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शर्मनाक: चार दिन तक ‘श्रमिक स्पेशल’ में लावारिस भटकता रहा प्रवासी मजदूर का शव, ट्रेन की सफाई के वक्त चला पता

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में प्रवासी मजदूरों की मौत का सिलसिला जारी है। ताजा मामले में एक प्रवासी मजदूर की लाश ट्रेन में चार दिन तक लावारिश पड़ी रही। बाद में 27 मई को झांसी रेलवे यार्ड में ट्रेन की सफाई के वक्त कर्मचारी को मजदूरों का शव होने की जानकारी मिली।

मृतक मोहनलाल शर्मा की पत्नी
मृतक मोहनलाल शर्मा की पत्नी आस मोम्मद कैफ

उसका उपनाम कुमार, गौतम और खान नहीं है ,शर्मा है, तो भी उसका शव 4 दिन तक श्रमिक स्पेशल ट्रेन के डिब्बे में सड़ता रहा। क्योंकि वो ग़रीब है। मजदूर है, और ग़रीब का कोई जाति धर्म नही होता। कोरोना त्रासदी की हर दूसरी कहानी कलेजे को छलनी कर देती है। झांसी की इस तक़लीफ़देह कहानी को जानकर आप भी फिर रो देंगे।

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मोहनलाल के परिजनों के मुताबिक वो डायबिटीज का मरीज़ था। ट्रेन में उसे इलाज़ नहीं मिल पाया। गंभीर बात यह है भी है कि ट्रेन में उसे तड़पते देखने के बाद भी किसी ने उसकी मदद नहीं की। खास बात यह भी है मोहनलाल शर्मा गोरखपुर का टिकट लेकर झांसी से इस गाड़ी संख्या 041168 में सवार हुआ था। जबकि यह ट्रेन गोरखपुर गई हीं नही। यह गाड़ी बरौनी गई थी। जिस दिन मोहनलाल ने टिकट खरीदा उसपर 23 मई की तिथि अंकित है।

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झांसी रेलवे प्रशासन ने इसकी सूचना हलुआ गांव थाना गौर जिला बस्ती में मोहनलाल के घर दी। उसके पिता का पहले ही देहांत हो चुका है। मोहनलाल शर्मा के फूफा कन्हैयालाल ने बताया कि 23 मई को उसकी पत्नी से बात हुई थी। तब उसने बताया था कि वो आज घर जाएगा। उसके बाद उसका फोन रिसीव नहीं हुआ। पुलिस मोहनलाल के पास से उसका फोन भी मिला है। ट्रेन बरौनी से 27 मई लौटकर कर आई। तब मोहनलाल का शव में सड़न देखकर रेलवे कर्मचारी नींद से जागे।

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मोहन के फूफा कन्हैया ने बताया कि मौत सिर्फ उनके भतीजे की ही नहीं हुई है बल्कि सम्पूर्ण मानवता की हो गई है। वो अपनी बीमारी के बारे मे शायद इसलिए नहीं बता पाया होगा कि कहीं उसे कोरोना का मरीज़ न समझ लिया जाए। रेलवे ट्रेन को सेनेटाइज़ेड करने का दावा करता है मगर 5 दिन दिन उन्हें मोहन का शव दिखाई नहीं दिया।

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मोहन के चार बच्चे है। उसकी पत्नी संगीता ने बताया कि जब वो झांसी तक बस से आए थे। झांसी के बाद उन्होंने फोन कर बताया कि वो ट्रेन में बैठ गए हैं अब घर आ जाएंगे। हम सब खुश थे, बच्चे भी खुश थे,वो मुम्बई में एक चिप्स फैक्टरी में ड्राइवर रहे। अब 6 -7 दिन हो गए। वो नहीं आएं। झांसी रेलवे के अफसरों का फ़ोन तो पता चला। हमनें तय किया था वो वापस मुम्बई नही जाएंगे। अब उसकी संभवना ही ख़त्म हो गई। अब वो कभी वापस नहीं जा सकते।

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