जिस मंडावली में मंगलवार को तीन बच्चियों की भूख से मौत हो गई, वह उस चमकदार दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे से थोड़ी ही दूर है जिसका उद्घाटन लगभग महीना भर पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था।
जिस बिल्डिंग में भूख से तीन बच्चियों की मौत हुई, उसी बिल्डिंग में माया नाम की 40-45 साल की एक महिला रहती हैं। एक दिहाड़ी मजदूर की पत्नी और दो बच्चों की मां माया भी घनघोर गरीबी में जीती हैं और उन्हें भी अपने परिवार को चलाने के लिए काम ढूढ़ने में काफी मुश्किल आती है। वह कहती हैं, “हमको आप कहोगे कि मेरे घर का बर्तन धो दो, तो हम वो भी कर देंगे। आप लोग का जूठा धोकर ही तो चलता है हमारा घर।” वे एक ऐसे कमरे में रहती हैं जिसमें न तो कोई खिड़की है और न ही कोई टॉयलेट।
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जिस बिल्डिंग में मंगल सिंह की तीन बेटियां मरी पाई गईं और जहां माया रहती हैं, उसी घर में बिहार, यूपी और पश्चिम बंगाल के 14 प्रवासी परिवार भी रहते हैं। खाने की कमी, साफ-सफाई और बुनियादी सुविधाओं का अभाव इस बिल्डिंग में रहने वाले सभी घरों की समस्या है। अजीब बात यह है कि मंडावली के साकेत ब्लॉक के गली नंबर 13 की यह बिल्डिंग नव-निर्मित दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे से कुछ ही मिनटों की दूरी पर है।
मंगल सिंह का घर उन मकानों का हिस्सा है जो स्थानीय लोगों द्वारा कूड़ा फेंकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली खाली जगह के पास बनी हैं। उस जगह पर ऑटो वाले तो क्या, ई-रिक्शा वाले भी आपको आसानी से ले जाने के लिए तैयार नहीं होते। गुरुवार को वह जगह विधायकों, सांसदों, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और वीआईपी लोगों से भरी हुई थी। उस इलाके की विधानसभा सीट से दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया विधायक हैं और सांसद बीजेपी के महेश गिरि हैं।
चार बच्चों की मां रजनी बताती हैं, “ऐसा पहली बार हुआ है कि हमारे इलाके में सांसद और विधायक आए हैं। यहां सड़कों पर नाली का पानी हमेशा बहता रहता है। 14 लोगों के परिवारों के लिए हमारे यहां सिर्फ दो साझा टॉयलेट हैं। हर परिवार में 4 से 5 सदस्य हैं। खुले में शौच करना यहां एक सामान्य बात है।”
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40-45 की उम्र की मनोरमा भी कहती हैं, “मुझे याद नहीं कि आखिरी बार दिल्ली नगर निगम के लोगों को इलाके में मैंने कब देखा था। जलनिकासी की व्यवस्था सही नहीं होने की वजह से होने वाली जलभराव की समस्या के हम आदी हो चुके हैं। यह सारे नेता यहां सिर्फ अपने फायदे के लिए हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में यहां कई परिवार भूखमरी का शिकार हैं लेकिन मीडिया या राजनीतिक दलों से कोई भई हमसे मिलने नहीं आता।”
शनिवार से पहले जहां मंगल सिंह रहते हैं, उस बिल्डिंग में रहने वाले लोगों का भी यही कहना है। जिस हैंडपंप से वे नहाने जाते थे, उस जगह को भी कचरा फेंकने के काम में लाया जाता है।
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जिस कमरे में मंगल सिंह और उनका परिवार 21 जुलाई के पहले तक रहा करता था, उसका आकार एक कार के बराबर है। उसमें कोई खिड़की नहीं है। बिल्डिंग के मालिक कुशल मेहरा हैं और 10 प्रवासी मजदूर उसमें रहते हैं। गली बहुत संकरी है और एक दुर्गंध से भरी रहती है जहां सड़क पर जानवरों और इंसानों का मैला फैला रहता है। जलनिकासी भरे हुए कचड़े से बाधित हो गई है। गली इतनी संकरी है कि वहां सूरज की रोशनी भी नहीं आती और इमारतें दशकों पुरानी हैं और जर्जर हो चुकी हैं।
उस बिल्डिंग में रहने वाले और एक होटल में काम करने वाले संतोष बताते हैं कि इस इलाके की स्थिति यही थी जब तीन महीने पहले वे यहां रहने आए थे। वे कहते हैं, “यहां पीने के पानी की कोई सप्लाई नहीं है। हम नहाने, पीने और खाना बनाने के लिए ट्यूबवेल का ही पानी इस्तेमाल करते हैं।”
दिल्ली में कई जगहें मंडावली जैसी हैं। जाफराबाद, बदरपुर, संगम विहार, बुराड़ी और त्रिलोकपुरी को उस फेहरिस्त में रखा जा सकता है। बेहतर जिंदगी और मौकों की तलाश में पूरे देश से प्रवासी बड़े शहरों में आते हैं लेकिन उन्हें इतनी मुश्किलों में जीवन जीना पड़ता है जो कई बार जानवरों के रहने लायक भी नहीं होता।
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