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तेलंगाना में वादे की मजबूत जमीन पर कांग्रेस, लोकसभा चुनाव में 17 में से 14 सीटें जीतना चाहती है पार्टी

पिछले हफ्ते तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी, एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की मौजूदगी वाली रैली का भी असर दिख रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कांग्रेस ने अपना राष्ट्रीय घोषणापत्र- ‘न्याय पत्र’ जारी करने के लिए तेलंगाना को चुना तो राजनीतिक पर्यवेक्षकों के लिए इसका मतलब समझना ज्यादा मुश्किल नहीं था। 

यह तेलंगाना ही था जहां इस सबसे पुरानी पार्टी ने उलटफेर करते हुए नवंबर, 2023 के विधानसभा चुनावों में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को उखाड़ फेंका। अब यह बीआरएस दलबदलुओं के लिए सम्मानजनक घर वापसी का एक ऐसा ठिकाना है जिसके बाहर दिग्गजों की लाइन लगी है। युवाओं, किसानों, महिलाओं, श्रमिकों और पिछड़े वर्गों के लिए कांग्रेस की गारंटी की घोषणा करने के लिए पिछले हफ्ते हैदराबाद के बाहरी इलाके तुक्कुगुडा में एक विशाल ‘जन जतरा’ आयोजित की गई थी। तुक्कुगुड़ा कांग्रेस के लिए खास महत्व रखता है। यहीं से सोनिया गांधी ने पिछले साल सितंबर में ‘विजयभेरी’ रैली की शुरुआत की थी और जिसने विधानसभा चुनावों में भारी जीत की राह खोली।

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पिछले हफ्ते तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी, एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की मौजूदगी वाली रैली का भी असर दिख रहा है। राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर के. नागेश्वर कहते हैं, “ज्यादा दिन नहीं हुए जब कांग्रेस कैडर हतोत्साहित था। पहले विधानसभा चुनावों में जीत और अब लोगों के अनुकूल घोषणापत्र, ने उसे उत्साह दिया है।” वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एस. रामकृष्ण कहते हैं, “आज, तेलंगाना में हर कोई आश्वस्त है कि कांग्रेस अपने चुनाव पूर्व वादे पूरे कर रही है। पिछले बीआरएस शासन के विपरीत इसने एक जन-अनुकूल छवि बनाई है, जो मुश्किल काम था। यह सही रास्ते पर है।”

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राहुल गांधी ने कहा भी, “जैसे हमने तेलंगाना में वादे पूरे किए, उसी तरह देशभर में उन्हें पूरा करेंगे। यह घोषणा पत्र जनता की आवाज है। हमने लोगों की बातें सुनीं और यह घोषणापत्र बनाया।” कार्यकर्ताओं के उत्साह को स्वर देते हुए उन्होंने कहा, “हमने विधानसभा चुनावों में भाजपा की बी-टीम (बीआरएस) को हराया। अब, हम आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की असली ए-टीम को हराएंगे। वरिष्ठ मंत्री डी. श्रीधर बाबू कहते हैं, “हमारा लक्ष्य तेलंगाना की 17 में से 14 लोकसभा सीटें जीतने का है।”

तेलंगाना की सफलता की कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली फार्मा और स्वास्थ्य सेवा कंपनियों के घोटाले की गंध भी चुनावी बॉण्ड के जरिये हुए सौदों को लेकर संदेह के घेरे में हैं। बड़े नाम खुल रहे हैं। इनमें कोविड-19 टीकों के लिए मंजूरी हासिल करने वाले वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक (10 करोड़ रुपये) और बायोलॉजिकल ई (5 करोड़ रुपये) भी हैं। अरबिंदो फार्मा के निदेशकों में से एक सरथ रेड्डी भी हैं जिन्होंने भाजपा को 34 करोड़ रुपये का दान दिया। उन्हें दिल्ली एक्साइज घोटाले के सिलसिले में ईडी ने गिरफ्तार किया था लेकिन बाद में वह मामले में सरकारी गवाह बन गया।

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जहां तक ​​बीआरएस का सवाल है, नवंबर के चुनावों में 119 सदस्यीय विधानसभा में सिर्फ 39 सीटों पर सिमटने की अपमानजनक हार के रूप में उसे अपनी ही दवा का स्वाद चखना पड़ा जबकि  कांग्रेस को 65 सीटें मिलीं। पांच साल पहले विपक्षी खेमे को कमजोर करने के लिए उसने जो आक्रामक शिकार वाली रणनीति अपनाई थी, दरअसल वह अब उसे ही परेशान कर रही है।

दिसंबर, 2018 के विधानसभा चुनावों में अपने दूसरे कार्यकाल में  बीआरएस ने कांग्रेस विधायकों के एक बड़े हिस्से को अपने खेमे में शामिल कर विपक्ष को लगभग खत्म ही कर दिया था। अब, यही सब उसे लौटाने का वक्त है। नौ मौजूदा बीआरएस सांसदों में से पांच पहले ही पद छोड़ चुके हैं; और चर्चा है कि 13 मई के चुनाव से पहले कई और विधायक पाला बदल लेंगे। ताजा झटका राज्यसभा सदस्य के. केशव राव और उनकी बेटी, हैदराबाद नगर निगम की मेयर जी. विजयालक्ष्मी का बाहर जाना था। वास्तव में, यह उस अस्सी वर्षीय नेता की घर वापसी थी जिसने 2013 में बीआरएस में शामिल होने से पहले पांच दशकों तक कांग्रेस में सेवा की थी। वह अविभाजित आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी थे। 

पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता की गिरफ्तारी ने भी बीआरएस की मुश्किलें बढ़ाई हैं। हैदराबाद पर मंडराता जल संकट भी बेंगलुरु जैसे जल संकट की ओर बढ़ रहा है। कहा जाने लगा है कि ‘विकास’ सार्वजनिक उपयोगिताओं के लिए अच्छा संकेत नहीं है, निश्चित रूप से जल संकट के लिए तो बिलकुल नहीं।

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