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2जी आवंटन: जानिए पूरे मामले को, किस पर क्या थे आरोप, कब हुआ क्या

<p>बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सबूतों के अभाव में सीबीआई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। क्या था यह मामला और कब क्या हुआ, आइये इस पर डालते हैं एक नजर</p>

<p>फोटोः सोशल मीडिया</p>

फोटोः सोशल मीडिया

 

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में बरी होने के बाद कनिमोझी और ए राजा

कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान चर्चा में आए 2जी घोटाले में फैसला आ गया है। मामले की सुनवाई कर रही सीबीआई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए ए. राजा और कनिमोझी समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा, राज्‍यसभा सांसद कनिमोझी, पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के तत्कालीन निजी सचिव आरके चंदोलिया सहित करीब एक दर्जन से अधिक लोगों को आरोपी बनाया गया था। आरोपियों में स्वॉन टेलीकॉम के महाप्रबंधक शाहिद बलवा, यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा, स्वॉन टेलीकॉम के निदेशक विनोद गोयनका, अनिल अंबानी समूह की कंपनियों के तीन शीर्ष अधिकारी, गौतम दोषी, सुरेन्द्र पिपारा और हरी नायर, कुसगांव फ्रूट्स और वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक राजीव अग्रवाल, शाहिद बलवा के भाई और कंपनी में साझेदार आसिफ बलवा और सिनेयुग मीडिया और एंटरटेनमेंट के निदेशक करीम मोरानी के नाम भी शामिल थे।

2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में 6 साल तक चले ट्रायल के बाद विशेष सीबीआई न्यायाधीश ओ पी सैनी ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। सैनी सीबीआई और ईडी द्वारा दर्ज अलग-अलग मामलों की सुनवाई कर रहे थे। साल 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार के दौरान 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया था। 2010 में इस आवंटन पर तब सवालिया निशान उठने लगे जब भारत के तत्कालीन महालेखाकार और नियंत्रक (सीएजी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में इस आवंटन से सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचने का दावा किया गया। सीएजी ने अपने आकलन में सरकारी खजाने को 1 लाख 76 हजार करोड़ रूपये के नुकसान का दावा करते हुए कहा था कि अगर लाइसेंसों के आवंटन के लिए नीलामी की प्रक्रिया अपनाई जाती तो खजाने को कम से कम 1 लाख 76 हजार करोड़ रूपये का लाभ होता।

क्या थे ए राजा पर आरोप

बहुचर्चित 2जी आवंटन मामले में आरोप था कि तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा ने आवंटन के नियमों में बदलाव करने के बदले टेलिकॉम कंपनियों से आर्थिक लाभ लिया। आरोपों के अनुसार राजा ने प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी सलाह को भी दरकिनार करते हुए कुछ टेलिकॉम ऑपरेटर को फायदा पहुंचाने का काम किया था। आरोपों के अनुसार ए राजा ने मंत्री रहते हुए लाइसेंस आवेदन की तारीख में बदलाव किया और 2008 में हुए इस आवंटन के लिए 2001 में तय की गई दर से एंट्री फीस वसूली, जिसकी वजह से सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। आरोपों पर काफी हंगामा होने के बाद नवंबर 2010 में ए राजा ने टेलिकॉम मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। मामले की जांच कर रही सीबीआई ने फरवरी 2011 में राजा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, जिससे उन्हें 15 महीने तक जेल में रहना पड़ा। इसके बाद 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने राजा के कार्यकाल में आवंटित सभी टेलिकॉम लाइसेंसों को रद्द करते हुए राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया।

कनिमोझी पर क्या थे आरोप

डीएमके प्रमुख एम करुणानिधी की बेटी और सांसद कनिमोझी पर भी 2जी घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा था। कनिमोझी पर आरोप थे कि वह कलाइगनार टीवी से जुड़ी हैं, जिसपर 2जी आवंटन के लिए स्वान टेलिकॉम से कमीशन के तौर पर दलाली लेने का आरोप था। सीबीआई ने 2015 में कोर्ट को बताया था कि स्वान टेलिकॉम को कमीशन प्राप्त करने में फ्रंट के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। स्वान टेलिकॉम के प्रमोटरों में शाहिद बलवा और डीबी रियल्टी लिमिटेड के विनोद गोयनका शामिल थे। अनिल अंबानी के रिलायंस एडीएजी से 14 सर्कल में 2जी लाइसेंस प्राप्त करने के लिए स्वान टेलिकॉम की फंडिंग की गई थी। इस मामले में रिलायंस एडीएजी के तीन कर्मचारी- गौतम दोषी, सुरेन्द्र पिपारिया और हरि नायर को भी मामले में आरोपी बनाया गया था।

किसकी क्या भूमिका थी

ए. राजा : पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री और द्रमुक नेता राजा पर आरोप था कि उन्होंने टेलीकॉम मंत्री रहते हुए सभी नियमों की अनदेखी करते हुए 2008 में अपनी पसंदीदा कंपनियों को गलत ढंग से 2001 में तय की गई दरों पर 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया।

कनिमोझी : द्रमुक नेता एम. करुणानिधि की बेटी और राज्यसभा सांसद कनिमोझी पर इस मामले में राजा के साथ मिलकर अपने टीवी चैनल के जरिये डीबी रियल्‍टी के मालिक शाहिद बलवा से रिश्वत लेने का आरोप है।

सिद्धार्थ बेहुरा : तत्कालीन केंद्रीय दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा पर राजा के साथ मिलकर इस घोटाले में काम करने का आरोप था।

