पूरी दुनिया मे इस वक्त कोरोना वायरस का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है और इस वायरस की वजह से त्यौहारों की रौनक पूरी तरह से उड़ गई है। लोगों के चेहरों पर उदासी है। 26 मई को पूरी दुनिया मे ईद का त्योहार मनाया जायेगा लेकिन इस वक्त जो देश के हालात चल रहे उसे देखा जाए तो लोग इस बार ईद पर गले मिलकर एक दूसरे को त्यौहार की मुबारकबाद नही दे सकेंगे।
चीफ इमाम ऑफ इंडिया डॉ. इमाम उमेर अहमद इल्यासी ने बताया ,कोरोना वायरस बीमारी हमेशा तो नहीं आती लेकिन ईद हमेशा आती है। पूरी दुनिया कोरोना वायरस से ग्रस्त है और ईद की खुशी यही है की हम गले न मिले, और हाथ न मिलाये।"
उन्होंने आगे कहा, ईद पर गले मिलने का मतलब होता है कि अगर आपकी किसी से दुश्मनी या मन मुटाव है तो उनको बुला कर गले मिलें जिससे कि वो मन मुटाव खत्म हो और फिर से दिल मिल सकें। इस वक्त किसी से दुश्मनी निभानी है तो गले मिलना चाहिए, अगर मोहब्बत निभानी है तो दूर रहना चाहिए। अगर आप इस वक्त दूर से ही सलाम करते हो या मुबारकबाद देते हो, तो हम खुद भी बचते और दूसरों को भी बचाते है। ईद जिंदा करने का नाम है, ईद खुशियों का नाम है और हम यही तोहफा दे सकते हैं।"
आपको बता दें की ईद की शुरूआत सुबह दिन की पहली नमाज के साथ होती है। जिसे सलात अल-फज्र भी कहा जाता है। इसके बाद पूरा परिवार कुछ मीठा खाता है। फिर नए कपड़े पहनकर लोग ईद की नमाज पढ़ने के लिये जाते हैं। ईद की नमाज पढ़ने के बाद एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते है।
जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने बताया, देश में कोरोना वायरस बढ़ता जा रहा है और यह जरूरी है कि ईद के समय मे एहतियात बरता जाए। ईद पर जैसे लोग गले मिलते उसमें अब हमको एहतियात बरतना होगा। हालात ऐसे चल रहे हैं कि हमें इस वक्त टेलीफोन से ही मुबारकबाद देनी होगी यही तरीका इस वक्त हो सकता है।
उन्होंने कहा, जो गाइडलाइन्स मेडीकल एक्सपेर्स और डब्लूएचओ की तरफ से आ रही हैं। हमें उन सभी बातों को अमल करना होगा। हमारे अपनों के लिए, हमारे परिवार के लिए हमारे पड़ोसी और मुल्क में रहने वाले लोगों के लिए। हालातों ने मजबूर कर दिया इस बीमारी की वजह से लोगों में बेरोजगारी हुई है। इससे आज लोग परेशान हैं अपने भविष्य के लिए परेशान है और आज भी लोगों के पास खाने के लिए पैसा नहीं है।
ईद का त्योहार सबको साथ लेकर चलने का संदेश देता है। ईद पर हर मुसलमान चाहे वो अमीर हो या गरीब हो सभी एक साथ नमाज पढ़ते हैं और एक दूसरे को गले लगाते हैं।
इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और लखनऊ ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने बताया ईद पर लोग अपने घरों में सिवाइं और पकवान तो जरूर बनाएं। ईद की खुशी जरूर जाहिर करें लेकिन ना किसी से हाथ मिलाए और ना किसी के गले मिले। हमने अपील भी की है कि जिस तरह घर में लोग अपने बजट बनाते हैं, उस बजट का 50 प्रतिशत गरीब लोगों को दान करें क्योंकि पूरे मुल्क में लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं और लोगों को ईद से पहले फितरा (चैरिटी) भी दे दें जिससे गरीब भी ईद की खुशियां मना सकें और ईद में शामिल हो सकें।
इस्लाम में चैरिटी ईद का एक मुख्य पहलू है। हर मुसलमान को पैसा, खाना और कपड़े के रूप में कुछ न कुछ दान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
आगरा जामा मस्जिद के इमाम इरफान उल्हा निजाम ने बताया, खुशी तो रहेगी लेकिन मनाई नहीं जा सकेंगी ईद पर बहुत एतिहात की जरूरत है। ईद उल फितर यानी रोजा तोड़ने की खुशी, जाहिर सी बात है जिस इंसान ने रमजान के महीने में रोजा रखा होगा। उनकी खुशी उतनी ही होगी लेकिन इस बात का गम जरूर रहेगा ईद की नमाज मस्जिदों में नहीं पढ़ पाएंगे।
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