोषण की व्यवस्था होनी चाहिए।’’
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उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व कानून की तर्ज पर लोकतंत्र में कॉरपोरेट फंडिंग पर कानून बनाया जा सकता है और वे एक कोष में दान कर सकते हैं।
सीपीएम नेता ने कहा, ‘‘निगमों को उस कोष में दान करने की अनुमति दें। उस कोष की निगरानी एक सरकारी एजेंसी द्वारा की जाए। पारदर्शिता होनी चाहिए और मानदंड तय किए जाने चाहिए। नियम बनाए जाने चाहिए, जिनके द्वारा पार्टियों को वह कोष प्राप्त होगा।’’
येचुरी ने बीजेपी पर बॉण्ड दान करने वालों की सूची उपलब्ध नहीं कराने का भी आरोप लगाते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ होने का उसका दावा सिर्फ बयानबाजी है। उन्होंने कहा, ‘‘बीजेपी उन लोगों की सूची प्रदान करने से इनकार कर रही है जिन्होंने उसे ये बॉण्ड दान किए हैं। डीएमके जैसे क्षेत्रीय दलों ने सारी जानकारी दी है।’’
सीपीएम नेता ने कहा, ‘‘भ्रष्टाचार को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी की बयानबाजी सिर्फ खोखली बयानबाजी है। दरअसल, उनके कार्य हमारे देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार में योगदान दे रहे हैं।’’
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येचुरी ने कहा, ‘‘इसके साथ ही, निजी निगमों द्वारा स्थापित चुनावी फंड का एक बड़ा हिस्सा सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के पास चला गया है। आपके पास पीएम-केयर्स है, जहां सरकारी आदेशों का इस्तेमाल सार्वजनिक क्षेत्र से, सरकारी कर्मचारियों से, मेरे जैसे सांसदों और पूर्व सांसदों से भी, आपकी पेंशन से पैसा इकट्ठा करने के लिए किया गया था। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘फिर सरकारी आदेशों के माध्यम से, कोष से पैसे निकाल लिए गए। अब वे कहते हैं कि यह (पीएम-केयर्स) एक निजी कोष है। इसलिए वे जवाबदेह नहीं हैं या उन्हें पारदर्शिता की आवश्यकता नहीं है।’’
येचुरी ने आरोप लगाया, ‘‘मेरा मतलब है कि पूरी व्यवस्था भ्रष्ट हो गई है। यह राजनीति नहीं है...वे सिर्फ व्यापार कर रहे हैं।’’
केंद्र ने पिछले साल दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि पीएम- केयर्स कोष की स्थापना सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में की गई थी, न कि सरकारी फंड के रूप में और इसमें दिया गया दान भारत के समेकित कोष में नहीं जाता है।
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