दारुल उलूम देवबंद ने अपने एक अहम फतवे में ब्याज की रकम से गरीबों की मदद करने को जायज करार दिया है। मुफ्तियों की खंडपीठ ने कोरोना की वजह से देश में लागू लॉकडाउन के चलते विकट परिस्थितियों को देखते हुए ये फतवा दिया है। साथ ही मशवरा दिया गया है अधिक से अधिक लोगो को ऐसा करना चाहिए।
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फतवा दारुल उलूम देवबंद के तीन सदस्यीय पैनल ने जारी किया है। इसमें मशहूर आलिम ए दीन मुफ़्ती महमूद बुलंदशहरी के भी हस्ताक्षर हैं। फतवा को मुफ़्ती नोमान ने कलमबंद किया और इस पर रिसर्च मुफ़्ती हबीबुर्रहमान खैराबादी ने भी की है। उनका कहना है कि फतवा काफी अध्ययन करने के बाद जारी किया गया है। इसे 25 अप्रैल को जारी किया गया।
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बता दें कि कर्नाटक निवासी मोहम्मद उसामा ने दारुल उलूम के इफ्ता विभाग में लिखित सवाल किया था कि उनकी मस्जिद के बैंक अकाउंट में काफी रकम ब्याज की जमा है। वर्तमान में देश के भीतर कोरोना की वजह से लॉकडाउन लागू है जिसमें बहुत से गरीब लोग परेशान हैं और उनके पास खाने के लिए राशन तक नहीं है। ऐसी विकट परिस्थितियों में क्या उक्त ब्याज की रकम से जरूरतमंदों की मदद की जा सकती है।
जिसके जवाब में कहा गया कि ब्याज़ इस्लाम मे पूरी तरह हराम है लेकिन लॉकडाऊन के दौरान बैंक से आपकी जमा पर मिले ब्याज़ से तंगहाल और जरुरतमंद लोगों की मदद की जा सकती है।ब्याज़ की इस रक़म को व्यक्तिगत रूप से और मस्जिद के लिए इस्तेमाल नही किया जा सकता।अलबत्ता इस रक़म से गरीबों की मदद की जा सकती है। इससे अगर आप किसी को राशन खरीद कर देना चाहते हैं, तो यह अच्छा है। ऐसा किया जा सकता है। इससे दो बड़े फायदे हैं एक तो आप ब्याज़ लेने से बच जाएंगे और दूसरे किसी जरूरतमंद की मदद भी हो जाएगी।
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गौरतलब है कि इसी सप्ताह मौलाना अरशद मदनी ने भी अपील जारी करके कहा था कि इस बार जमीयत को चंदा न दिया जाए बल्कि इस पैसे से अपने पड़ोसी की तकलीफ को समझकर उसकी मदद की जाएं भले ही हिन्दू हो, इस मदद में किसी तरह का कोई भेदभाव न किया जाये।जरूरतमंद लोगों की बिना किसी भेदभाव के मदद करेंगे ।
गौरतलब है कि इसी सप्ताह मौलाना अरशद मदनी ने भी अपील जारी करके कहा था कि इस बार जमीयत को चंदा न दिया जाए बल्कि इस पैसे से अपने पड़ोसी की तकलीफ को समझकर उसकी मदद की जाएं भले ही हिन्दू हो,इस मदद में किसी तरह का कोई भेदभाव न किया जाए।
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मौलाना शुऐब आलम क़ासमी सिकन्दरपुरी के मुताबिक कि इस स्थिति में गरीब और ज़रूरतमंद लोगों की जहां तक हो सके ज़्यादा से ज़्यादा मदद करनी चाहिए,वैसे भी रमज़ान का मुबारक महीना है जिसमें गरीबों पर खर्च करना बहुत बड़ा सवाब का काम है।
इस फ़तवा के बाद मुसलमानों के बीच से भी सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है। मेरठ के हाजी नफ़ीस कहते हैं "मुसलमान मूलतः सिर्फ ब्याज़ के पैसे से ही मदद नही कर रहे हैं मगर, यह कारोबारी मुसलमानों के लिए काफी जरूरी रहबरी है। यक़ीनन अब बड़े पैमाने पर लोगो की मदद की जाएगी। हमें इस मुश्किल में सबके साथ खड़े रहना है।
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