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महाराष्ट्र में तीसरे चरण में राजवंशजों और राजनीतिक क्षत्रपों की लड़ाई, कई परिवार आमने-सामने

कोकण इलाके के रायगड लोकसभा क्षेत्र में भी पवार परिवार की लड़ाई देखी जा सकती है। यहां के मौजूदा सांसद सुनील तटकरे भी विद्रोह करके अजित के साथ हो गए हैं। तटकरे को अजित ने फिर से यहां से उम्मीदवार बनाया है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

महाराष्ट्र में 7 मई को तीसरे चरण में 11 लोकसभा सीटों के लिए मतदान होने वाले हैं। इन सीटों में से जिन सीटों पर सबकी नजर है वहां पर राजवंशजों शाहू छत्रपति महाराज, उदयनराजे भोसले और राजनीतिक क्षत्रपों में खासकर शरद पवार के परिवार की लड़ाई पर सबकी सांसें अटकी हुई है। शिवाजी महाराज के वंशज शाहू छत्रपति महाराज कोल्हापुर में एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के संजय मंडिलक को चुनौती दे रहे हैं। शाहू छत्रपति पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। मंडलिक की उम्मीदवारी को बीजेपी के लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। बीजेपी के लोगों का आरोप है कि मंडलिक पांच साल से अपने क्षेत्र से गायब थे। इसलिए मंडलिक के लिए शिंदे गुट को कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। शिवाजी के दूसरे वंशज उदयनराजे भोसले का मुकाबला शरद पवार गुट के शशिकांत शिंदे से है। भोसले बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि वह इससे पहले लोकसभा के उपचुनाव में शरद की अविभाजित एनसीपी से चुनाव हार गए थे। बीजेपी एक रणनीति के तहत शिंदे को एक कथित मामले में कानूनी पचड़े में घसीटने की कवायद कर रही है। लेकिन शिंदे ने खुद को बेदाग बताया है। इसके बाद शरद पवार ने भी भोसले को हराने के लिए ब्यूह रचना की है।

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इधर बारामती में जनता राजा शरद पवार की अपने ही परिवार से पहली बार चुनावी लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर है। पवार से बगावत करके बीजेपी के साथ सत्ता में शामिल होने वाले उनके भतीजे अजित पवार ने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को चाचा शरद की बेटी सुप्रिया सुले के सामने मैदान में उतार दिया है। परिवार बंटा है तो जाहिर-सी बात है कि उनके मतदाता भी बंटेंगे। मतदाताओं की अलग-अलग राय है और उनका समर्थन नतीजे में ही उजागर होगा। शरद का राज्य में भी राजनीतिक दखल है। उनके परिवार से नाता रखने वाले ओमराजे निंबालकर और अर्चना पाटील के बीच भी पारिवारिक लड़ाई से उस्मानाबाद (धाराशीव) में बारामती की ही कहानी दोहरायी जा रही है। ओमराजे उद्धव ठाकरे गुट के उम्मीदवार हैं तो अर्चना अजित गुट से चुनाव मैदान में हैं। ओमराजे और अर्चना के रिश्ते को समझने की जरूरत है। ओमराजे और अर्चना देवर-भाभी के रिश्ते में हैं। ओमराजे के पिता पवनराजे निंबालकर हैं जिनकी हत्या हो चुकी है। पवनराजे डॉ. पद्मसिंह पाटील के कजिन हैं। अर्चना डॉ. पाटील के बेटे राणा रणजीतसिंह पाटील की पत्नी हैं। डॉ. पाटील से अजित के भी पारिवरिक रिश्ते हैं। अजित की पत्नी सुनेत्रा पवार डॉ. पाटील की बहन हैं। इसलिए उस्मानाबाद में भी पवार परिवार के बीच पारिवारिक लड़ाई है। ओमराजे महा विकास आघाड़ी के उम्मीदवार हैं और उनको शरद का समर्थन है। इस समर्थन से चाचा-भतीजे के बीच यहां भी लड़ाई है। क्योंकि, अजित गुट की उम्मीदवार अर्चना हैं।

