सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला और शहजाद पूनावाला ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर मांग की है कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा के बाद लागू हुई नोटबंदी के बाद इस वजह से अपनी जान गंवा चुके लोगों के परिवारों को मुआवजा दिया जाए।
पूनावाला बंधुओं ने आयोग को बताया कि नोटबंदी से पैदा हुए संकट से निपटने के लिए बैंक पूरी तरह से तैयार नहीं थे और एटीएम में नगद की भारी कमी हो गई थी। इसकी वजह से देश के नागरिकों को काफी परेशानियां झेलनी पड़ी। यह वाकया साफ-साफ मोदी सरकार की गैर-जिम्मेदाराना रवैये को दर्शाता है।
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ऐसी खबर आई थी कि बीजेपी नेता और केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा के अस्पताल में एक बच्चे की इसलिए मौत हो गई क्योंकि अस्पताल के कर्मचारी ने पुराने नोट स्वीकार करने से मना कर दिया। गुजरात में दो बच्चों की मां एक 50 साल की महिला ने आत्महत्या कर ली थी क्योंकि किराना दुकान ने 500 और 1000 के पुराने नोट लेने से मना कर दिया था। तेलगांना की एक 44 साल की महिला ने इसलिए आत्महत्या कर ली थी क्योंकि उसके वर्षों में जमा किए गए 5 लाख से ज्यादा रुपए अवैध हो गए। 60 साल के फैक्टरी कर्मचारी अजीज अंसारी की बैंक के लाइन में घंटों लगे रहने के बाद दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। इनके अलावा ऐसी कई घटनाओं का उन्होंने अपने पत्र में उल्लेख किया है जिसमें लोगों की जान गई थी।
पूनावाला ने आयोग से आग्रह किया है कि वह केन्द्र सरकार को यह निर्देश दें कि नोटबंदी की वजह से जान गंवा चुके लोगों के पीड़ित परिवारों की सहायता और पुनर्वास के लिए उन्हें मुआवजा दिया जाए और इसके लिए 1 करोड़ रुपए का कोष बनाया जाए।
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