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संविधान दिवस विशेष: हर दृष्टि से बेमिसाल है भारत का हस्तलिखित संविधान

भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है जो 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियों और 22 भागों में विभाजित है। जबकि इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे, इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की शासन व्यवस्था को संचालित करने वाला विश्व का सबसे बड़ा संविधान न केवल लिखित है, बल्कि हस्तलिखित भी है। हाथ से लिखा गया सुलेख भी ऐसा कि जो इस दस्तावेज के एक एक शब्द को निखारता है और उस पर भी उस जमाने के महान कलाकारों ने ऐसा चित्रण किया है जिसमें भारत के गौरवमय इतिहास, दर्शन, संस्कृति और आकांक्षाओं के दर्शन होते हैं। लोकतंत्र के इस पवित्र ग्रंथ को लिखने का श्रेय प्रेम बिहारी रायजादा (सक्सेना) को और सजाने का नन्दलाल बोस को और मुद्रित करने का श्रेय देहरादून स्थित भारतीय सर्वेक्षण विभाग को जाता है। संविधान की हाथ से लिखी गयी पाण्डुलिपि संसद के पुस्तकालय में सुरक्षित है तो उसकी एक प्रति राष्ट्रीय संग्रहालय में और एक प्रति देहरादून में भी यादगार के तौर पर रखी गई है।

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भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है जो 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियों और 22 भागों में विभाजित है। जबकि इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे, इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं। डा. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली संविधान सभा में 8 मुख्य समितियां और 15 अन्य समितियां थी। संविधान सभा पर अनुमानित खर्च 1 करोड़ रुपए आया था। संविधान 26 नवंबर, 1949 में अंगीकार किया गया था, इसलिए देश में 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

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संविधान की मूल प्रति प्रेम बिहारी नारायण रायजादा (सक्सेना) ने हाथ से लिखी थी। यह पाण्डुलिपि बेहतरीन कैलीग्राफी के जरिए इटैलिक अक्षरों में हिन्दी और अंग्रेजी में लिखी गई है। इसके हर पन्ने को उस दौर के बेहतरीन कलाकार नन्द लाल बोस के नेतृत्व में शांतिनिकेतन के कलाकारों ने सजाया था। प्रेम बिहारी का जन्म 17 दिसम्बर 1901 में एक परम्परागत कैलीग्राफिस्ट कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके दादा रामप्रसाद आदिकालीन ‘‘कैथी‘‘ या ‘‘कैथिली’’ भाषा के विद्वान और विख्यात सुलेखक थे। इसीलिए प्रेम नारायण की ख्याति जवाहरलाल नेहरू तक पहुंच गई थी। प्रेम फाउंडेशन के अनुसार प्रेम बिहारी नारायण ने इस महान ग्रंथ को लिखने में 432 पेन होल्डरों, उन पर 303 निबों और 254 स्याही की दवातों का प्रयोग किया। संविधान लिखने के लिए पुणे से हस्त निर्मित कागज मंगाया गया था। इस लेखन कार्य में उन्हें कुल 6 माह का समय लगा। संविधान की मूल प्रति के प्रत्येक पृष्ठ पर इनके काॅपीराइट के तहत इनका नाम और अंतिम पेज पर इनके नाम के साथ इनके दादाजी मास्टर राम प्रसाद जी सक्सेना का नाम अंकित है। बताया जाता है है कि इसी शर्त पर रायजादा ने संविधान लिखने की शर्त पंडित जवाहरलाल नेहरू से रखी थी। आश्चर्य की बात यह है कि 251 पृष्ठों के इतने लंबे संविधान दस्तावेज को हाथ से लिखने में न तो कहीं कोई असंगति का निशान है और ना ही कहीं कोई गलती है। हिन्दी और अंग्रेजी में इटैलिक शौली में लिखा गया यह ग्रंथ कैलीग्राफी या सुलेखन का सर्वोत्तम उदाहरण है। 22 इंच लंबे और 16 इंच चैड़े आकार की संविधान की पाण्डुलिपि की हजार साल मियाद वाली चमड़े की बाइंडिंग के साथ संसद के पुस्तकालय में रखी मेज पर हीलियम से भरी केस में सुरक्षित रखा गया था, जो कि वर्तमान में नाइट्रोजन गैस से भरे केस में नमी मीटर और दूसरे आधुनिक तकनीक से सुरक्षित रखा गया है।

