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जांच में ‘कॉपी पेस्ट’ कर रहे हैं ईडी अधिकारी, निदेशालय ने दिया मौलिक पड़ताल का निर्देश

ईडी ने यह निर्देश देवास मल्टीमीडिया से जुड़े धनशोधन के एक मामले को लेकर दिया है, जिसकी सुनवाई के दौरान एक ट्रिब्यूनल ने ईडी के कामचलाऊ जांच करने के तौर-तरीकों और दूसरी संघीय एजेंसी के तथ्यों को कॉपी-पेस्ट करने को लेकर खिंचाई की थी।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

देश में इन दिनों कई विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई कर चर्चा में रहने वाली केंद्रीय वित्तीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अपने ही अधिकारियों की जांच की शैली को लेकर परेशान है। ईडी ने अपने अधिकारियों को दिशानिर्देश जारी कर मामलों की जांच के दौरान अन्य जांच एजेंसियों पर निर्भरता के बदले खुद मौलिक जांच करने के लिए कहा है।

देश की प्रमुख जांच एजेंसी ने यह आदेश देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड धनशोधन रोकथाम अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) मामले को लेकर दिया है, जिसकी सुनवाई के दौरान ट्रिब्यूनल ने ईडी के कामचलाऊ काम करने के तौर-तरीके और दूसरी संघीय एजेंसी के तथ्यों को कॉपी-पेस्ट करने को लेकर खिंचाई की थी।

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बता दें कि ट्रिब्यूनल के समक्ष देवास मल्टीमीडिया का मामला 11 सितंबर 2019 को आया था, जिसमें प्राधिकरण ने पाया कि मामले में वास्तविक जांच के स्थान पर कॉपी-पेस्ट किया गया है।ट्रिब्यूनल ने सख्त लहजे में एजेंसी को किसी भी मामले की जांच के दौरान 'अपने स्वतंत्र दिमाग' का प्रयोग करने के लिए कहा था।

मामले की सुनवाई के दौरान एजेंसी की खराब कोशिश से गुस्साए अपीलीय ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह और सदस्य जी सी मिश्रा ने एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी द्वारा ईडी को देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड की संपत्ति जब्त करने की इजाजत देने के आदेश को खारिज कर दिया था।

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संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई बेंगलुरू स्थित देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की वाणिज्यिक इकाई एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड के साथ सौदे में कथित घोटाले को लेकर शुरू की गई थी। ट्रिब्यूनल ने कहा, "स्पष्ट है कि प्रोविजनल अटैचमेंट ऑर्डर (पीएओ), वास्तविक शिकायत और विवादित आदेश को सीबीआई के आरोपपत्र से बस कॉपी-पेस्ट कर लिया गया है।"

ट्रिब्यूनल के आदेश के अनुसार, "आश्चर्यजनक तरीके से, दस्तावेजों की सामग्रियां लगभग समान हैं और जो दिखाता है कि प्रतिवादी नंबर 1 (प्रवर्तन निदेशालय, बेंगलौर के उपनिदेशक), पीएओ को लिखने वाले और वास्तविक शिकायत और एडजुडिकेटिंग अथारिटी यानी खारिज आदेश के लेखक ने अपने दिमाग का प्रयोग नहीं किया।"

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ट्रिब्यूनल ने पाया कि जिस व्यक्ति ने संपत्तियों को जब्त करने का आदेश दिया था, वह न्यायिक सदस्य ही नहीं था। ट्रिब्यूनल पीठ ने कहा, "आदेश को बहुत ही सामान्य तरीके से पारित कर दिया गया। इस तरह के गंभीर मामले में कॉपी-पेस्ट स्वीकार्य नहीं है।"

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