महामारी घोषित किए जा चुके 'कोरोना वायरस' से जहां दुनिया जान बचाने को जूझ रही है, वहीं कोरोना के भय से बेखौफ साइबर अपराधी इसकी आड़ में भी सक्रिय होकर ठगी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। कानून, साइबर विशेषज्ञ और पुलिस अब ऐसे साइबर ठगों पर शिकंजा कसने की रणनीति बनाने में जुट गई है।
साइबर अपराधी कोरोना की आड़ में गूगल या अन्य तमाम सोशल मीडिया साइट्स के जरिए कैसे सक्रिय हो उठे हैं? इन साइबर अपराधियों पर वक्त रहते अगर जांच एजेंसियों ने शिकंजा नहीं कसा, तो कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही दुनिया पर मुसीबत की दोहरी मार पड़ना तय है। यह तमाम सनसनीखेज तथ्य शनिवार को एक 'साइबर' कार्यशाला में उभरकर सामने आए। साइबर कार्यशाला उत्तर प्रदेश में कानपुर शहर की जिला पुलिस लाइन में आयोजित की गई।
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पुलिस अधीक्षक (अपराध) राजेश यादव ने आईएएनएस से फोन पर इसकी पुष्टि की है। उन्होंने कहा, "गूगल या इंटरनेट का जितना ज्यादा हम सदुपयोग नहीं कर पा रहे हैं, उससे ज्यादा उसका दुरुपयोग साइबर अपराधी कर रहे हैं। गूगल पर ऐसी तमाम फर्जी तकनीक और चीजें मौजूद हैं, जिनकी साइबर अपराधियों को खूब जानकारी है। इन अपराधियों को तुरंत काबू करने के लिए कानून और पुलिस को इनसे भी चार कदम आगे चलना पड़ेगा। यह कैसे संभव हो, इसलिए बीते शनिवार को साइबर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में विधि एवं न्याय विभाग, पुलिस, प्रशासनिक विभाग सहित तमाम साइबर विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।"
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यह साइबर अपराध सतर्कता कार्यशाला सुबह करीब 10 बजे शुरू होकर शाम पांच बजे तक चली। कार्यशाला में साइबर विशेषज्ञ सचिन गुप्ता, कानपुर पुलिस साइबर सेल प्रभारी सहित जिले के तमाम विधि-कानून विशेषज्ञ, न्यायिक अधिकारी भी मौजूद रहे।
इस अवसर पर साइबर-कानून विशेषज्ञों ने कहा कि जब से कोरोना जैसी महामारी सामने आई है, तब से साइबर अपराधी और ज्यादा एक्टिव हो गए हैं। यह अपराधी इंटरनेट यूजर्स की कमजोर नस पकड़ चुके हैं। वे समझ गए हैं कि हर कोई कोरोना से बचने के उपाय तलाशने के लिए इस वक्त इंटरनेट पर सर्च करने में जुटा है।
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कार्यशाला में मौजूद विशेषज्ञों ने कहा, "हमारी-आपकी इसी हड़बड़ाहट का नाजायज फायदा साइबर अपराधी उठा रहे हैं। ये अपराधी सोशल मीडिया माध्यमों के जरिए सक्रिय हैं। सोशल साइट्स पर पहले यह साइबर अपराधी एक लिंक पोस्ट करते हैं। जैसे ही कोई अनजान शख्स इनके भेजे लिंक पर क्लिक करता है, उसका तमाम निजी डाटा साइबर अपराधियों को एक क्लिक के साथ ही मिल जाता है।"
किस तरह कोरोना की मुसीबत को भी साइबर ठग कैश करने से बाज नहीं आ रहे हैं, इसके भी कार्यशाला में तमाम उदाहरण पेश किए गए। बताया गया कि साइबर ठग खुद को गूगल, फेसबुक इत्यादि पर किसी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी का प्रतिनिधि बताते हैं। वे खुद को कोरोना की घटनाएं रोकने के लिए बनाए गए प्रबंधन का हिस्सा बताते हैं। इससे कोरोना से भयभीत शख्स आसानी से उनकी गिरफ्त में आकर अपनी तमाम निजी जानकारियां उन्हें मुहैया करा देता है। जैसे ही इन अपराधियों द्वारा बताए गए किसी लिंक पर क्लिक किया जाता है, वैसे ही इंसान ठग लिया जा रहा है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी शख्स जल्दबाजी में किसी भी अनजान मैसेज या लिंक को फिलहाल जब तक कोरोना का भय है, तब तक क्लिक न करें। साइबर सतर्कता कार्यशाला में मौजूद कानपुर के पुलिस अधीक्षक (अपराध) राजेश यादव के मुताबिक, "साइबर अपराधियों को पकड़ना, उन्हें पकड़ कर अदालत के सामने मुजरिम करार दिलवाना बेहद जटिल हो सकता है, असंभव नहीं है। जरूरत है पुलिस और न्याय व्यवस्था मिलकर एक-दूसरे को सहयोग करके आगे बढ़ सकें।"
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इस बारे में सोमवार को आईएएनएस ने साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल से बात की। दुग्गल ने कहा, "साइबर अपराधियों को इंटरनेट की दुनिया में आपाधापी मचने वाले वक्त का इंतजार होता है। कोरोना फैलते ही साइबर अपराधियों की मुराद पूरी हो गई है। हर कोई कोरोना से बचाव के उपाय इंटरनेट पर खोज रहा है। इसी हड़बड़ाहट का बेजा लाभ उठाने के लिए साइबर अपराधियों ने तमाम तरह के अवैध लिंक्स सोशल साइट्स पर भेजना शुरू कर दिया है। कोरोना की हवा फैलते ही इन दिनों इंटरनेट पर ई-मेल्स की तादाद भी करोड़ों में बढ़ गई है।"
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एक सवाल के जबाब में दुग्गल ने कहा, "कोरोना से बचाव के उपायों के नाम पर साइबर अपराधी सिर्फ और सिर्फ खौफजदा लोगों का दोहन कर रहे हैं। इसके लिए पब्लिक खुद भी जिम्मेदार है। किसी भी अनजान लिंक को टच न करें। इन साइबर ठगों से बचने का यही सबसे उत्तम उपाय है।"
हिंदुस्तान में साइबर अपराध से निपटने के लिए बने कानून के बाबत पूछे जाने पर दुग्गल ने कहा, "आईटी एक्ट की धारा 43/66 है। इसके तहत साइबर अपराध को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। मगर यह बेहद कमजोर और जमानती धारा वाला कानून है। कहने को भले ही इस कानून के तहत मुजरिम करार दिए जाने पर पांच लाख रुपये अर्थदंड या तीन साल की सजा का प्रावधान क्यों न हो?"
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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