कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने बुधवार को कांग्रेस सरकार द्वारा 27 जुलाई को होने वाली नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करने के फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा कि राज्य के साथ केंद्रीय बजट में अनुचित व्यवहार किया गया और उसके हितों की रक्षा नहीं की गई।
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने मंगलवार को कहा था कि राज्य की मांगों की केंद्रीय बजट में ‘अनदेखी’ करने के खिलाफ यह फैसला लिया गया है।
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शिवकुमार ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘जब कोई ‘नीति’ ही नहीं है तो नीति आयोग की बैठक में शामिल होने का क्या औचित्य है? कर्नाटक के साथ केंद्रीय बजट में अनुचित व्यवहार किया गया है। राज्य को कोई परियोजना नहीं मिली और उसके हितों की भी रक्षा नहीं की गई। हमने नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करने का फैसला किया है और इसके बजाय प्रदर्शन करेंगे।’’
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सिद्धरमैया ने कहा, “कर्नाटक की आवश्यकताओं पर चर्चा करने के लिए नई दिल्ली में सभी दलों के सांसदों की बैठक बुलाने के मेरे गंभीर प्रयासों के बावजूद, केंद्रीय बजट में हमारे राज्य की मांगों की अनदेखी की गई।”
उन्होंने कहा, “बैठक में शामिल हुईं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कर्नाटक के लोगों की चिंताओं की अनदेखी की। हमें नहीं लगता कि कर्नाटक वासियों की बात सुनी गई, लिहाजा नीति आयोग की बैठक में शामिल होने का कोई औचित्य नहीं है।”
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इस बीच, वृहत बेंगलुरु शासन (जीबीए) विधेयक का भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा विरोध किए जाने के सवाल पर शिवकुमार ने कहा, ‘‘ वे मुद्दे का राजनीतिकरण करना चाहते हैं। मैं जल्दबाजी में कुछ नहीं करना चाहता हूं, मैंने केवल उसे सदन में रखा है। उन्हें इस पर विस्तृत बहस करने दें और उसके बाद फैसला किया जाएगा। बेंगलुरु का विस्तार अनियंत्रित तरीके से हो रहा है और यहां सुशासन की जरूरत है।’’
कर्नाटक सरकार ने मंगलवार को प्रस्तावित विधेयक विधानसभा में पेश किया जिसका उद्देश्य नगर निकाय प्रशासन के विकेंद्रीकरण करने के वास्ते अधिकतम 10 नगर निगम बनाना है।
विधेयक में जीबीए की स्थापना का प्रस्ताव है, जिसके पदेन अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे, उपाध्यक्ष बेंगलुरु के प्रभारी मंत्री होंगे तथा सदस्य सचिव ग्रेटर बेंगलुरु प्राधिकरण के मुख्य आयुक्त होंगे।
पीटीआई के इनपुट के साथ
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