राज्यसभा में मंगलवार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति, सेवा शर्तों और पदावधि संबंधी विधेयक पेश किया गया। विधेयक में चयन समिति में अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, सदस्यों के रूप में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे।
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में यह विधेयक प्रस्तुत किया। इस विषय पर बोलते हुए कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि चुनाव आयोग की बात करते समय चार शब्द निर्भीकता, शुचिता, निष्पक्षता, स्वायत्ता सभी व्यक्तियों के दिमाग में आएंगे। सरकार द्वारा पेश किया जा रहा यह कानून इन चारों शब्दों को बुलडोजर के नीचे कुचलना वाला कानून है।
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सुरजेवाला ने कहा कि जब प्रधानमंत्री और उनके द्वारा बनाए गए मंत्री ही मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करेंगे तो फिर इस नियुक्ति के लिए किसी कमेटी के गठन की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती। केंद्र सरकार का मंत्री सदैव प्रधानमंत्री की इच्छा अनुसार चुनाव आयुक्त के चयन में अपनी भूमिका निभाएगा इसलिए यह कानून निरर्थक है। इस बिल के क्लॉज 5 में यह प्रावधान कर दिया गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्त एक विशेष श्रेणी को छोड़कर देश का कोई और नागरिक नहीं हो सकता।
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उन्होंने कहा कि राज्यसभा में रखे गए इस बिल में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार का कोई सेवारत या रिटायर्ड सचिव स्तर का अधिकारी ही मुख्य चुनाव आयुक्त हो सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि आपने इन अधिकारियों के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण कर दिया। सुरजेवाला ने कांग्रेस पार्टी की ओर से बोलते हुए कहा कि ब्यूरोक्रेट मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनेगा लेकिन ब्यूरोक्रेट ने न तो कभी सरपंच का चुनाव लड़ा, न जिला परिषद का चुनाव लड़ा, न एमएलए-एमपी का चुनाव लड़ा। यानि इलेक्शन की लिस्ट और इलेक्शन का प्रबंध, वे लोग करेंगे, जिन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा।
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इसके साथ उन्होंने बिल में बताई गई सर्च कमेटी पर भी आपत्ति दर्ज कराई। उन्होंने कहा कि यह सर्च कमेटी वास्तविकता में एक स्टीयरिंग कमेटी होगी, जो उम्मीदवारों को एलिमिनेट करेगी। सर्च कमेटी कानून मंत्री और सेलेक्शन कमेटी प्रधानमंत्री हैं। सुरजेवाला ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त की शक्तियों को भी कम करने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण निर्णय मुख्य निर्वाचन आयुक्त लेते थे। लेकिन, अब बहुमत के आधार पर निर्णय लिए जाएंगे। यह विधेयक निर्भीकता, शुचिता, निष्पक्षता, स्वायत्ता को बर्बाद करने वाला विधेयक है।
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इससे पहले सदन में यह बिल पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि यह बिल 10 अगस्त 2023 को राज्यसभा में पेश किया गया था। 1991 के ऐक्ट को रिप्लेस करते हुए यह बिल पेश किया गया था। 1991 की एक्ट में बाकी चीज तो थी। लेकिन, नियुक्ति का प्रावधान नहीं था। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसरण में अब यह बिल लाए गए हैं। 10 अगस्त को पेश किए गए विधेयक में संशोधन किए गए हैं।
केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि सदन इस पर चर्चा करे और जो सुझाव आएंगे, फिर उन पर विचार किया जाएगा। विधेयक में चयन समिति की संरचना की व्यवस्था की गई है।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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