गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजे योगी और बीजेपी के लिए झटका और चिंता लेकर आए थे तो गैर बीजेपी मोर्चे के लिए राहत और उम्मीद का संदेश। इसी उम्मीद से गैर-बीजेपी सियासी शक्तियों न हाथ मिलाए और कर्नाटक में उन्हीं नियमों का इस्तेमाल कर सरकार बना ली जिसे बीजेपी हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल कई राज्यों में सरकार बनाती रही थी। इसी भरोसे और आत्मविश्वास के साथ जब संयुक्त विपक्ष उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में उतरा तो नतीजे उम्मीद के मुताबिक आए और दोनों ही सीटें बीजेपी से छीनने में कामयाबी मिली। इन नतीजों ने विपक्ष के आत्मविश्वास को और मजबूत किया।
बदलती सियासी फिजा के भांपने में माहिर आम आदमी पार्टी ने इस माहौल को अच्छे से समझा और सक्रिय हो गई। अब राजनीतिक हल्कों में जोरों से चर्चा है कि आम आदमी पार्टी आने वाले दिनों में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है। दोनों ही पार्टियों के नेता इस बारे में ट्वीट कर पानी की थाह लेने की कोशिश कर रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक इस चर्चित गठबंधन को लेकर दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच बातचीत की शुरुआत भी हुई है, लेकिन फिलहाल सिर्फ गठबंधन का जिक्र भर आया है। इस बारे में बात करने पर शीला दीक्षित ने कहा कि, “पता नहीं ऐसी चर्चा क्यों हो रही है, क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं है। आप या किसी भी दल के साथ गठबंधन का फैसला पार्टी हाईकमान और कांग्रेस कार्यसमिति लेती है।” यह पूछे जाने पर कि क्या गठबंधन से कांग्रेस को फायदा होगा, उन्होंने कहा कि, “मैं अभी कुछ नहीं कह सकती, यह सब इस पर निर्भर करता है कि आपको बदले में क्या मिल रहा है और मैं नहीं समझती कि इन सब बातों का कोई आधार है। और अगर आधार है भी, तब भी मैं कोई कयास नहीं लगाना चाहती।”
शीला दीक्षित के पूर्व ओएसडी और कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस बीच एक ट्वीट के जरिए ऐसे किसी भी गठबंधन का कड़ा विरोध जताया। उन्होंने लिखा कि, “कुछ लोग और कुछ पार्टियां जीतने वाले दल के साथ आने की कोशिश कर रहे हैं। पहले यह बीजेपी थी और अब कांग्रेस है। हमें ऐसे बेशर्म अवसरवादियों से सावधान रहना होगा।”
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उधर आप के दिल्ली संयोजक और प्रवक्ता दिलीप पांडे ने अपने ट्वीट से इस बात की पुष्टि की कि कुछ तो हो रहा है। उन्होंने लिखा कि, “कुछ वरिष्ठ कांग्रेस नेता, आम आदमी पार्टी के संपर्क में हैं।”
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इन ट्वीट्स और बयानों के अलावा भी कुछ फार्मूले सामने आ रहे हैं। इनमें 7-0, 6-1, 5-2, 4-3 जैसे फार्मूले सामने आए हैं।
इस फार्मूले के तहत आम आदमी पार्टी अगले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ेगी, ऐसे में दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर होगी। आप और कांग्रेस मिलकर बीजेपी को हराने की रणनीति पर काम करेंगे। बदले में कांग्रेस 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को जूनियर पार्टनर बनाकर गठबंधन के रूप में दिल्ली का चुनाव लड़ेगी। इस फार्मूले को लेकर आप बहुत ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आती, क्योंकि उसे लगता है कि इस तरह उसके पास अपने किसी सदस्य को दिल्ली से लोकसभा में भेजने का मौका हाथ से निकल जाएगा। उधर कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता लोकसभा सीटों के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव त्यागने को तैयार दिखते हैं। इस फार्मूले पर अमल की संभावना 50-50 है।
