प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद आदर्श ग्राम योजना की घोषणा की थी। लोगों को लगा था कि इस योजना की सफलता से गांवों में विकास की बयार बहने लगेगी। लेकिन आज लगभग साढ़े चार साल बीत जाने के बाद इन आदर्श गांवों को किसी भी कोण से आदर्श नहीं कहा जा सकता। आज कई ऐसे गोद लिए गांव हैं, जहां सामान्य योजनाएं तक नहीं पहुंचीं हैं। ऐसे ही गोद लिए गांवों की हालत से देश को रूबरू कराने के लिए नवजीवन ने एक श्रृंखला शुरू की है, जिसकी दूसरी कड़ी में आज पेश है देश के प्रधानमंत्री और वाराणसी से सांसद नरेंद्र मोदी और भोपाल के बीजेपी सांसद आलोक संजर के गोद लिए गांवों की आंखों-देखी हकीकत।
पीएम मोदी के गोद लिए गांव का हालः हैंडपंप में पानी नहीं, शौचालय उपयोग लायक नहीं
वाराणसी से करीब 30 किलोमीटर दूर है जयापुर गांव। यह पहले भी सुर्खियों में था और अब भी। गुजरे साढ़े चार-पांच साल में फर्क बस इतना आया है कि तब यह गांव खुशी में तालियां पीट रहा था और अब अफसोस में छातियां। वाराणसी से सांसद चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे गोद लिया था। तब इसे तरह-तरह के सपने दिखाए गए लेकिन वे पलकों की हद लांघकर बाहर नहीं आ पाए। इसलिए कभी अपने भाग्य पर इतराने वाला जयापुर उपेक्षा की गहरी उदासी में डूबा हुआ है। हां, रंगरोगन पर ज्यादा विश्वास रखने वाले मोदी ने जयापुर का मेकअप करने की भरपूर कोशिश की है।
बैंक, पोस्ट ऑफिस, आंगनवाड़ी केंद्र, अटल आवासीय योजना, जलनिगम की टंकी, कम्प्यूटर प्रशिक्षण केंद्र- जैसी सुविधाएं यहां दी तो गईं, लेकिन इनके समुचित संचालन और देखरेख की व्यवस्था ही नहीं की गई। जल निगम की टंकी देकर पानी का इंतजाम तो किया गया, लेकिन गांव से पानी निकासी का रास्ता देना भूल गए। हालत यह है कि घरों से निकलने वाला पानी घुम-फिरकर घर के आगे-पीछे जमा हो जाता है। बरसात के दिनों में तो जयापुर देखने लायक भी नहीं रह जाता। मोहनसराय से प्रयागराज हाइवे पर कुछ दूर चलने के बाद राजातालाब से बाईं तरफ उतरने वाला जाम से भरा जटिल रास्ता रेलवे क्रॉसिंग को लांघता हुआ जयापुर को जाता है। हाइवे से उतरकर जयापुर के जाने के रास्ते का आरंभ ही दुर्दशा से होता है। सड़क बुरी तरह से क्षतिग्रस्त है। यहां पानी इस तरह जाम है कि लोग अपने आप रूमाल अपनी नाक पर लगा लेते हैं। गांव से पहले तक की सड़क कुछ ठीक है, बाकी पूरे रास्ते में कहीं से नहीं लगता कि आप प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव की ओर जा रहे हैं।
तब ही तो गांव से पहले ही लोगों की शिकायतें शुरू हो जाती हैं। आसपास के लोगों का यह कहना स्वाभाविक ही है कि जब जयापुर को गोद लेने की घोषणा की गई थी, तो उन्हें उम्मीद बंधी थी कि आसपास के क्षेत्र और सड़कों के दिन लौट आएंगे। लेकिन इन पर पानी फिर गया। जयापुर गांव के भीतर भी सड़कों का बुरा हाल है। उबड़-खाबड़ रास्ते ज्यों-के-त्यों हैं। नन्हें बच्चों को पढ़ाने के लिए नन्दघर टूटने-फूटने लगा है। लाखों खर्चकर कई बायो टॉयलेट बनाए गए थे। लेकिन इनके रखरखाव की व्यवस्था नहीं की गई इसलिए ये इतने क्षतिग्रस्त हो गए हैं कि इनका इस्तेमाल भी मुश्किल है। अधिकतर बायो टॉयलेट अपने स्थान से गायब मिले। आंगनवाड़ी के लिए जगह तो दी गई, लेकिन वहां टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है। पानी के लिए जो हैंडपंप लगाए गए हैं, वे कब पानी देंगे, कब नहीं, कोई निश्चित नहीं।
गुरु प्रसाद शर्मा, ताकेश्वर और राजेश की तरह गांव के अनेक लोग ऐसे मिले जिन्होंने बताया कि गोद लेने के बाद अधिकारी गांव को भूल गए। सिर्फ शौचालय की बात की जाती है। अब गरीब आदमी हर समय शौचालय में तो रहेगा नहीं। जो शौचालय बने हैं, वे भी किसी काम के नहीं। जो गरीब हैं, विकलांग हैं, विधवा हैं, वे आज भी पेंशन और आवास की समस्या से जूझ रहे हैं। गांव के युवा रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। लोग राशन कार्ड में नाम काटे जाने और जोड़े जाने को लेकर भी परेशान हैं।
