वाराणसी में पवित्र गंगा नदी के जलस्तर में तेजी से गिरावट को लेकर स्थिति चिंताजनक हो गई है। पिछले हफ्ते वाराणसी के जिलाधिकारी ने उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग के मुख्य सचिव से कानपुर या नारौरा बैराज से पर्याप्त मात्रा में पानी छोड़ने के लिए तत्काल कदम उठाने का अनुरोध किया था।
जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्रा ने अपनी ओर से भेजे गए त्वरित सूचना में कहा कि उन्होंने खुद नदी और घाटों का दौरा किया था और उन्होंने पानी के स्तर में खतरनाक कमी पाई थी।
मिश्रा ने मुख्य सचिव का ध्यान वाराणसी के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व की खींचा, जहां हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं। हालांकि, उन्होंने पत्र में इसका जिक्र नहीं किया है कि वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र होने के साथ ही शहरी विकास मंत्रालय की प्राथमिकता सूची में शामिल 'स्मार्ट शहरों' में से एक है।
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शहर में जहां सड़कों, प्रकाश व्यवस्था और निर्माण को प्राथमिकता दी गई है, वहीं नदी प्रदूषकों और आर्सेनिक के बढ़ते स्तर से पीड़ित है। गंगा मैके दानी इलाकों में आर्सेनिक की कमी पर काम कर रहे एक गैर सरकारी संगठन, इनर वॉयस फाउंडेशन के आर्सेनिक विशेषज्ञ सौरभ सिंह ने पिछले हफ्ते नवजीवन को बताया, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र और राज्य सरकारें प्राकृतिक पारिस्थितिकीय संतुलन को तबाह कर रही हैं, जिसका गंगा के पानी को साफ रखने के लिए उपयोग होता था। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के विकास के नाम पर हो रहा है।
पवित्र नदी के बहाव और स्वाभाविक रूप से मौजूद वर्तमान प्रदूषकों को साफ करने के लिए नदी में पर्याप्त पानी छोड़ने की बजाय सरकार सिर्फ बयानबाजी कर रही है।
सौरभ सिंह ने कहा कि इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि पानी में पाए जाने वाले कछुआ जैसे जीव नदी के पानी की सफाई करते रहते हैं, सरकार अब एक फ़्लोटिंग पर्यटक गांव के निर्माण के लिए यहां से कछुआ अभयारण्य को स्थानांतरित करने जा रही है।
उन्होंने यह भी बताया, "पानी में ऑक्सीजन की कमी और अन्य प्रदूषकों की उपस्थिति के कारण ललिता घाट के पास हजारों मछलियां मृत पायी गई थीं। की मौत हो गई थी। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि नदी के पानी में बढ़ता आर्सेनिक का स्तर जल्द ही इंसानों को मारना शुरू कर देगा।”
दो लाख की आबादी वाला वाराणसी शहर पीने के पानी की गंभीर कमी का भी सामना कर रहा है। जहां अनुमान के अनुसार शहर में 311 एमएलडी पानी की आवश्यकता है, वहीं वास्तविक आपूर्ति गिरकर 135 एमएलडी पर आ गई है।
शहर के एक नाराज निवासी ने शहर को सुंदर बनाने पर किए गए खर्चों पर सवाल उठाया। पिछले चार वर्षों के दौरान शहर में निर्माण और प्रकाश व्यवस्था पर काफी खर्च किया गया है। उनको लगता है कि इन पैसों का इस्तेमाल नदी को साफ करने और शहर के लोगों को पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने पर किया जा सकता था।
पवित्र शहर वाराणसी के तीसरी पीढ़ी के निवासी एडी याद करते हुए कहते हैं, "चिलचिलाती गर्मी के महीनों के दौरान भी, हम शहर के विभिन्न घाटों पर नदी की ओर जाने वाली सीढ़ियों के अंतिम छोर को कभी नहीं देख सकते थे।" उन्होंने कहा, लेकिन इस साल नदी इतनी सूख गई है कि नदी में पानी तक पहुंचने के लिए आपको कम से कम 30 फीट तक बालू में चलना पड़ेगा।
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