केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बीते साल काफी शोर-शराबे के साथ आयुष्मान भारत योजना लॉंच की थी। ‘मोदी केयर’ के नाम से चर्चित इस योजना का भी वही हाल हुआ जो मोदी सरकार की दूसरी तमाम योजनाओं का हुआ है। आधी-अधूरी तैयारी और पूरी प्रक्रिया पर भ्रम के कारण इसका असल फायदा लोगों तक नहीं पहुंच रहा है। इलाज और इलाज के बाद भुगतान कैसे होगा, इसकी प्रक्रिया को लेकर तमाम भ्रम हैं, जिसके कारण निजी अस्पताल मरीजों के इलाज से कन्नी काट रहे हैं। नवजीवन देशभर में इस योजना की स्थिति पर एक विशेष रिपोर्ट की श्रंखला चला रहा है, जिसकी अंतिम कड़ी में आज हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में इस योजना की जमीनी हकीकत से हम पाठकों को रूबरू करा रहे हैं।
हरियाणाः कार्ड बनवाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं बीपीएल परिवार
हरियाणा में आयुष्मान भारत योजना खुद बीमार सी लगती है। मोदी केयर के नाम से भी जानी जाने वाली इस स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत पांच लाख तक का हेल्थकवर लेने के लिए बीपीएल परिवार दर-दर भटक रहे हैं। मोदी सरकार के लिए गेम चेंजर मानी जा रही इस योजना के तहत अभी तक हरियाणा में महज 25 सौ लोगों को ही लाभ मिलना इस बात की तस्दीक कर रहा है कि यह योजना नाकामयाबी की इबारत लिख रही है।
2.53 करोड़ की आबादी वाले हरियाणा में पहली जनवरी 2019 तक 15 लाख 51 हजार परिवारों के इस योजना के तहत कवर होने का दावा है। यह जानकारी आयुष्मान योजना के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. विमल ने दी। साथ ही उन्होंने बताया कि पूरे राज्य में पहली जनवरी तक 25 सौ लोग आयुष्मान योजना के तहत कैशलेस इलाज की सुविधा का लाभ ले चुके हैं। ढाई करोड़ की आबादी में अभी तक महज 25 सौ लोगों को ही फायदा मिल पाना इस योजना की विफलता बयां करती है।
हरियाणा की सियासी राजधानी कहे जाने वाले शहर हिसार के आयुष्मान योजना के नोडल अधिकारी डॉ. जितेंद्र शर्मा ने बताया कि यहां करीब 84 हजार कार्ड जारी किए गए हैं। वहीं अंबाला के नोडल अधिकारी डॉ. अरविंदर जीत सिंह ने बताया कि यहां करीब 88,000 परिवार इस योजना के तहत कवर किए जा चुके हैं, जबकि 45,000 गोल्डन कार्ड जारी किए हैं। पर असली कहानी यह है कि अभी तक इस योजना के तहत अंबाला जिले में इलाज करवाने वाले महज 145 लोग हैं। वहीं पंचकूला के नोडल अधिकारी डॉ. अनुज ने बताया कि24,000 परिवार यहां अभी तक कवर किए जा चुके हैं। डॉ. अनुज के मुताबिक 80-85 लोगों की सर्जरी अभी तक आयुष्मान योजना के तहत यहां हो चुकी है।
