राजस्थान की भाजपा सरकार ने प्रशासनिक तंत्र को पूरी तरह से दलित आदिवासी समुदाय के लोगों का दमन करने की खुली छूट प्रदान कर दी है। राज्य में 2 अप्रैल के भारत बंद के दौरान कुछ स्थानों पर हुई छिटपुट उपद्रव की घटनाओं की आड़ में अनुसूचित जाति और जनजाति के आंदोलनकारी लोगों को चिन्हित कर उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, उनकी गिरफ्तारियां की जा रही है और पुलिस हिरासत में यातनाएं दी जा रही है।
राज्य के विभिन्न थानों में अब तक 175 मुकदमें दर्ज हो चुके हैं, जिनके तहत गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या 1500 से ऊपर पहुंच गई है। इन गिरफ्तार लोगों में बड़ी संख्या सरकारी कर्मचारियों और कॉलेज-स्कूलों में पढ़ने वाले युवाओं की है। दूसरी तरफ उपद्रव की शुरुआत हर जगह पर गैर-अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों द्वारा किये जाने की खबरें मिल रही हैं।
बाड़मेर में भारत बंद के आयोजक लक्ष्मण वडेरा ने बताया कि भारत बंद के दौरान बन्द समर्थक शान्तिपूर्ण ढंग से रैली निकाल रहे थे, उन पर अम्बेडकर सर्कल के पास कथित ऊंची जाति के लोगों ने संगठित हमला किया, पथराव किया और पुलिस की मौजूदगी में अकेले जा रहे लोगों को घेर कर लाठियों से मारा, जिससे कई लोग घायल हो गए।
दलित अत्याचार निवारण समिति के अध्यक्ष उदाराम मेघवाल के मुताबिक, करीब 50 लोग घायल हुए हैं, 4 दलितों की गाड़ियां जलाई गईं, अम्बेडकर छात्रावास को जलाने की कोशिश की गई और अब तक 300 दलितों को हत्या के प्रयास, लूट आदि की संगीन धाराओं में गिरफ्तार किया गया है। पूरे जिले में पुलिस दलितों का दमन कर रही है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता सुरेश जोगेश का आरोप है कि करणी सेना नामक जातिवादी संगठन ने इन हमलों की अगुवाई की है। उन्होंने एक सवर्ण पत्रकार द्वारा दलितों पर लाठियां भांजते हुए तस्वीरें साझा करते हुए सवाल किया है कि यह पत्रकारिता की आड़ में कैसी गुंडागर्दी की जा रही है? जोगेश ने आंखों-देखा हाल बताया कि जगह-जगह पर दलित-आदिवासी प्रदर्शनकारियों पर पूर्वनियोजित हमले किये गए, जो पुलिस की सहमति से हुए। यह संघ और बीजेपी की दलितों को सबक सिखाने की रणनीति के तहत किया गया है।
बीजेपी, संघ और करणी सेना पर उपद्रव भड़काने, उकसाने और हमले करने के आरोप दलित एक्टिविस्ट ऐसे ही नहीं लगा रहे हैं, बल्कि उन्होंने यह सब अपनी आंखों से देखा है। इस प्रकार के कई वीडियो भी अब सामने आ रहे है। बाड़मेर जिले के ही सिवाना कस्बे में तो बीजेपी विधायक हमीर सिंह भायल के दफ्तर पर चढ़ कर दलित प्रदर्शनकारियों पर लाठियां और पत्थर बरसाए गये। सिवाना के चेतन मेघवाल बताते हैं कि जब हमारे लोग उपखंड अधिकारी को ज्ञापन देकर लौट रहे थे, तब राजपूत समाज सहित आरएसएस और बीजेपी से जुड़े लोगों ने तलवारों और लाठियों से हमला किया, जिसमें उनके दर्जन भर साथी चोटिल हो गए। इसके बाद बीजेपी विधायक के दबाव में उनके ही सैंकड़ों लोगों पर झूठे मुकदमे दर्ज किए गये।
कमोबेश ऐसा ही डूंगरपुर जिले के आसपुर क्षेत्र में हुआ। यहां पर तो कथित रूप से पुलिस थानों से हथियारबन्द विरोधियों को सप्लाई किये जाने के आरोप लगाये जा रहे हैं। यहां पर आदिवासी समुदाय के प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमले किये गए, जिसमें दो आदिवासी युवक गंभीर रूप से घायल हुए है। उनकी तरफ से मुकदमा तक दर्ज नहीं किया गया है।
उदयपुर शहर के सेक्टर 14 और पानेरियों की मादड़ी में रहकर अध्य्यनरत छात्रों को प्रदर्शन में शामिल होने की वजह से मारपीट का शिकार होना पड़ा है।
जालोर में हुए उपद्रव में पुलिस ने व्यापारियों और जातिवादी सेनाओं के लोगों को साथ लेकर दलितों पर हमले किये। रानीवाड़ा में मॉडल स्कूल के प्रिंसिपल अशोक परमार की बेवजह निर्मम पिटाई की गई। बाद में उन्हें गिरफ्तार कर मुकदमा दर्ज किया गया और राजकीय सेवा से निलंबित करने की कार्यवाही शुरू कर दी गयी। सांचोर और आहोर में भी संगठित हमले करके दलितों को सबक सिखाने की कार्रवाई हुई।
