साल 2017 में जहां बीजेपी का विजय अभियान जारी रहा, वहीं कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी। साल की शुरूआत जहां उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनावी की तैयारियों के साथ हुई, वहीं अंत गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ हुआ। इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी को कामयाबी तो मिली, लेकिन साल का अंत आते-आते गुजरात में उसे कांग्रेस से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। वहीं चारा घोटाला के एक मामले में देश में विपक्ष के सबसे बड़े चेहरों में से एक लालू यादव के जेल जाने से विपक्षी रणनीति को तगड़ा झटका लगा। आइए डालते हैं 2017 की ऐसी ही कुछ बड़ी राजनीतिक हलचलों पर एक नजर।
अगर ये कहा जाए कि 2017 बीजेपी के लिए खुशियों से भरा रहा, तो गलत नहीं होगा। एक तरह से साल की शुरुआत में भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी को अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी हासिल हुई। बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आवश्यक सीटों से 100 से ज्यादा सीटें मिलीं। इस जीत के साथ पार्टी में पीएम मोदी का दबदबा एक बार फिर कायम हो गया। बीजेपी ने भी इस जीत श्रेय मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को दिया।
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लेकिन यूपी चुनाव की सबसे बड़ी हलचल चुनाव परिणाम आने के बाद सामने आई। माना जा रहा था कि प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी मोदी और शाह के किसी पसंदीदा व्यक्ति को मिलेगी। मोदी के पीएम बनने के बाद बीजेपी में, राज्यों में चुनाव में जीतने के बाद किसी जनाधारविहीन नेता को मुख्यमंत्री बनाने की शुरू हुई परिपाटी यहां थमती नजर आई। इतनी बड़ी कामयाबी के बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रदेश के निर्वाचित विधायकों के दबाव में पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने का फैसला लिया। इसके कई राजनीतिक अर्थ निकाले गए। एक तो आदित्यनाथ प्रदेश में भाजपा के शीर्ष नेता के तौर पर स्थापित हो गए वहीं दूसरी ओर बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में उन्हें मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाने लगा। इसके अलावा योगी की कट्टर हिंदुत्व की छवि की वजह से यह भी स्पष्ट हो गया कि बीजेपी की आगे की राजनीति भी आक्रामक हिंदुत्व के आधार पर ही चलेगी।
राम नाथ कोविंद ने 25 जून, 2017 को देश के 14वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। कोविंद इससे पहले बिहार के राज्यपाल के पद पर थे। उन्हें बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने अपना उम्मीदवार बनाया था। उत्तर प्रदेश के रहने वाले कोविंद दलित समुदाय से आते हैं और राष्ट्रपति बनने वाले दसरे दलित व्यक्ति हैं। उन्होंने चुनाव में 65.65 प्रतिशत मत हासिल कर विपक्ष की उम्मीदवार और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को हराया। कोविंद बीजेपी के सदस्य रहे हैं और 1994 से लेकर 2006 तक राज्यसभा के सदस्य रहे हैं।
इस समय देश के उपराष्ट्रपति का चुनाव संपन्न हुआ। इस संवैधानिक पद पर भी बीजेपी के उम्मीदवार वेंकैया नायडू ने आसान जीत दर्ज कर ली। नायडू के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी को अपना उम्मीदवार बनाया था। नायडू ने दो बार उपराष्ट्रपति रहे मो. हामिद अंसारी का स्थान लिया है। इन दोनों पदों पर बीजेपी उम्मीदवार की जीत के साथ देश के तीनों बड़े संवैधानिक पद पर आरएसएस का कब्जा हो गया है। यह पहली बार है जब तीनों प्रमुख संवैधानिक पद पर आरएसएस का व्यक्ति पहुंचा हो।