हरियाणा की सबसे ज्यादा आबादी वाले जिले फरीदाबाद के नोडल अधिकारी डॉ. रमेशचंदर के मुताबिक यहां अब तक एक लाख चौंतीस हजार परिवार इस योजना के तहत कवर हो चुके हैं। 15 हजार गोल्डन कार्ड बनाए गए हैं, लेकिन इस योजना के तहत इलाज करीब सवा दो सौ लोगों का ही हुआ है। करीब 20 लाख की आबादी वाले शहर में तकरीबन सवा दो सौ लोगों का इलाज कराना योजना की विफलता ही है। डॉ. रमेश ने यह भी बताया कि फरीदाबाद में इस योजना के लिए पैनल में पांच सरकारी और 14 निजी अस्पताल हैं।
हरियाणा के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री राव नरेंद्र सिंह का कहना है कि उनके पास बीपीएल परिवारों के रोजाना एक या दो लोग आ रहे हैं, जो उनसे मदद मांगते हैं। कोई उनकी सुनने वाला नहीं है। उनका कहना है कि इस योजना के लिए हुए सर्वे का तरीका ही गलत है। गोहाना से विधायक जगबीर सिंह मलिक का कहना है कि आयुष्मान योजना भ्रष्टाचार का एक और पिटारा है। इस योजना का हाल भी मोदी सरकार की अन्य योजनाओं की तरह ही है। शोर ज्यादा है, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं है।
जुलाना से विधायक परमिंदर ढुल ने एक उदाहरण के जरिये इस योजना की हकीकत बताई। ढुल ने बताया कि उनके पास एक शमशेर नाम का युवक मदद के लिए आया, जिसका ऑपरेशन दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में होना था। हमने सरकार से उस व्यक्ति की मदद की गुजारिश की तो जवाब मिला कि वह बीपीएल के तहत नहीं आता। ढुल का कहना है कि हरियाणा की ग्रामीण आबादी को इस योजना की समझ नहीं है और न उनमें इस बारे में कोई जागरुकता लाने की कोशिश हो रही है।
रोहतक की रहने वाली ओमवती घरों में कामकर गुजारा करती हैं। दस साल पहले पति की मृत्यु हो चुकी है। दो बटियां हैं स्वीटी और रेखा। इनके नाम गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की सूची में शामिल हैं और पीला कार्ड भी बना हुआ है। ये दो-तीन बार आयुष्मान भारत का कार्ड बनवाने गईं, लेकिन बताया गया कि लाभार्थियों की सूची में इनका नाम नहीं है। ऐसे तमाम वाकये हैं जब जरूरतमंद लोगों के कार्ड नहीं बनाए गए। ऐसे में योजना के मकसद पर ही सवाल खड़े होते हैं।
गोहाना में सरकारी अस्पताल के एक डॉक्टर ने बताया कि इस योजना के तकनीकी पहलू सामान्य आदमी की समझ से बाहर हैं, जिसकी वजह से लोग भटकते रहते हैं। उन्होंने बताया कि पैनल में सरकारी और निजी, दोनों तरह के अस्पताल हैं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि सामान्य बुखार का इलाज सरकारी अस्पताल में मिलेगा, जबकि अगर किसी को दिमागी बुखार है तो उसे निजी अस्पताल जाना पड़ेगा। ठीक इसी तरह किसी को अगर हार्ट अटैक हुआ है और उसे स्टंट डालना है, जिसका खर्च 60-70 हजार रुपये आता है तो इसका पहले ही अप्रूवल लेना पड़ता है। मरीज की एंजियोग्राफी निजी अस्पताल से करवाने पर खर्च 7-10 हजार रुपये आता है। अब मान लीजिये उस मरीज की रिपोर्ट सामान्य आ गई और स्टंट डालने की जरूरत नहीं पड़ी तो ऐसे में एंजियोग्राफी पर किया गया 7-10 हजार के खर्च का भुगतान आखिर कौन करेगा?
