राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती और चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बिहार सरकार आयोजनों के नाम पर करोड़ो रूपए खर्च कर चुकी है, लेकिन बदहाली झेल रहा गांधी जी का भितिहरवा आश्रम जीर्णोध्दार के लिए महज 1 लाख रूपए के खर्च के लिए तरस रहा है।
एक लाख के लिए लटका है आश्रम का जीर्णोध्दार
‘नवजीवन’ के पास वो पत्र है जिसे बेतिया जिले के भवन प्रमंडल विभाग के कार्यपालक अभियंता ने बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग को 5 नवंबर 2018 को लिखा है। पत्रांक संख्या 1086 के मुताबिक गांधी स्मारक संग्रहालय के जीर्णोध्दार के लिए 1,0,1600 रू ( एक लाख सोलह सौ रू मात्र) का खर्च बताया गया है। आश्रम में कस्तूरबा गांधी की चक्की, गांधी जी द्वारा इस्तेमाल की गई मेज, गांधी जी द्वारा स्थापित स्कूल में बजाई जाने वाली घंटी मौजूद है, लेकिन आश्रम सरकारी बेरूखी का शिकार है।
लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी गांधी आश्रम के जीर्णोध्दार के लिए बिहार की नीतीश सरकार एक लाख रूपए नहीं दे सकी। जब इस संबंध में कला संस्कृति मंत्री प्रमोद कुमार से बात की गई तो उन्होने इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं होने की बात कही। बाद में उन्होने पत्र की प्रति वाट्सएप्प के जरिए मंगाई और पत्र देखने के बाद जल्द कार्रवाई का आश्वासन दिया।
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बता दें कि साल 2017 में नेपाल की पंडुई नदी से आई बाढ़ के चलते आश्रम एक हफ्ते से ज्यादा वक्त तक डूबा रहा, जिसके बाद से ही आश्रम की दीवारों को मरम्मत की सख्त जरूरत है। जिस काम में महज एक लाख रूपए लगने हैं। लेकिन बिहार सरकार की हालत ये है कि गांधी के विचारों से प्रभावित आम लोग सरकार को चिठ्ठी लिखकर आश्रम को व्यक्तिगत स्तर पर ठीक कराने की अनुमति की मांग कर रहे हैं।
सीतामढ़ी के रामशरण अग्रवाल ने इसी अक्टूबर माह में बिहार सरकार के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है। रामशरण अग्रवाल बताते हैं, “ मैने सरकार को लिखा है कि ये राष्ट्रीय धरोहर है। अगर सरकार को अपने स्तर पर आश्रम के रख-रखाव में कठिनाई हो रही है तो वो हम लोगों को आवश्यक मरम्मत कराने की अनुमति दे।”
बता दें कि पहले यह आश्रम गांधी स्मारक निधि द्वारा संचालित होता था, लेकिन बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग ने 31 अक्टूबर 1985 को आश्रम का अधिग्रहण कर लिया। जिसके बाद आश्रम का नाम गांधी स्मारक संग्रहालय, भितिहरवा रखा गया।
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ऐतिहासिक है भितिहरवा आश्रम
बिहार के बेतिया से तकरीबन 60 किलोमीटर दूर भितिहरवा आश्रम का निर्माण महात्मा गांधी और ‘बा’ कस्तूरबा गांधी ने खुद किया था। गांधी जी 1917 में चंपारण आए थे जहां उन्होंने किसानों के शोषण के खिलाफ अपने सत्याग्रह का पहला प्रयोग किया। खुद ‘बा’ ने भितिहरवा आश्रम बनाने के लिए ईंट उठाई। हाल में आई नीलिमा डालमिया की ‘कस्तूरबा की रहस्यमय डायरी’ में ‘बा’ कहती हैं, “मैं (कस्तूरबा) हर गांव के निवासियों को सार्वजनिक सफाई, शौचालयों के प्रयोग, कचरा इकठ्ठा करने, खुले में थूकने, शौच और मलमूत्र त्याग बंद करने के बारे मे घंटों जानकारी देती।”
मोदी जी का स्वच्छता अभियान, लेकिन आश्रम के सफाई मजदूरों की मजदूरी सिफर
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आश्रम की सफाई के लिए लगे सफाई मजदूरों को बीते एक साल से उनकी दैनिक मजदूरी नहीं मिली है। दिलचस्प है कि ये ऐसे वक्त में है जब केंद्र सरकार और खुद प्रधानमंत्री व्यक्तिगत तौर पर स्वच्छता अभियान को बहुत जोर शोर से चला रहे हैं। साथ ही, इस सरकारी अभियान में महात्मा गांधी को सबसे बड़े प्रतीक या आइकॉन के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक मजदूर ने कहा, “ गांधी जी के नाम पर सरकार बड़ा बड़ा आयोजन करती है, लेकिन मेरा पैसा सरकार नहीं दे रही है। यहां सब आकर कहते हैं कि ये गांधी का देश है। मैं कहता हूं ये गांधी का नहीं, नेता और अफसरों की तानाशाही का देश है।”
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गांधी सर्किट में भी शामिल है भितिहरवा आश्रम
गौरतलब है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही गांधी सर्किट के विकास की बात करती रही हैं, जिसमें भितिहरवा आश्रम का अग्रणी स्थान रहा है। इसी साल प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज में इस बात का उल्लेख है कि तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने लोकसभा में एक सवाल में जवाब में ये बताया है कि भितिहरवा-चंद्रहिया-तुरकौलिया गांधी सर्किट विकास के लिए बिहार को 4465.02 लाख की केंद्रीय वित्तीय सहायता की मंजूरी दी गई है।
चंपारण आन्दोलन पर काफी काम करने वाले पत्रकार-लेखक अरविन्द मोहन कहते हैं,“भितिहरवा पर बात करना अब फैशन सा हो गया है, लेकिन आप देखें तो आश्रम को लेकर कभी कोई सिस्टमैटिक प्लानिंग नहीं हुई। नतीजा ये हुआ कि आश्रम आने-जाने, सड़क, वहां ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है और संग्रहालय भी बदहाल है। ऐसे में नीतीश सरकार द्वारा गांधी के नाम पर करोड़ों खर्च करने का क्या मतलब रह जाता है?”
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