दलित अधिकार अभियान, पश्चिमी राजस्थान से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता तोलाराम चौहान का कहना है कि पाटोदी, सिवाना और बाड़मेर इन दिनों दलित दमन के केंद्र बन गए हैं।
फलोदी के मानवाधिकार कार्यकर्ता और पेशे से अधिवक्ता गोवर्धन जयपाल बताते है कि फलौदी में घरों में घुस-घुस कर हमले किये गए और बाद में उल्टा दलितों को ही आरोपी बना कर उनकी धरपकड़ शुरू कर दी गयी। शांति समिति की बैठक में दलित प्रदर्शनकारियों को सार्वजनिक रूप से राक्षस कहा गया और जांच अधिकारी ने ऐलान कर धमकी दी कि जिन दलितों के नाम प्राथमिकी में नहीं है उन दलितों को भी पकड़ा जायेगा।
दलित आदिवासी कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमे करने और उनको गिरफ्तार करने का महाभियान राजस्थान सरकार की पुलिस इन दिनों चला रही है। भले ही लोग प्रदर्शन में शामिल नहीं थे, उन्होंने कोई उपद्रव नहीं किया, फिर भी 120 बी के तहत उन्हें आरोपी बनाया जा रहा है। ऐसा लगता है कि बीजेपी-संघ की विचारधारा का लंबे समय से विरोध कर रहे दलित आदिवासी लोग इस वक़्त निशाने पर हैं। संघ कार्यालयों से उनकी सूची पुलिस को सौंपी जा रही है। यह सबक सिखाने की ऐसी कोशिश है जो दलित-आदिवासी वर्ग में आ रही चेतना पर असर कर सकती है।
राज्य के विभिन्न हिस्सों में हुए प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में सफाई कर्मचारी समुदाय के लोगों ने सामूहिक अवकाश लेकर शिरकत की थी। उनको भी गिरफ्तार किया जा रहा है। राज्य की इस दमनकारी नीति की मुख़ालफ़त करते हुए सफाई कर्मचारी संगठनों ने खुली चेतावनी दी है कि अगर दमन को नही रोका गया तो 15 अप्रैल से सफाई के काम को बंद कर दिया जाएगा ।
राजस्थान के हिंडौन सिटी में दलितों पर की गई हिंसा उनके प्रति हिन्दू समाज मे व्याप्त घृणा की शर्मनाक अभिव्यक्ति के रूप में सामने आई है। यहां पर मौजूद दलित छात्रावास को नेस्तनाबूद करने के प्रयास हुए और अम्बेडकर की प्रतिमा गिराने की खुली धमकी दी गई। इतना ही नहीं, पूर्व मंत्री भरोसी जाटव और वर्तमान विधायक राजकुमारी जाटव के घरों में भी आग लगाई गई। लगभग 40 हजार सवर्णों की गुस्साई भीड़ दलितों को सबक सिखाने के लिए धारा 144 के बावजूद सड़कों पर उतर आई।
अलवर में पुलिस की गोली से 22 वर्षीय प्रदर्शनकारी पवन झाड़ोली की मृत्यु हो गयी। वहीं पुलिस की गोली से दो अन्य घायल हुए। लाठीचार्ज और सवर्णों के हमले से घायल हुए लोगों में जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, गंगापुरसिटी, खेरली, नीम का थाना आदि स्थानों के निवासी शामिल हैं।
मीडिया और प्रशासन एक स्वर में दलितों को उपद्रवकारी साबित करने पर तुला हुआ है, जबकि असली उपद्रव करने वालों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करने को पुलिस तैयार नहीं है। राज्य में हिंसा के शिकार दलितों की कहीं भी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है, जबकि पुलिस और उच्च जाति की सेनाओं के संगठित हमलों के शिकार लोगों की संख्या सैंकड़ों में है। हिंसा के शिकार लोगों पर ही मुकदमे दर्ज कर लिए गए हैं। उन्हीं को मारा गया और उन्हीं को गिरफ्तार किया जा रहा है। इतना ही नहीं, पकड़े गए दलित-आदिवासी आंदोलनकारियों के साथ पुलिस हिरासत में की गई हिंसा ने मानवाधिकार हनन के नए आयाम स्थापित कर दिए हैं। पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों के हिरासत में हाथ-पांव तोड़ दिए हैं।
पूरे राजस्थान में हालात बेकाबू हैं। पुलिस दलितों को मार रही हैं। कथित ऊंची जाति के समूह उन्हें मार रहे हैं। थानों में दलित मारे जा रहे हैं। घरों में घुस कर दलितों को मारा जा रहा है। हर तरफ हाहाकार है। कहीं कोई सुनने वाला नहीं है। राजस्थान के दलित और आदिवासियों का ऐसा दमन तो ब्रिटिश राज में भी नहीं हुआ होगा। आरएसएस और बीजेपी के भीतर मौजूद दलित-आदिवासी समुदाय के प्रति नफरत अब साफ देखी जा सकती है। यह कहा जा सकता है कि संघ-बीजेपी पूरी तरह दलित-आदिवासी दमन पर उतर गया है। शायद हिन्दू राष्ट्र में उनका अंत ही उनकी नियति है।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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