केंद्र की मोदी सरकार 1 फरवरी को अपने शासनकाल का पूर्णकालिक बजट पेश करने जा रही है। अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में यह उम्मीद जताई जा रही थी कि मोदी सरकार का यह बजट लोकलुभावन होगा। लेकिन अब ऐसा होने की कम ही उम्मीद है। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक इंटरव्यू के दौरान इस बात का संकेत दे चुके हैं कि इस बार का बजट शायद लोकलुभावन नहीं हो। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा था कि जनता को मुफ्त की चीजें नहीं बल्कि ईमानदार शासन पसंद है।
यूं भी केंद्र सरकार के लिए राजकोषीय घाटे से निपटने की सबसे बड़ी चुनौती है। पिछले बजट में राजकोषीय घाटा 3.5 फीसदी था। सरकार को राजकोषीय घाटे का 3.2 फीसदी का लक्ष्य हासिल करना है, जोकि आसान नहीं है। सरकार के सामने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करने के साथ महंगाई और विकास दर में संतुलन बिठाना बेहद मुश्किल होगा। देश में लगातार महंगाई बढ़ रही है। दिसंबर 2017 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में महंगाई सालाना 5.21 प्रतिशत बढ़ी है। यह 17 महीनों में सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी है।
जिस वक्त मोदी सरकार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई थी उस वक्त कच्चे तेल के दाम बेहद कम थे। 2014-15 में कच्चे तेल का सालाना औसत दाम 84.16 डॉलर प्रति बैरल था। 2015-16 में यह गिरा और करीब 45.17 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। लेकिन 2016-17 कच्चे तेल का दाम बढ़कर 47.56 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचा गया। अब ऐसी आशंका जताई जा रही है कि कच्चा तेल 70 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी समस्याएं आनी तय हैं। वित्तीय घाटा अभी तक सीमित है, क्योंकि कच्चे तेल के भाव सीमित हैं। लेकिन कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने पर महंगाई पर काबू पाना मुश्किल होगा।
मोदी सरकार के आखिरी बजट से किसानों और मजदूरों समेत कई ऐसे वर्ग हैं जो आस लगाए बैठे हैं। देश में कृषि संकट पिछले कुछ सालों में गहराया है। ऐसे में गरीबों, किसानों और मजदूरों की परेशानियों को दूर करने के लिए सरकार को ग्रामीण खर्च बढ़ाना होगा। जोकि फिलहाल इस बजट से होता दिखाई नहीं दे रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कृषि क्षेत्र में छाए संकट बारे में स्वीकार किया था। साथ ही इसे लेकर उन्होंने जरुरी कदम उठाने का आश्वासन भी दिया। लेकिन सवाल यह है कि आखिर सरकार यह कैसे कर पाएगी? पिछले बजट में सरकार ने अगले 5 सालों में यानी 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन सरकार के इस दावे पर सवाल खड़े हो रहे हैं। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने 2017-18 में कृषि, फॉरेस्ट्री और मछली-पालन क्षेत्र में विकास की दर को 4.9 फीसदी से गिरकर 2.1 फीसदी तक आने की आशंका जताई है। ऐसे में सवाल यह है कि सरकार जो दावे कर रही है उसे बजट के जरिए कैसे पूरा करेगी। किसानों की आत्महत्या और उपज के सही दाम न मिल पाना राज्य सरकारों के सामने बड़ी चुनौती है। बीजेपी के लिए यह ज्यादा बड़ी परेशानी है क्योंकि सहयोगियों के साथ 19 राज्यों में उसकी सरकार है।
मोदी सरकार के इस बजट से युवाओं को काफी उम्मीद है। आज देश में बेरोजगारी सबसे बड़ी संकट है। मोदी सरकार अपने कार्यकाल का करीब 4 साल पूरा कर चुकी है। लेकिन सरकार ने युवाओं को जो रोजगार देने के वादे किए थे अब तक वह पूरा नहीं हो पाई है। आने वाले एक साल में भी यह नामुमकिन जैसा दिखता है। देश में लगातार बेरोजगारी दर में इजाफा हो रहा है, खासकर पिछड़ा वर्ग में। यह बात सरकार संसद में भी स्वीकार कर चुकी है। सरकार के मुबातिक, देश में बेरोजगारी दर में इजाफा हुआ है। देश में कुल बेरोजगारी दर 5 फीसदी है, जबकि यह ओबीसी के लिए 5.2 फीसदी है। साल 2013 में बेरोजगारी दर 4.9 फीसदी, 2012 में 4.7 फीसदी और 2011 में 3.8 फीसदी थी। अनुसूचित जाति में यह दर साल 2011 में 3.1 फीसदी थी, जो अब बढ़कर 5 फीसदी हो गई है। हालांकि पीएम मोदी कह रहे हैं कि रोजगार के आंकड़े जुटाने के तरीके ठीक नहीं हैं और वो स्वरोजगार के बढ़े अवसरों का जिक्र करते हैं। यह बजट मोदी सरकार के लिए एक ऐसा आखिरी मौका है जिसमें सरकार को रोजगार बढ़ाने के लिए बड़ा ऐलान करना ही होगा। लेकिन इसके आसार कम ही नजर आ रहे हैं।
मोदी सरकार के इस बजट से मध्य वर्ग को भी काफी उम्मीदें हैं। मध्य वर्ग की पूरी उम्मीद प्रत्यक्ष कर यानी आय कर पर टिकी है। कहा जाता है कि चुनाव से पहले के अंतिम पूर्ण बजट में सरकारें मध्य वर्ग को आय कर की दरों में कोई बड़ी राहत देने से बचती हैं। वहीं पीएम मोदी इस बात का पहले ही संकेत दे चुके हैं कि यह बजट लोकलुभावन नहीं होगा। ऐसे में इस बजट में मध्य वर्ग के लिए बड़े ऐलान की कम ही उम्मीद है।
Published: 25 Jan 2018, 1:59 PM IST
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Published: 25 Jan 2018, 1:59 PM IST