हिमाचल प्रदेश में आयुष्मान भारत का हालः इलाज नहीं हो पाने से लोग परेशान
आयुष्मान भारत के रथ पर सवार होकर 2019 के लोकसभा चुनाव में फतह का सपना पाले मोदी सरकार की इस योजना का राज्य में परिणाम उत्साहजनक नहीं है। अब तक महज 25 सौ लोगों का इस योजना के तहत इलाज होना हैरानी की बात है।
शिमला स्थित हिमाचल स्वास्थ्य निदेशालय के एक अधिकारी ने बताया कि प्रदेश में अभी तक 22 लाख परिवार इसके तहत कवर किए जा चुके हैं। 1.10 लाख गोल्डन कार्ड जारी हो चुके हैं। उस अधिकारी के मुताबिक 25 सौ लोग इस योजनाके तहत इलाज करवा चुके हैं, जो नाकाफी है। हिमाचल के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ठाकुर कौल सिंह का कहना है कि सरकार के ये आंकड़े भी झूठे हैं। जमीनी हालात अलग हैं। उन्होंने कहा कि 5 लाख का कवर देने के नाम पर धोखा हुआ है। बीपीएल परिवार भटक रहे हैं। मदद की आस के साथ रोजाना लोग उनके पास आते हैं।
कौल सिंह कहते हैं कि उनकी सरकार के समय एक योजना शुरू की गई थी, जिसमें पौने दो लाख तक का इलाज मुफ्त होता था। वह योजना भी बीजेपी की सरकार ने बंद कर दी। पूर्व मंत्री और सोलन से विधायक धनीराम शांडिल का कहना है कि विभाग की तरफ से बताए आंकड़े से ही इनकी पोल खुल गई है। इतने जोर-शोर से शुरू की गई योजना के तहत अब तक महज 2500 लोगों का इलाज होना अपने आप में योजना की कलई खोल रहा है। उन्होंने कहा कि बीजेपी के सभी नेता झूठ बोलते हैं।
आयुष्मान भारत योजना में छेद ही छेद, इलाज और भुगतान की प्रक्रिया को लेकर भ्रम
मोदी सरकार ने जिस तरह बड़ी-बड़ी बातों के साथ आयुष्मान भारत योजना शुरू की, व्यवहार में वैसा नहीं रहा। सबसे बड़ी बाधा खर्च होने वाली मोटी धनराशि तो है ही, इसके साथ ही ज्यादातर राज्यों में हिचकिचाहट है। जाहिर है, योजना को लेकर काफी भ्रम है।
केंद्र सरकार ने इस योजना के लिए 2,000 करोड़ की व्यवस्था की है, लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है। अगर यह योजना ठीक तरह से चलती है तो दावा भुगतान के रूप में पहले साल ही इसपर तकरीबन 50 हजार करोड़ रुपये खर्च आएगा। गिनती के राज्यों को छोड़ ज्यादातर ने ‘ट्रस्ट’ या ‘हाइब्रिड’ मॉडल को चुना है। सामान्य बीमा मॉडल में प्रतिबीमित व्यक्ति पांच लाख तक के दावों को सेटल करने की जिम्मेदारी बीमा कंपनी पर होती है। जबकि ‘ट्रस्ट’ मॉडल में यह संबद्ध राज्य सरकार को और ‘हाइब्रिड’ मॉडल में दावे के एक हिस्से का भुगतान बीमा कंपनी को करना होता है और शेष की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है।
इस योजना में केंद्र 60 फीसदी का बोझ उठाएगा और शेष 40 फीसदी का भार राज्य को उठाना होगा। राज्यों की माली हालत खस्ता है और तमाम योजनाओं के लिए वे केंद्र का मुंह ताकते हैं। इसी कारण ज्यादातर राज्यों ने हाइब्रिड मॉडल को चुना है। इसमें 50 हजार तक के दावों के भुगतान बीमा कंपनी करती है और शेष राज्य सरकार। राज्यों ने यह मानते हुए इसे चुना कि ज्यादातर दावे 50 हजार में निपट जाएंगे। लेकिन सबसे बड़े सवाल ये है कि अगर इस सीमा में ज्यादातर लोगों का इलाज नहीं हो सका तो क्या होगा?
अस्पताल में एक आयुष्मान मित्र की तैनाती की गई है, लेकिन सभी मरीजों की जरूरतों को पूरा करना एक अकेले आदमी के बस की बात नहीं। नगालैंड पहला राज्य है जिसने निविदाएं मंगाईं और यहां निजी क्षेत्र की अपोलो म्यूनिक को ठेका मिला। अपोलो प्रति परिवार 444 रुपये के प्रीमियम पर हर परिवार को पांच लाख तक का बीमा उपलब्ध करा रही है। ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी ने हाइब्रिड मॉडल के तहत गुजरात में 50 हजार तक के दावों का ठेका लिया है। प्रीमियम है 361 रु. प्रति परिवार। विशेषज्ञों का कहना है कि यह तो समय ही बताएगा कि कितने दावे आते हैं और इससे कंपनी कैसे निपटती है, क्योंकि ओरियंटल इंश्योरेंस की माली हालत पहले से ठीक नहीं चल रही है।
(कुमुद दास और हरियाणा से धीरेंद्र अवस्थी की रिपोर्ट)
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