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आकार पटेल का लेख: आज का भारत विभाजन से पहले वाले 1947 के भारत की याद दिलाता है

आज भारतीयों को फिर से एक ऐसी स्थिति में मजबूर किया जा रहा है, जहां प्रमुख राजनीतिक ताकत अपने प्रमुख आवेग का इस्तेमाल कर रही है और दूसरों को किसी भी स्थान से वंचित कर रही है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

इन दिनों देश में जो माहौल है, उससे बिल्कुल वही एहसास होता है जो देश के विभाजन के समय हुआ था। देश के लोगों को उनके धर्म के आधार पर अपनी राजनीति का चयन करने को मजबूर किया जा रहा है, क्योंकि सरकार ही इस पर जोर दे रही है। प्रधानमंत्री कपड़ों के आधार पर विरोध प्रदर्शन करने वालों की पहचान कर रहे हैं। उनकी पार्टी ऐसे कानून बना रही है जो किसी एक धर्म को बाहर कर देती है, और देशभर में ऐसी प्रक्रिया शुरु की जा रही है जिसकी परिणति एक समुदाय विशेष के लोगों को जेल में डालने से होगी।

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लोग सड़कों पर निकले हुए हैं और जुनून के साथ ही डर भी नजर आ रहा है और इस सबके लिए सरकार विरोध प्रदर्शन करने वालों को ही जिम्मेदार ठहरा रही है। 1947 में और उसके तुरंत बाद लगभग ऐसा ही माहौल रहा होगा। हमें यह भी देखने को मिल रहा है कि किसी एक पक्ष के लिए जो अस्वीकार्य है वही दूसरे पक्ष को तर्कपूर्ण लग रहा है। एक पक्ष के पास शक्ति है, दूसरे पक्ष की बात सुनी नहीं जा रही है। 2019 की बीजेपी और 1947 की कांग्रेस में काफी समानताएं दिखती हैं।

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भारत और पाकिस्तान दोनों में ही इस बात को लेकर कोई खास जागरुकता नहीं है कि पाकिस्तान ने किस तरह का विभाजन पैदा किया है। भारत में हमारी पीढ़ी को पढ़ाया गया कि एक शैतान ने इस देश का बंटवारा कर दिया। अगर आप हिंदुत्व विचारधारा वाले हैं को आपको यह समझ में आएगा कि मुसलमान शैतान थे और उन्होंने भारत माता के टुकड़े किए। पाकिस्तान में, और खासतौर से सरकार पर सेना के नियंत्रण के बाद यही बात पूरी तरह हिंदू विरोधी रूप में सामने रखी जाती है।

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यह सबकुछ बड़ा आसान लगता है और मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच सत्ता के बंटवारे को लेकर सालों लंबी जो भी बात हुई उस पर कोई ध्यान नहीं देता। विभाजन से दो दशक पहले, जिन्ना ने कांग्रेस पार्टी के साथ एक समझौते पर पहुंचने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। आखिर उनकी मांगें क्या थीं? हमें उन पर एक नजर डालनी चाहिए क्योंकि ज्यादातर भारतीयों को स्कूल में यह नहीं सिखाया जाता है।

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मुस्लिम लीग ने उस समय ये 14 बिंदु सामने रखे थे।

1. भारत का संविधान संघीय गणराज्य का होगा, जिसमें राज्यों को काफी अधिकार दिए जाने होंगे।

2. सभी राज्यों को बराबर की स्वायत्ता दी जानी चाहिए।

3. सभी विधानसभाओं में अल्पसंख्यकों को प्रभावी और पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए और किसी भी राज्य के बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक नहीं बनाया जाना चाहिए।

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4. मुसलमानों को केंद्रीय सभा में (आज का संसद) एक तिहाई प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

5. समुदायों के लिए अलग से निर्वाचक बनाया जाना चाहिए और किसी भी समुदाय के ऊपर यह फैसला छोड़ देना चाहिए कि वह किसी संयुक्त निर्वाचक के पक्ष में अपना यह अधिकार छोड़ते हैं या नहीं।

6. किसी भी राज्य का अगर बंटवारा हो तो उस राज्य की मौजूदा मुस्लिम बहुसंख्या पर असर नहीं पड़ना चाहिए।

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7. सभी को धर्म की स्वतंत्रता यानी धार्मिक आजादी, पूजा या इबादत करने, उसका प्रचार करने और शिक्षा की गारंटी मिलनी चाहिए।

8. अगर किसी भी विधानसभा में पेश किसी कानून या प्रस्ताव का किसी भी समुदाय के तीन चौथाई सदस्य विरोध करते हैं तो उसे पास नहीं करना चाहिए।

9. सिंध प्रांत को बॉम्बे प्रेसीडेंसी से अलग किया जाना चाहिए।

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10. नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस और बलूचिस्तान के लिए अन्य प्रांतों की तरह ही सुधारों की प्रक्रिया शुरु होनी चाहिए।

11. सभी राज्यों और स्थानीय निकायों की नौकरियों में अन्य भारतीयों की तरह मुस्लिमों को भी उनकी क्षमता और योग्यतानुसार पर्याप्त हिस्सेदारी देने का प्रावधान संविधान में किया जाना चाहिए।

12. संविधान में मुसलमानों की संस्कृति, उनकी शिक्षा, भाषा, धर्म, पर्सनल लॉ और मुस्लिम धर्मार्थ संस्थानों की सुरक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए और सरकार और स्थानीय निकायों द्वारा दी जाने वाली सहायता में जरूरी हिस्सेदारी होनी चाहिए।

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13. केंद्रीय या राज्यों के मंत्रिमंडल का गठन बिना मुसलमानों की एक तिहाई प्रतिधित्व के बिना नहीं होना चाहिए।

14. संविधान में बिना राज्यों की सहमति के कोई भी संशोधन या बदलाव नहीं होना चाहिए।

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अगर कांग्रेस इन बिंदुओं पर सहमत हो जाती तो विभाजन नहीं होता। इतने वर्षों के बाद इन बिंदुओं को देखते हुए मुझे उनमें कुछ भी गलत नहीं लगता है और वास्तव में मैं उन सभी से सहमत हूं। इनमें से कुछ, जैसे संख्या 7, 9 और 12 किसी भी मामले में भारतीय संविधान का हिस्सा बन गए हैं। अन्य, जैसे 1, 2, 10 और 14 इसी तरह विवादित नहीं हैं। जिन बिंदुओं पर संभवता खींचतान हुई वह मुस्लिम राजनीतिक प्रतिनिधित्व की गारंटी देने वाले थे। यह कांग्रेस स्वीकार नहीं करना चाहती थी।

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नेहरू और गांधी जैसे नेताओं ने शायद यह नहीं सोचा था कि 2019 के भारत में, सत्ताधारी पार्टी 300 से अधिक सीटें जीतेगी और इनमें से कोई भी मुस्लिम नहीं होगा। लेकिन ऐसा है। यह देखकर शायद आज गांधी को आश्चर्य होता, लेकिन जिन्ना समझ गए थे कि भारतीय राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से बहुसंख्यावादी हैं और यह कहना मुश्किल है कि वह गलत थे।

आज भारतीयों को फिर से एक ऐसी स्थिति में मजबूर किया जा रहा है जहां प्रमुख राजनीतिक ताकत अपने प्रमुख आवेग का इस्तेमाल कर रही है और दूसरों को किसी भी स्थान से वंचित कर रही है। हमने अपने इतिहास से तब भी कोई सबक नहीं सीखा है, जबकि यह सबकुछ इतना स्पष्ट और सटीक रहा हो।

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