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अब देखिए सोलापुर जो कर्नाटक सीमा से सटा हुआ है। यहां मराठी और कन्नड़ भाषी रहते हैं। यह कांग्रेस का गढ़ रहा है। लेकिन पिछले दो चुनावों से यह बीजेपी के कब्जे में है। इस बार दो मौजूदा विधायकों प्रणिति शिंदे (कांग्रेस) और राम सातपुते (बीजेपी) के बीच कांटे की टक्कर है। कांग्रेस के दिग्गज नेता सुशील कुमार शिंदे की बेटी प्रणिति अपनी विरासत बचाने में लगी हैं तो बीजेपी नेता एवं उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के करीबी राम के सामने बीजेपी के नए गढ़ को सुरक्षित रखने की चुनौती है। बीजेपी से लिंगायत समाज नाराज है। इसलिए राम के लिए बीजेपी को ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है। बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसद जयसिद्धेश्वर स्वामी को दोहराने से परहेज किया है। क्योंकि, आम लोगों में उनके प्रति नाराजगी है। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र के लिए विकास का भी काम नहीं किया है। इस क्षेत्र में भीषण जल संकट है। शहर और गांव के लोगों को आज भी टैंकर से पानी मुहैया कराया जा रहा है। जबकि मोदी ने अपनी रिपोर्ट कार्ड में दावा किया है कि हर घर में नल हर घर में पानी पहुंचाया गया है। 

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कोकण इलाके के रायगड लोकसभा क्षेत्र में भी पवार परिवार की लड़ाई देखी जा सकती है। यहां के मौजूदा सांसद सुनील तटकरे भी विद्रोह करके अजित के साथ हो गए हैं। तटकरे को अजित ने फिर से यहां से उम्मीदवार बनाया है। लेकिन तटकरे के खिलाफ उद्धव गुट के अनंत गीते मैदान में हैं। महा विकास आघाड़ी में उद्धव और शरद साथ हैं। इसलिए शरद भी अजित के उम्मीदवार को हराने में लगे हैं जिससे चाचा-भतीजा के बीच की लड़ाई का खेल यहां भी देखने को मिल रहा है। वैसे तटकरे पर आरोप है कि बतौर सांसद उन्होंने क्षेत्र में विकास का काम नहीं किया है। यहां पर पर्यावरण के साथ मच्छीमारों की भी बड़ी समस्या है। तटकरे के खिलाफ लोगों में नाराजगी देखी जा रही है। कोकण में ही रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग लोकसभा सीट पर बीजेपी के थोपे गए उम्मीदवार नारायण राणे से एकनाथ शिंदे गुट नाराज है। शिंदे गुट की शिवसेना ने इसे अपनी पारंपरिक सीट मानते हुए इस पर अपना दावा किया था। मराठी मानुष के मुद्दे पर बाल ठाकरे को कोकण से ही बड़ा समर्थन मिला था। लेकिन बीजेपी ने शिंदे गुट की मांग को नकार दिया। इस सीट पर उद्धव गुट के मौजूदा सांसद विनायक राउत ने राणे के पुत्र निलेश राणे को पिछले दो चुनावों में हराया है। राणे अपने ही क्षेत्र में कमजोर दिख रहे हैं। दूसरी ओर शिंदे गुट की नाराजगी का उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। यहां भी महा विकास आघाड़ी मजबूत स्थिति में है। रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग में पहली बार धनुष-बाण चुनाव चिन्ह देखने को नहीं मिलेगा। बीजेपी का कमल और उद्धव ठाकरे की शिवसेना का मशाल रहने से उद्धव गुट को शिवसैनिकों की सहानुभूति ज्यादा मिलने की संभावना है।

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बीजेपी की तीसरे चरण में चिंता बढ़ी हुई है। क्योंकि, जिस तरह से सीटों और उम्मीदवारों को लेकर बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों शिंदे गुट की शिवसेना और अजित गुट की एनसीपी पर दबाव बनाया है उससे कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। काम नहीं करने वालों और कमजोर नेताओं को टिकट देना भी अब बीजेपी को भारी पड़ रहा है। बीजेपी के लिए सांगली, सतारा, माढा, सोलापुर और रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग लोकसभा सीट बहुत आसान नहीं है। जबकि बीजेपी ने 11 लोकसभा सीटों में से 6 सीटों लातूर, सोलापुर, माढा, सतारा, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, सांगली पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। अजित गुट को 3 सीटें बारामती, उस्मानाबाद, रायगड और शिंदे गुट को कोल्हापुर, हातकणंगले की कुल 2 सीटें दी गई है। इन 11 सीटों की भौगोलिक स्थिति अलग है। इनमें पश्चिमी महाराष्ट्र की सात (सतारा, कोल्हापुर, बारामती, सांगली, सोलापुर, माढा और हातकणंगले), मराठवाड़ा की दो (उस्मानाबाद और लातूर) और कोकण की दो सीटें (रायगड और रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग) हैं। इन क्षेत्रों में किसान आत्महत्या, सूखा और पानी की समस्याएं भयंकर है। विकास की योजनाओं पर काम नहीं हो रहा है। बेरोजगारी है जिससे भूमिपुत्रों को रोजगार के लिए पलायन होना पड़ता है।

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