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संविधान निर्माताओं ने जिन प्रावधानों को शब्दों में प्रस्तुत किया उनको तो हम पढ़ ही लेते हैं, लेकिन जिन बातों को संकेत के रुप में चित्रांकित किया है या सांकेतिक अभिव्यक्ति दी गई वह कमाल पश्चिम बंगाल के विख्यात चित्रकार नन्दलाल बोस और उनके सहयोगी ब्योहर राममनोहर सिन्हा के नेतृत्व में शांति निकेतन, विश्वभारती (कोलकता) के चित्रकारों ने कर दिखाया है। संविधान के कुल 22 भागों में नंदलाल बोस ने प्रत्येक भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए जिन्हें बनाने में चार साल लगे। वास्तव में ये चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा है। सुनहरे बार्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक की लाट से की गई है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना को सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें मोहन जोदड़ो की सभ्यता को दर्शाने के लिये घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। दस्तावेज के प्रत्येक पृष्ठ के बार्डर में शतदल कमल के चित्रांकन से सुसज्जित किया गया है। अगले भाग में शिष्यों के साथ ऋषि के आश्रम का चित्र दिया गया है। कहीं गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है तो एक अन्य भाग में उड़ीसा की मूर्तिकला को दिखया गया है। बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति, तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर पर उकेरी गई कलाकृतियां और 14वां भाग में मुगल स्थापत्य कला को जगह दी गई है। 16वें भाग में टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मी बाई को अंग्रेजी फौजों से लड़ते हुए दिखाया गया है। 17वें भाग में गांधी जी की दांडी यात्रा और 19वें भाग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज का सैल्यूट ले रहे। इस प्रकार 20वें भाग में हिमालय के उत्तंग शिखरों को दिखाया गया है तो अगले भाग में रेगिस्तान का चित्रण है। अंतिम भाग में समुद्र का चित्र है।

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संविधान सभा द्वारा 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन की बहसों के बाद तैयार किए गए संविधान का ढांचा जब 26 नवबंर 1949 को अंगीकृत किया गया तो उसे प्रकाशित करने की भी एक चुनौती थी, क्योंकि मसौदा समिति और खास कर जवाहरलाल नेहरू लोकतंत्र के इस पवित्र ग्रंथ की मौलिकता, स्वरूप और स्मृतियों को अक्षुण बनाए रखने के लिए उसे उसी हस्तनिर्मित साजसज्जा के साथ हूबहू प्रकाशित करना चाहते थे। चूंकि उस समय प्रिंटिंग की आज की तरह अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं और उस समय के लिहाज से सबसे बड़ा और सुसज्जित छापाखाना केवल देहरादून स्थित भारतीय सर्वेक्षण विभाग या सर्वे ऑफ इंडिया के पास ही उपलब्ध था। इसलिए इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने का दायित्व उसी को सौंपा गया। विभाग के देहरादून स्थित नॉदर्न प्रिंटिंग ग्रुप ने पहली बार संविधान की एक हजार प्रतियां प्रकाशित की। इसे फोटोलिथोग्राफिक तकनीक से प्रकाशित किया गया। यादगार के तौर पर संविधान की एक प्रति आज भी देहरादून के सर्वे ऑफ इंडिया के म्यूजियम में सुरक्षित है। भारतीय सर्वेक्षण विभाग राष्ट्रीय सर्वेक्षण और मानचित्रण के लिए भारत सरकार का एक प्राचीनतम वैज्ञानिक विभाग है जो कि देश की रक्षा जरूरतों के साथ ही विकास कार्यों के लिए प्रमाणिक मानचित्र अपनी विशालकाय प्रिंटिंग मशीनों से मुद्रित करता रहा है। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा इसकी स्थापना 1767 में की गई थी।

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भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 में किया गया था। जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि और 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे। सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को हुई। जिसमें वरिष्ठतम सांसद सचिदानंद सिन्हा अस्थाई अध्यक्ष बने, जबकि 11 दिसम्बर 1946 को डा. राजेन्द्र प्रसाद स्थाई अध्यक्ष चुने गए। देश के विभाजन से यह सदस्य संख्या घट कर 299 रह गई। जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग की मांग पर पाकिस्तान के लिए माउण्टबेटन के प्लान के तहत 3 जून 1947 को अलग संविधान सभा बनाई गई।

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भारत के संविधान की आत्मा उसकी प्रस्तावना में निहित है, जिसकी शुरूआत ‘‘हम भारत के लोग’’ से होती है। इसका अभिप्राय कश्मीर से कन्या कुमारी तक और पूरब से पश्चिम तक हर जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति और क्षेत्र से है। लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए संविधान की इस मूल भावना का अतिक्रमण कर इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का प्रयास किया जा रहा है। समाजवाद और पंथ निरपेक्षता भी संविधान के मूल तत्व हैं, मगर आज के सत्ताधारी इन शब्दों की अपने साम्प्रदायिक और पूंजीवादी नजरिए से व्याख्या कर रहे हैं। लोगों को समय से न्याय नहीं मिल रहा है। आम आदमी का ध्यान उसके असली मुद्दों से हटा कर भावनात्मक मुद्दों की ओर मोड़ा जा रहा है।

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