इन दिनों पूरे देश में दो आंदोलनों की गूंज हर तरफ मौजूद है और यह आंदोलन 14 से 30 साल के बीच के लाखों युवाओं के भविष्य से जुड़े हैं। एक तरफ स्कूली छात्र-छात्राएं और उनके अभिभावक सीबीएसई पेपर लीक को लेकर पैदा हुई अनिश्चितता से जूझ रहे हैं तो दूसरी तरफ कड़े परिश्रम से नौकरी पाने की कोशिश में लगे युवाओं की जिंदगी को एसएससी घोटाले ने मझधार में छोड़ दिया है।
सरकार में उन युवाओं की कोई सुनवाई नहीं है। यहां तक कि जब वे अपनी गुहार लेकर जा रहे हैं तो उन्हें खदेड़ दिया जा रहा है, पीटा जा रहा है और गिरफ्तार कर लिया जा रहा है। आज संसद मार्ग पर एसएससी घोटाले को लेकर प्रदर्शन कर रहे हजारों युवाओं के साथ यही हुआ।
ऐसा अनुमान है कि सीबीएसई पेपर लीक से तकरीबन 28 लाख छात्र प्रभावित हुए हैं, वहीं एसएससी घोटाले से प्रभावित होने वाले युवाओं की तादाद डेढ़ करोड़ से भी अधिक हो सकती है। इतनी बड़ी युवा आबादी के भविष्य, सपने और जीवन को नुकसान पहुंचाने का जिम्मेदार कौन है? शिक्षा और रोजगार युवाओं के दो ऐसे सरोकार हैं, जिनके प्रति लापरवाही बरतने का जोखिम लेने वाली सरकार के चरित्र का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है और इसकी दो वजहें हैं।
पहला तो यह कि उनमें से ज्यादातर मतदाता हैं और जो नहीं हैं वे आने वाले दिनों में हो जाएंगे और उनके साथ-साथ उनके अभिभावक भी मतदाता हैं। अपने खिलाफ इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं का रोष कोई सत्ताधारी पार्टी कैसे आमंत्रित कर सकती है। दूसरी ओर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इतने बड़े पैमाने पर हतोत्साहित और छली गई युवा बिरादरी भविष्य के राष्ट्र निर्माण में कैसी भूमिका निभाएगी, जो उनका एक बुनियादी काम होने वाला है। जिनकी आस्थाओं को कुचला गया वे कैसा देश बनाएंगे?
2014 के पहले जब नरेंद्र मोदी पीएम पद के उम्मीदवार थे तब उन्होंने पूरे देश से कई वादे किए थे, वे पूरे देश का कायाकल्प करने के दावे कर रहे थे, और यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने सबसे ज्यादा वादे युवाओं से किए थे। उन वादों में 2 करोड़ युवाओं को हर साल रोजगार देने का वादा सबसे बड़ा था, जिसका पूरा होना तो दूर रहा, उसके आसपास भी हमारा देश पिछले 4 साल में नहीं पहुंचा है। सरकार के लेबर ब्यूरो के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2015 में सिर्फ 1 लाख 35 हजार रोजगार सृजित किए गए। कहां 2 करोड़ और कहां 1 लाख 35 हजार। वादे और हकीकत में अंतर स्पष्ट है। शिक्षा में कोई सुधार करना तो दूर, मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में ही दरार पड़ती नजर आ रही है। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री सिर्फ भाषणों से काम चला रहे हैं और कभी-कभार टीवी चैनल के अपने शुभचिंतकों के साथ किस्सागोई कर रहे हैं। उन्हें शायद उनके किसी शुभचिंतक ने अब तक यह नहीं बताया कि ‘जुमले’ समस्या का समाधान नहीं होते।
Published: 31 Mar 2018, 8:44 PM IST
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: 31 Mar 2018, 8:44 PM IST