2014 के लोकसभा चुनाव के माहौल में बॉलीवुड फिल्म ‘पीपली लाइव’ का गीत …महंगाई डायन खाय जात है, हर किसी की जुबान पर था, और इन्हीं भावनाओं को भुनाते हुए बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने जुमला उछाला था कि ‘अच्छे दिन आने वाले हैं।’ अब जबकि मोदी सरकार शासन के 5 साल पूरे करने वाली है, लेकिन अच्छे दिनों का दूर-दूर तक अता-पता नहीं है। अब फिर हिंदी फिल्म फन्ने खां का एक नया गीत सामने आया है, जिसका मुखड़ा है ‘अच्छे दिन कब आएंगे?’ 2019 के लोकसभा चुनाव के ऐन पहले इस गीत के सामने आने से बीजेपी परेशान है। माना जा रहा है कि यह गीत भी उसी तरह लोगों को लुभा रहा है जैसे महंगाई डायन ने लुभाया था, और उन्होंने सत्तासीन शासन को उखाड़ फेंका था।
संयोग ही है कि हर साल एक करोड़ रोजगार का वादा हो, कालाधन वापस लाने का वचन हो, हर किसी के खाते में 15 लाख रुपए डालने का जुमला हो या जमाखोरी रोकने के लिए विशेष अदालतें बनाने की बात हो, मोदी सरकार के वादों की फेहरिस्त बहुंत लंबी है, और इनमें से एक भी वादा पूरा नहीं हुआ है। जब वादा ही पूरा नहीं हुआ तो अच्छे दिन कहां से आएंगे।
फिल्ममेकर अतुल मंजरेकर की फन्ने खां, एक संगीत कॉमेडी है और इसमें अनिल कपूर और एश्वर्या राय बच्चन के साथ ही राजकुमार राव ने भी काम किया है। फिल्म का ट्रेलर रिलीज होने के बाद से ही फन्ने खां को लेकर खूब चर्चा हो रही है। फिल्म की कहानी एक छोटे-मोटे गायक की जिंदगी के आसपास घूमती है, जो अपनी होनहार और कलाकार बेटी को सिंगर बनाने के लिए संघर्ष करता है। फिल्म के कुछेक दृश्यों में अधेड़ उम्र अनिल कुमार परेशान हाल में टैक्सी चलाते और रात को राजकुमार राव के साथ ड्रिंक पर गम गलत करते नजर आते हैं। यह फिल्म 3 अगस्त को रिलीज़ होने वाली है।
फिल्म के प्रोमोशन के लिए बनाए गए फेसबुक पेज पर लिखा है कि, यह फिल्म उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो सपने देखते हैं, क्योंकि अच्छे दिन सबके आते हैं ! इस पेज पर अनिल कपूर का टैक्सी वाला फोटो भी लगा है।
फिल्म का गीत अच्छे दिन कब आएंगे, न सिर्फ तकलीफ को बयां करता है, बल्कि आत्ममंथन करने को भी मजबूर करता है। इसे अमित त्रिवेदी ने ही गाया है और संगीतबद्ध किया है, जबकि इसके बोल लिखे हैं इरशाद कामिल ने। गीत के बोल हैं:
खुदा तुम्हें प्रणाम है सादर
पर तूने दी है बस एक ही चादर
क्या ओढेंगे, क्या बिछाएंगे
मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?
दो रोटी और एक लंगोटी
एक लंगोटी, वह भी छोटी
इसमें क्या बदन छुपाएंगे
मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?
मैं खाली खाली था
मैं खाली खाली हूं
मैं खाली खाली खोया खोया सा
मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?
हो गीत नहीं यह मेरा दर्द है
कैसे यह रोजाना ही गाता जाऊं मैं
खाली खाली जेबों में, ख्वाब ही ख्वाब हैं
पूरे जो होते नहीं,
वक्त हुआ नाखून के जैसा
बेदर्दी से जिसको मैं काटूं
रोज जरूरत और ख्वाहिश के
बीच में खुद को कैसे मैं बांटूं
मेरे टुकड़े हो जाएंगे,
मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?
न जाने यह कब आएंगे?
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इस गीत को इस वीडियो में देखा और सुना जा सकता है
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