बुधवार को मिशन शक्ति के तहत भारत द्वारा किये गए ए-सैट परिक्षण को लेकर अमेरिका ने चेतावनी दी है कि इस तरह के परीक्षणों से अन्तरिक्ष में मलबा फैल सकता है, जो भविष्य में काफी घातक सिद्ध हो सकता है। हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस परिक्षण से अन्तरिक्ष में फैलने वाले मलबे और उस से पैदा होने वाले किसी भी प्रकार के खतरे की बात से इंकार किया है। सभी देशों को चेतावनी देते हुए अमेरिका ने भारत का नाम नहीं लिया है।
दरअसल अमेरिका के कार्यवाहक रक्षा सचिव पैट्रिक शानहान ने अन्तरिक्ष में शक्ति परिक्षण का विचार कर रहे देशों को चेतावनी देते हुए कहा है कि अंतरिक्ष को नुक्सान न पहुंचाएं क्योंकि इससे अन्तरिक्ष में मलबा फैल सकता है।
अमेरिकी कार्यवाहक रक्षा सचिव शानहान के इस बयान के बाद अमेरिका के विदेश विभाग ने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एंटी-सैटेलाइट परीक्षण को लेकर दिए बयान को हमने देखा है। भारत के साथ हमारी मजबूत रणनीतिक साझेदारी के रूप में, हम अंतरिक्ष, विज्ञान और तकनीक में साझा हित रखते हैं। जिसमें अंतरिक्ष की सुरक्षा में सहयोग भी शामिल है।"
इसके अलावा अमेरिकी विदेश विभाग ने यह भी कहा, "अंतरिक्ष में मलबा अमेरिकी सरकार के लिए महत्वपूर्ण चिंता है। हमने भारत सरकार के बयानों पर ध्यान दिया कि परीक्षण अंतरिक्ष में मलबे को ध्यान में रखते हुए किया गया है।"
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बता दें कि भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने यह कामयाबी साल 2012 में ही हासिल कर ली थी। यह दावा सरकार ने नहीं बल्कि खुद तत्कालीन डीआरडीओ प्रमुख वीके सारस्वत ने मई 2012 में इंडिया टुडे से कहा था कि “अब भारत अंतरिक्ष में किसी भी दुश्मन सैटेलाइट को निशाना बनाने और उसे नष्ट करने की क्षमता रखता है। भारत के पास लोअर अर्थ ऑर्बिट या पोलर ऑर्बिट में किसी भी तरह के दुश्मन सैटेलाइट को निशाना बनाने में सक्षम एएसएटी मिसाइल विकसित करने की सभी जरूरी तकनीक मौजूद हैं।” इतना ही नहीं सारस्वत ने ये भी कहा था इससे होने वाले नुकसान को देखते हुए भारत इस मिसाइल का परीक्षण नहीं करेगा।
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बुधवार को ए-सैट परीक्षण के बाद भारत अन्तरिक्ष में सजीव उपग्रह को मारने की क्षमता रखने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। इससे पहले चीन, अमेरिका और रूस के पास ही यह ताकत थी। यह परिक्षण पृथ्वी की निचली कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट) में किया गया है जिसकी वजह से अन्तरिक्ष में मलबा फैलने की संभावनाएं बेहद कम हैं। क्योंकि निचली कक्षा होने के कारण मलबा कुछ समय में अपने आप ही धरती पर आ जाएगा।
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