पश्चिम बंगाल सरकार ने 'द्वार राशन योजना' को अवैध घोषित करने के कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। बुधवार को न्यायमूर्ति चित्तरंजन दास और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध राय की खंडपीठ ने 'द्वार राशन योजना' को अवैध बताते हुए कहा कि उक्त योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के विपरीत है, इसलिए इसे बंद कर दिया जाना चाहिए।
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राज्य के कानून विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर सुप्रीम कोर्ट के सामने कुछ बिंदुओं को उजागर किया। उन्होंने कहा, परियोजना शुरू होने के महीनों बाद उचित मूल्य की दुकान के डीलरों के एक वर्ग ने तत्कालीन कलकत्ता हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा की एकल-न्यायाधीश पीठ से संपर्क किया। तब उस पीठ ने 'द्वार राशन योजना' को खत्म करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। न्यायमूर्ति सिन्हा ने तब अपने कारण बताए कि उन्होंने याचिका खारिज क्यों की। साथ ही कहा कि हमारे वकील आदेश की समीक्षा करेंगे।
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दूसरी बात, जिसपर राज्य सरकार ध्यान खींचना चाहती है, वह यह है कि 'द्वार राशन योजना' को शुरू करने में करोड़ों रुपए खर्च किया जा चुका है, अब इस योजना को बंद करने पर भारी नुकसान होगा। हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा इस बात पर प्रकाश डाला गया कि परियोजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के विपरीत है।
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कलकत्ता हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा, याद रखें कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने भी राज्य के लोगों के दरवाजे पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करने का एक समान प्रयास किया था। हालांकि, इस योजना को भी अदालत के निर्देश के बाद बंद करना पड़ा था।
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अर्थशास्त्री शांतनु बसु के अनुसार, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में संबंधित विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस दोनों के लिए वोट रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा 'घर पर राशन' योजना बनायी गई थी। उन्होंने कहा, इस अभियान से चुनावों में आप और तृणमूल कांग्रेस दोनों ने राजनीतिक लाभ प्राप्त किया होगा, लेकिन योजनाओं पर कानूनी रोक लगने से दोनों राज्यों की सरकारों को जोर का झटका लगा है।
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