इसके तहत आप दिल्ली में 6 सीटों पर और कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर चुनाव लड़ेगी। बदले में आप राजस्थान, मध्य प्रदेष और पंजाब में लोकसभा चुनाव में कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी। आप इस फार्मूले को पक्ष में दिखती है, क्योंकि उसे लगता है कि इस बहाने वह अपने कुछ सदस्यों को लोकसभा भेज सकती है। लेकिन, कांग्रेस को यह फार्मूला ज्यादा नहीं भा रहा। ऐसा भी कहा जा रहा है कि शीला दीक्षित और सज्जन कुमार जैसे दिल्ली के कद्दावर नेताओं को फायदा मिलेगा क्योंकि वे अपने बेटों को कांग्रेस के हिस्से में आई एकमात्र सीट से टिकट दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देंगे। उस फार्मूले पर अमल की संभावना कम ही लगती है।
इस व्यवस्था में कांग्रेस 5 सीटों पर और आप दो सीटों पर चुनाव लड़ेगी। साथ ही आप राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी। आप को इस फार्मूले पर एतराज है क्योंकि इससे उसका मकसद हल नहीं होता। कांग्रेस को यह फार्मूला सबसे ज्यादा व्यवहारिक लगता है। इस फार्मूले पर अमल की संभावना 60 फीसदी है।
यह सबसे व्यवहारिक फार्मूला दिखता है, क्योंकि इसमें आप को 4 और कांग्रेस के हिस्से में 3 सीटें आएंगी। कांग्रेस को वह तीन सीटें मिलेंगी जहां पिछले एमसीडी चुनाव में उसका वोट प्रतिशत 21 फीसदी से ज्यादा था और आप को वह सीटें मिलेंगी जहां उसका वोट प्रतिशत 26 फीसदी से ज्यादा था। स्थानीय कांग्रेस नेता हालांकि इस फार्मूले के पक्ष में नहीं दिखते, लेकिन इसकी संभावना 70 फीसदी है।
गठबंधन की चर्चाओं से कांग्रेस के स्थानीय नेता बहुत खुश नजर नहीं आते। दिल्ली के पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री राजकुमार चौहान का कहना है कि, “हमें गठबंधन के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि इससे स्थानीय कांग्रेस को नुकसान होगा और दिल्ली में भी यूपी जैसा हाल हो जाएगा। दिल्ली के कांग्रेस कार्यकर्ताओँ ने बहुत बुरी स्थितियां देखी हैं, और अब जब हालात बेहतर हो रहे हैं तो हमें गठबंधन की बात नहीं करनी चाहिए।” वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्र और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय माकन कहते हैं कि, “2015 से ही कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों में उसके उम्मीदवार जीते, एमसीडी चुनावों और उपचुनावों में भी कांग्रेस की स्थिति बेहतर हुई है। हमारा वोट शेयर बढ़ा है, जबकि आप का कम हो रहा है।”
गठबंधन की चर्चाओँ से दिल्ली के कांग्रेसी चिंतित दिख रहे हैं। माकन कहते हैं कि, “दिल्ली में एक बड़ा तबका ट्रेडर्स का है जो बीजेपी से नाराज है, साथ ही वे आप को भी वोट नहीं देना चाहते और कांग्रेस के पक्ष में हैं, लेकिन अगर गठबंधन हुआ तो वे कांग्रेस से दूर होकर बीजेपी के पाले में चले जाएंगे। और कांग्रेस का हाथ आया मौका निकल जाएगा।” केजरीवाल के ट्वीट पर माकन ने कहा कि, “अब आपको कपिल सिब्बल, पवन खेड़ा और शीला दीक्षित से माफी मांगनी होगी या फिर चिदंबरम से जुड़ना होगा या मनमोहन सिंह की तारीफ करनी होगी, लेकिन आप तो अन्ना की टीम के साथ बीजेपी के समर्थन से कांग्रेस के खिलाफ झूठ फैला रहे थे और आप की ही वजह से मोदी सत्ता तक पहुंचे हैं।”
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उधर आम आदमी पार्टी किसी भी कीमत पर कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहती है। माहौल बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्वीट में मनमोहन सिंह की तारीफ की और अजय माकन को उनके बेटे के बोर्ड परीक्षाफल पर बधाई भी दी। बताया जाता है कि इस मुद्दे पर ममता बनर्जी भी केजरीवाल की तरफदारी कर सकती हैं। लेकिन कांग्रेस के स्थानीय नेताओँ को लगता है कि अगर आप के साथ गठबंधन हुआ तो कार्यकर्ता पार्टी का साथ छोड़कर बीजेपी या आप के साथ चले जाएंगे। 2019 ज्यादा दूर नहीं है, समय के साथ सियासत की शतरंज पर क्या बिसात बिछेगी, पता चल ही जाएगा।
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