देश भर में मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि कोई भी अपने हाथ में कानून नहीं ले सकता। कोर्ट ने कहा कि यह कोई एक मामले का सवाल नहीं है, यह भीड़ कि हिंसा का सवाल है। कोर्ट ने कड़े लहजे में कहा कि कानून-व्यवस्था को बनाए रखना राज्यों की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार को अनुच्छेद-257 के तहत योजना बनानी चाहिए। राज्य सरकारों से कोर्ट ने कहा कि मॉब लिंचिंग की कोई घटना दोबारा न हो, इसे सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करें। मॉब लिंचिंग से जुड़ी तुषार गांधी और तहसीन पुनेवाला समेत कई याचिकों पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
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याचिकाकर्ता तुषार गांधी की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह सुप्रीम कोर्ट में पेश हुईं। उन्होंने सुनवाई के दौरान कोर्ट से कहा कि ऐसे मामलों में सख्त आदेश के बावजूद राज्य सरकारें लापरवाही बरत रही हैं। इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह राज्य सरकारों को सिर्फ दिशा निर्देश जारी करने के बजाय ऐसे मामलों में कदम भी उठाए। उन्होंने कहा कि महज राज्य सरकारों पर आरोप डालकर केंद्र अपनी जिम्मेदारी नहीं भाग सकता।
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वहीं इस मामले में केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने कहा कि स्थिति के बारे में सरकार को पता है और इससे निपटने की कोशिश की जा रही है। एडिशनल सॉलीसिटर जनरल ने कोर्ट से कहा कि यह मामला कानून-व्यवस्था का है, जिसमें सीधे तौर पर राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बनती है। उन्होंने कहा कि ऐसे में मॉब लिंचिंग के लिए अगल से कानून बनाने की जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए पीएस नरसिम्हा ने यह भी कहा कि अगर राज्य सरकारें उसके आदेश को नहीं मानती हैं तो उनके खिलाफ कोर्ट अपने तरीके से निपट सकता है।
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