बाबा रामदेव एक योग गुरू हैं, जो आयुर्वेद, उद्योग, राजनीति और कृषि के क्षेत्र में अपने काम के लिए जाने जाते हैं। क्या योग गुरू के एफएमसीजी उद्योग के लिए कौड़ी के भाव में बड़े पैमाने पर दी गई जमीनों की वजह से सरकार और देश को राष्ट्रीय नुकसान उठाना पड़ा है?
सीबीआई कोर्ट द्वारा 2जी मामले के आरोपियों को बरी किए जाने के बाद विभिन्न वर्गों से आ रही प्रतिक्रियाओं के संदर्भ में ये सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है। ‘संभावित नुकसान’ या ‘राष्ट्रीय नुकसान’ के विचार को भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखाकार विनोद राय द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था जिन्होंने एक रिपोर्ट के जरिये कहा कि अगर यूपीए ने 2007 में 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की होती तो भारत सरकार को 1.76 लाख करोड़ का फायदा होता।
अजीब बात है कि इस मामले में सीबीआई द्वारा कुछ बड़े आरोपियों को गिरफ्तार करने और 2जी मामले में चार्जशीट दायर होने के बाद संभावित नुकसान का यह तर्क नहीं सुना गया और उस चार्जशीट को भी पिछले दिनों सीबीआई की विशेष कोर्ट ने खारिज कर दिया।
निश्चित तौर पर किसी ने इस बात का हिसाब नहीं लगाया है कि रामदेव ने सरकारी खजाने को कितना ‘संभावित नुकसान’ पहुंचाया है। और कोई भी ऐसा नहीं कर सकेगा जब तक केन्द्र में कोई और सरकार या विनोद राय जैसा कोई सीएजी नहीं आता है। लेकिन इस बीच यह खबरें जरूर आईं कि बीजेपी शासित राज्यों में पतंजलि योगपीठ को सैकड़ों एकड़ जमीन कौड़ियों के भाव में दे दिया गया।
अगर स्पेक्ट्रम की नीलामी न करना सरकारी खजाने को ‘संभावित’ नुकसान है तो प्रतिस्पर्धा आधारित बोली के तहत जमीन की नीलामी नहीं करने से सरकारी खजाने को अनुमानित नुकसान तो हुआ ही होगा। बीजेपी भी यह दलील दे सकती है कि गैर-बीजेपी सरकारों ने भी निजी हाथों को कम दाम में जमीनें दी हैं। लेकिन पतंजलि योगपीठ को इसके कमर्शियल कार्यों के लिए सस्ती जमीन देने का सरकारों का निर्णय संदेहास्पद प्रतीत होता है।
अगर मीडिया में आई खबरों की मानें तो मोदी सरकार ने रामदेव को अंडमान में एक द्वीप देने का भी प्रस्ताव दिया था। जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी का यह बयान मीडिया में आया कि केंद्र सरकार रामदेव को एक द्वीप देना चाहती थी ताकि वे वहां योगा रिसोर्ट बना सकें।
जमीन स्पेक्ट्रम की तरह ही एक मूल्यवान राष्ट्रीय संसाधन है, और शायद थोड़ा ज्यादा ही क्योंकि जमीन के कई तरह के इस्तेमाल हो सकते हैं। और जब सरकारें योगा गुरू की एफएमसीजी कंपनी के लिए जमीन मुहैया कराने में उतावलापन दिखलाती है तो सवाल उठने लाजिमी हैं। खबरों की मानें तो महाराष्ट्र सरकार ने रामदेव को नागपुर में संतरा प्रोसेसिंग प्लांट लगाने के लिए 600 एकड़ जमीन दी है। असम की बीजेपी सरकार भी उन्हें जमीन देने में पीछे नहीं रही।
यह बात कोई नहीं जानता है कि बाबा रामदेव ने किस कीमत पर कितनी जमीनें हासिल कीं। भ्रष्टाचार-विरोधी बाबा रामदेव 2014 से पहले पारदर्शिता पर भाषण देते हुए थकते नहीं थे, लेकिन उसके बाद अपने बिजनेस को लेकर बहुत पारदर्शी नहीं रहे हैं। लेकिन जो बात हम जानते हैं वह यह है कि रामदेव के भीतर जमीन पाने की कभी न पूरी होने वाली भूख है और फॉर्ब्स पत्रिका ने उनके पार्टनर बालकृष्ण को अमीर भारतीयों की अपनी सूची में भी जगह दी है।
कुछ लोगों ने उनके लेन-देन पर सवाल उठाए हैं, लेकिन उसका तभी फायदा होगा जब सीबीआई या कोर्ट इन मामलों की सीबीआई जांच कराती है। यह भी ठीक होगा अगर उसके बाद बीजेपी के मंत्री, मुख्यमंत्री और बाबा खुद आपराधिक आरोपों से दोषमुक्त हो जाते हैं। ए. राजा की तरह ही वे भी कह सकते हैं कि उन्होंने ऐसा कर एक क्रांति को जन्म दिया।
लेकिन निश्चित रूप से वे सरकारी खजाने को संभावित नुकसान लगाने के आरोप से मुक्त नहीं हो सकते। कल्पना कीजिए कि इन जमीनों को अगर किसी मल्टीनेशनल या औद्योगिक घराने को बाजार की कीमत पर बेचा जाता तो इससे कितनी धन प्राप्त हो सकता था!
बिडंबना यह है कि बीजेपी जैसी दक्षिणपंथी पार्टी जो बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का गुणगान करते हुए थकती नहीं और ‘समाजवादी’ विचारों का उपहास उड़ाती रहती है, वह बाबा को सस्ती जमीन देना जरूरी समझती है। अगर राबर्ट वाड्रा ने जमीन के लेन-देन से मुनापे कमाए तो बाबा ने भी जरूर ही कमाए होंगे। लेकिन वाड्रा सरकारी खजाने को संभावित या किसी और तरह के नुकसान पहुंचाते हुए नजर नहीं आते, कम से कम अभी तक नहीं। हमें इतंजार है कि सीएजी रामदेव को दी गई जमीन से सरकारी खजाने को हुए नुकसान पर कब एक रिपोर्ट जारी करता है।
Published: 23 Dec 2017, 6:08 PM IST
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Published: 23 Dec 2017, 6:08 PM IST