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साल 2017 में बिहार में राजद-जदयू-कांग्रेस के महागठबंधन का टूटना साल की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना में से एक था। बीजेपी और नरेंद्र मोदी के विरोध के नाम पर जिस नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ा और फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ जबर्दस्त चुनावी जीत हासिल की थी, उन्होंने ही 2017 के जुलाई के आखिर में लालू यादव की पार्टी राजद से गठबंधन तोड़कर बीजेपी से फिर हाथ मिला लिया। इससे पहले नीतीश कुमार को साल 2019 के आम चुनाव में विपक्ष के बड़े चेहरे के तौर पर देखा जा रहा था। नीतीश के जाने से बजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता को बड़ा झटका लगा, जिससे अन्य राज्यों के चुनाव में बीजेपी को फायदा मिला।
1 जुलाई 2017 को मोदी सरकार ने पूरे देश में वस्तु एवं सेवा कर यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी ) लागू कर दिया। सरकार ने इसे देश के इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया। इस नए कर कानून के तहत केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अलग अलग लगाए जा रहे विभिन्न करों की जगह पर पूरे देश के लिए एक कर प्रणाली जीएसटी लागू कर दी गई। इस फैसले से देश भर में अलग-अलग स्तरों पर लग रहे एक्साइज ड्यूटी, वैट, लक्जरी टैक्स, सर्विस टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स आदि की जगह सिर्फ एक कर लागू हो गया हालांकि विभिन्न उत्पादों पर उच्च दर को लेकर इसका खासा विरोध भी हुआ। इस नई कर प्रणाली की वजह से बड़ी संख्या में देश भर में उद्योग धंधों पर प्रतिकूल असर पड़ा। कई उद्योग धंधे पूरी तरह ठप हो गए, जिसकी वजह से लाखों लोगों की नौकरी छिन गई। विपक्ष ने सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना की। कांग्रेस अध्यक्ष ने सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स ठहराया। चौतरफा दबाव औऱ गुजरात चुनाव को देखते हुए मोदी सरकार को कई उत्पादों के कर दरों में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
साल 2017 के अगस्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का चौथा और संभवतः आखिरी विस्तार किया। यह मंत्रिमंडल विस्तार कई मायनों में अपने आप में काफी अहम रहा। इस मंत्रिमंडल विस्तार से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के भी केंद्र सरकार में शामिल होने के कयास लग रहे थे। जुलाई में राजद से गठबंधन तोड़ नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ बिहार में सरकार का गठन किया था। उसी वक्त से कहा जाने लगा था कि अब केंद्र में मंत्रिमंडल विस्तार होगा और उसमें जदयू को भी जगह मिलेगी। जदयू की ओर से मंत्री बनने के लिए कई नाम मीडिया में चलने लगे थे। कई जदयू सांसदों ने तो पूरी तैयारी कर ली थी। लेकिन अंतिम समय में जदयू और नीतीश कुमार को उस समय झटका लगा जब कैबिनेट विस्तार में जदयू को जगह ही नहीं मिली। इसके अलावा इसी कैबिनेट विस्तार में लगातार हो रहे रेल हादसों की वजह से मोदी सरकार के लिए किरकिरी की वजह बने सुरेश प्रभु को की रेल मंत्रालय से छुट्टी हुई। उनकी जगह पर उर्जा मंत्री पीयूष गोयल को रेल मंत्री बनाया गया। इसके अलावा इसकैबिनेट विस्तार की जो सबसे बड़ी बात रही वह यह थी कि इसी में निर्मला सीतारमण को रक्षा मंत्री का पदभार सौंपा गया। सीतारमण रक्षा मंत्री बनने वाली इंदिरा गांधी के बाद दूसरी महिला हैं। माना जा रहा है कि यह विस्तार मोदी सरकार का 2019 से पहले का आखिरी विस्तार था।
