सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को कहा कि छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस कानून का घोर उल्लंघन था। इसके एक उपाय के तौर पर अदालत ने सरकार को मस्जिद निर्माण के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन आवंटित करने का निर्देश दिया है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, “यथास्थिति के आदेश का उल्लंघन करते हुए मस्जिद को ध्वस्त किया गया।”
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14 अगस्त, 1989 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था, जिसे शीर्ष अदालत ने 15 नवंबर, 1991 को बरकरार रखा।
लेकिन छह दिसंबर, 1992 को एक हिंसक भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया और कहा गया कि यहां भगवान राम को समर्पित एक प्राचीन मंदिर था, जिसे मुगल सम्राट बाबर के एक सैन्य कमांडर ने ध्वस्त कर दिया था।
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अदालत ने निर्देश दिया कि केंद्र या उत्तर प्रदेश सरकार को अयोध्या में मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन आवंटित करनी चाहिए।
संतुलन बनाने के लिए अदालत ने माना कि मुसलमानों को भूमि का आवंटन आवश्यक है। विवादित भूमि के संबंध में हिंदुओं के समग्र दावे व साक्ष्य मुस्लिमों द्वारा जोड़े गए सबूतों की तुलना में बेहतर पाए गए।
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अदालत ने यह भी कहा कि नमाज 1949 तक शुक्रवार को पढ़ी जाती थी और अंतिम नमाज 16 दिसंबर, 1949 को अता की गई थी। 22-23 दिसंबर की मध्यरात्रि में दो मूर्तियों को बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के अंदर रखा गया था। भक्तों ने दावा किया कि मूर्तियां अपने आप चमत्कारिक रूप से प्रकट हुईं। 1934 में दंगों के दौरान मस्जिद की दीवारों और एक गुंबद को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।
अदालत ने कहा, “1934 में मस्जिद को नुकसान, 1949 में मुसलमानों को हटाने और छह दिसंबर, 1992 को अंतिम विध्वंस की वजह से कानून के शासन का घोर उल्लंघन हुआ।”
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