दीक्षांत समारोह के दौरान छात्र अबतक काले गाउन और टोपी पहन कर अपनी डिग्री लेने जाया करते थे, लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस प्रथा को बदलने को कहा है। मंत्रालय ने इस संबंध में एक पत्र जारी कर सभी केंद्रीय मेडिकल कॉलेजों में इसे बदलने को कहा है। मंत्रालय ने शुक्रवार (23 अगस्त, 2024) को कहा कि दीक्षांत समारोह के दौरान काले गाउन और टोपी का उपयोग एक औपनिवेशिक विरासत है, जिसे बदलने की जरूरत है।
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स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आदेश में सभी संस्थानों को ड्रेस कोड बदलने को कहा गया है। इसमें संस्थानों से कहा गया है कि वे दीक्षांत समारोह के लिए उस राज्य की स्थानीय परंपराओं के आधार पर उचित ड्रेस कोड तैयार करें, जिसमें वे स्थित हैं। पत्र में कहा गया है, "उपर्युक्त परंपरा औपनिवेशिक विरासत है, जिसे बदलने की जरूरत है।"
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23 अगस्त, 2024 को जारी आदेश में कहा गया है, "...मंत्रालय ने यह निर्णय लिया है कि चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने वाले एम्स/आईएनआई सहित मंत्रालय के विभिन्न संस्थान अपने संस्थान के दीक्षांत समारोह के लिए उस राज्य की स्थानीय परंपराओं के आधार पर उपयुक्त भारतीय ड्रेस कोड तैयार करेंगे, जिसमें संस्थान स्थित है।" आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि यह "माननीय प्रधान मंत्री द्वारा घोषित पंच प्रण (पांच संकल्प) के संदर्भ में है।" मंत्रालय ने उन्हें इस संबंध में प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए कहा, जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव द्वारा अनुमोदित किया जाएगा।
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ताया जाता है कि दुनिया में सबसे पहले गाउन पहनने की परंपरा यूरोप से शुरू हुई। जहां 12वीं शताब्दी में सबसे पहले विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद दीक्षांत समारोह में गाउन पहना गया। उस समय गाउन पहनने के पीछे यूरोप में पड़ने वाली भयंकर सर्दी में छात्रों को गर्मी का एहसास कराना था। इसके बाद धीरे-धीरे जैसे-जैसे विश्वविद्यालय का विस्तार होता गया। शिक्षा का नवीनीकरण हुआ वैसे-वैसे गाउन के रंग और डिजाइन में परिवर्तन होता गया। यूरोप से शुरुआत के समय गाउन का रंग सिर्फ काला रखा गया था।
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