कर्नाटक की जानी मानी पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौरी लंकेश की 5 सितंबर को बंगलुरू में उनके घर के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गई। गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए। तमाम पत्रकार संगठनों, मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनकी हत्या के विरोध में आवाज उठाई। गौरी अपनी खुद की साप्ताहिक पत्रिका लंकेश पत्रिके चलाती थीं, जिसमें वह बेहद बाबाक औऱ नीडर होकर आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ लिखा करती थीं। उनकी हत्या के पीछे उनकी इसी निर्भीक पत्रकारिता को वजह माना जा रहा है। स्थानीय बीजेपी नेता प्रह्लाद जोशी के खिलाफ खबर छापने के बाद उन्हें मुकदमे औऱ धमकियों का सामना करना पड़ रहा था। उन्हें लगातार कट्टरवादी संगठनों से धमकियां मिल रही थीं। और अंततः उनकी उनके घर के बाहर तीन लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी।
लगभग दो दशक तक कांग्रेस पाची की बागडोर संभालने के बाद सोनिया गांधी ने 2017 के दिसंबर में कांग्रेस उपाध्यक्ष रहे राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंप दी। राहुल गांधी को यूं तो कांटों भरा ताज मिला है, लेकिन गुजरात में बीजेपी को अब तक की सबसे कड़ी चुनौती पेश कर कांग्रेस को खड़ा करने की कामयाबी से उनके हौंसले और बुलंद होंगे। अब राहुल गांधी के सामने कई चुनौती हैं जिनसे निपटने में उनकी असली परीक्षा होगी। पूरे देश में कमजोर हो चुकी कांग्रेस में नया जान फूंकने से लेकर कई राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी को कामयाबी दिलाना और पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में जरूरी बदलाव करना उनके सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती है। सोनिया गांधी की राजनीतिक सूझबूझ और सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने की कला का ना होना पार्टी को जरूर खलेगा लेकिन राहुल गांधी के लिए भी यह मौका है जब वह खुद को हर कसौटी पर साबित कर एक बड़े राजेता के तौर पर उभरें। औऱ राहुल में ये क्षमता गुजरात चुनाव से ही दिखने लगा है। पिछले एक साल में उनका सार्वजनिक मंचों से संबोधन का तरीका बिल्कुल बदला बदला सा है और सोशल मीडिया पर भी उनकी एक नई छवि उभरी है। गुजरात चुनाव में राहुल गांधी का एक परिपक्व नेता के तौर पर उभार और फिर पार्टी अध्यक्ष बनना आने वाले दिनों में न सिर्फ कांग्रेस बल्कि देश की राजनीति पर असर डालेगा।
साल के आखिर में बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला से जुड़े एक मामले में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को रांची की सीबीआई अदालत ने दोषी ठहरा दिया। मामले में अन्य 14 लोगों को भी दोषी दोषी ठहराया गया है जबकि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र समेत 7 लोगों को अदालत ने बरी कर दिया है। इस मामले में सजा का ऐलान 3 जनवरी को होगा। दोषी ठहराए जाने के बाद लालू यादव को जेल भेज दिया गया। बिहार की राजनीति में इस तरह के फैसले के पहले से कयास लगाए जा रहे थे। लालू यादव लगातार बीजेपी और खासकर पीएम मोदी और अमित शाह पर हमलावर थे। उन्होंने खुद भी बीजेपी के दबाव में इसी तरह के फैसले की आशंका जताई थी। लालू यादव के जेल जाने से बिहार समेत देश की राजनीति पर असर पड़ने की संभावना है। लालू यादव इस समय विपक्ष के सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं। कांग्रेस के बाद लालू यादव ही हैं जो बीजेपी के खिलाफ अपनी राजनीति पर मजबूती से टिके रहे हैं। बिहार में नीतीश और बीजेपी के गठजोड़ को चुनौती देने और देश में बीजेपी आरएसएस के खिलाफ किसी बड़े गठबंधन को आकार देने में भी उनक बड़ी भूमिका थी। ऐसे में उनका जेल जाना विपक्षी खेमे के लिए बड़ी झटका माना जा रहा है।
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