यहां मुसहर बस्ती के नाम पर अटल आवास योजना के अंतर्गत मकान बनाकर तो दे दिए गए लेकिन उन मकानें तक पहुंचने के लिए सरकार रास्ता देना भूल गई। बस्ती के लोगों ने हमें देखते कहना शुरू कर दिया, “मकान मिले चार साल हो गए लेकिन रास्ता अब तक नहीं मिला। कब तक हम मुसहर लोग दूसरे के खेत या फिर मकान लांघकर आते-जाते रहेंगे।” वैसे, गांव के कुछ ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने इस दुर्व्यवस्था के लिए गांव के प्रधान को जिम्मेदार माना। उनका सीधा आरोप था कि गरीब भी जाति की निगाह से देखे जा रहे हैं। इस कारण वास्तविक लोगों को सरकारी सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं।
लेकिन ग्राम प्रधान नारायण पटेल ने सारा ठीकरा स्थानीय राजनीति के माथे फोड़ दिया। उनका कहना है कि गांव को सुविधाएं तो मिलीं लेकिन अफसरों ने ठीक से काम नहीं किया। सड़कों को लेकर काम होना बाकी है। उच्च शिक्षा के लिए कन्या शिक्षण केंद्र की जरूरत है। जल निकासी और सड़क को लेकर एकदम काम नहीं हो पाया। पटेल मोदी सरकार की तारीफ तो करते हैं, लेकिन अफसरों और काम करने वाली एजेंसियों से नाराजगी नहीं छिपाते। उन्होंने कहा, “सरकार ने एक-डेढ़ करोड़ और खर्चकर सड़क तथा जलनिकासी का काम कर दिया होता तो आज जयापुर खुशहालरहता।” ग्राम प्रधान यह भी कहते हैं कि गुजरात के बीजेपी नेता सी. आर. पाटील को प्रभारी बनाया जाना गांव के वास्तविक विकास के हक में नहीं रहा। नारायण पटेल तो इतने खिन्न दिखे कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि वह गांव की दुर्दशा को लेकर मोदी जी को जल्द ही सीधे चिट्ठी लिखने वाले हैं। वह कहते हैं, “मोदी जी का न खाएंगे, न खाने देंगे, का सिद्धांत छितरा गया है। इसके लिए सिर्फ और सिर्फ दोषी हैं, तो नेता और अफसर।”
मध्य प्रदेशः भोपाल के सांसद आलोक संजर के गोद लिए गांव में आज तक नलके नहीं लगे
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के सांसद आलोक संजर द्वारा गोद लिए गांव तारा सेवनिया में न तो पीने के लिए पानी मिल रहा है, न ही साफ-सफाई की कोई व्यवस्था है। गांव में अब तक कई घरों में शौचालय नहीं बने हैं। जहां हैं, वहां भी पानी का इंतजाम नहीं होने से वे बेकार हैं।
भोपाल के बीजेपी सांसद आलोक संजर ने राजधानी से करीब 25 किमी दूर तारा सेवनिया गांव को आदर्श ग्राम बनाने के लिए गोद लिया था। इस गांव की आबादी करीब 4 हजार है। गोद लेने के बाद गांव की तस्वीर में कोई विशेष बदलाव नहीं आया। गांव को आदर्श बनाने के लिए एक करोड़ 63 लाख रुपये की योजना बनाई गई थी, लेकिन चार साल बाद भी यह योजना कागजों से बाहर नहीं निकल पाई। सांसद द्वारा गोद लेने के बाद तारा सेवनिया में अपेक्षा के अनुरूप विकास कार्य नहीं हो पाए हैं। यहां न तो लोगों को शुद्ध पानी पीने को मिल रहा है और न ही साफ-सफाई होती है। घरों में पानी की सप्लाई के लिए नल जल योजना स्वीकृत की गई थी, लेकिन अब तक यह काम पूरा नहीं हो पाया है।
गांव के कई घरों में शौचालय नहीं होने से अब भी कई लोग खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर हैं। सीवेज सिस्टम नहीं होने से गंदा पानी सड़क पर बहता रहता है। न तो कचरा एकत्रित करने की व्यवस्था है और न ही सड़कों की सफाई होती है, जिससे सड़कों पर गंदगी फैली रहती है। तारा सेवनिया में हायर सेकंडरी तक स्कूल और इलाज के लिए छोटा अस्पताल पहले से है। अस्पताल में इलाज की सुविधाओं में कोई सुधार नहीं आया है। तारा सेवनियां में स्कूल के सामने ही शराब की दुकान होने से बच्चों के साथ शिक्षक परेशान होते थे। आदर्श ग्राम बनने के बाद दो साल बाद तक वहां से यह शराब की दुकान नहीं हट पाई। जब गांव वालों ने इसका विरोध किया और मीडिया में इसकी खबरें आईं तब जाकर वहां से शराब की दुकान हट पाई। सांसद द्वारा गांव गोद लेने के बाद यही एकमात्र काम है जो पूरा हो पाया है।
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