आर के चंदोलिया : राजा के पूर्व निजी सचिव रहे आर के चंदोलिया पर भी राजा के साथ मिलकर ऐसी निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने का आरोप था जिनके पास पात्रता नहीं थीं।

शाहिद बलवा : आरोपों के अनुसार इस मामले में सबसे प्रमुख खिलाड़ी शाहिद बलवा थे। स्वॉन टेलीकॉम के महाप्रबंधक शाहिद बलवा पर राजा के सहयोग से वाजिब से बहुत कम दामों पर स्पेक्ट्रम का आवंटन हासिल करने का आरोप था।

विनोद गोयनका : स्वॉन टेलीकॉम के निदेशक विनोद गोयनका पर इस मामले में अपने साझीदार शाहिद बलवा के साथ आपराधिक साजिश में शामिल होने का आरोप था।

आसिफ बलवा : शाहिद बलवा के भाई और कुसगांव फ्रूट्स एंड वेजीटेबल प्राइवेट लिमिटेड में 50 फीसदी के साझीदार आसिफ बलवा पर भी इस मामले में शामिल होने का आरोप था।

संजय चंद्रा : आरोपों के अनुसार, यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा की कंपनी ने गलत ठंग से स्पेक्ट्रम हासिल करने के बाद उसे विदेशी कंपनियों को ऊंचे दामों पर बेचकर मोटा लाभ कमाया।

गौतम दोषी, सुरेन्द्र पिपारिया और हरि नायर : अनिल अंबानी समूह की कंपनी के इन तीन शीर्ष अधिकारियों पर भी इस साजिश में शामिल होने और धोखाधड़ी करने का आरोप था।

राजीव अग्रवाल : कुसगांव फ्रूट्स एंड वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक राजीव अग्रवाल पर अपनी कंपनी से करीम मोरानी की कंपनी सिनेयुग को 200 करोड़ रुपए रिश्वत देने का आरोप था जो कनिमोई को दिए गए।

करीम मोरानी : सिनेयुग मीडिया एंड एंटरटेनमेंट के निदेशक मोरानी पर कुसगांव फ्रूट्स एंड वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड से 200 करोड़ रुपए लेकर कनिमोई को देने का आरोप था। जिसके बदले में शहीद बलवा की कंपनियों को गलत ढंग से स्पेक्ट्रम का आवंटन हासिल हुआ।

पूरे मामले में कब, क्या हुआ

16 मई, 2007: यूपीए-1 सरकार में डीएमके नेता ए राजा को दूसरी बार दूरसंचार मंत्री नियुक्त किया गया।

25 अक्टूबर, 2007 : तत्कालीन केंद्र सरकार ने मोबाइल सेवाओं के लिए 2जी स्पेक्ट्रम की निलामी की संभावनाओं को खारिज किया।

22 नवंबर 2007 : तत्कालीन वित्त सचिव ने 2001 की दरों पर 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस के आवंटन पर विरोध दर्ज कराया।

29 नवंबर 2007: तत्कालीन दूरसंचार सचिव ने 2003 के राजग सरकार के कैबिनेट फैसले और ट्राइ की सिफारिशों का हवाला देते हुए इसे मानने से इनकार किया।

26 दिसंबर 2007 : राजा ने स्पेक्ट्रम मूल्य पर तत्कालीन मंत्री समूह के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी और महाधिवक्ता गुलाम वाहनवती के साथ चर्चा का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बताया कि पहले आओ-पहले पाओ की परिभाषा को वाहनवती ने मंजूरी दे दी है।

26 दिसंबर 2007 : तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा लेकिन उसमें राजा के साथ अपनी किसी बैठक का कोई जिक्र नहीं किया।

10 जनवरी 2008 : 15 कंपनियों को 121 लाइसेंसों के लिए आशय पत्र जारी किए गए।

4 जुलाई 2008 : प्रधानमंत्री, चिदंबरम और राजा ने स्पेक्ट्रम शुल्क और 6.2 मेगाहर्ट्ज के ऊपर कीमत पर चर्चा के लिए बैठक की।

23 सितंबर 2008 : स्वान टेलिकॉम ने एतिसलात के साथ सौदा किया। एक महीने बाद यूनीटेक ने भी टेलीनॉर के साथ सौदा कर लिया।

सितंबर-अक्टूबर, 2008 : टेलिकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटित कर दिए गए।

15 नवंबर, 2008 : केंद्रीय सतर्कता आयोग ने इस मामले में अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में कई खामियां पाईं और मंत्रालय के कुछ अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की अनुशंसा की।

28 मई 2009 : यूपीए-2 में ए राजा को फिर से दूरसंचार मंत्री बनाया गया।

21 अक्टूबर, 2009 : 2जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच के लिए सीबीआई द्वारा मामला दर्ज किया गया।

22 अक्टूबर, 2009 : सीबीआई ने इस मामले में दूरसंचार विभाग के कई कार्यालयों पर छापेमारी की।

17 अक्टूबर, 2010 : भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने 2जी मोबाइल फोन का लाइसेंस देने में दूरसंचार विभाग की नीतियों पर सवाल उठाए।

नवंबर, 2010 : दूरसंचार मंत्री ए राजा को हटाने की मांग को लेकर विपक्ष ने संसद की कार्यवाही ठप की।

14 नवंबर, 2010 : ए राजा ने विवादों के बीच अपने पद से इस्तीफा दिया।

15 नवंबर, 2010 : तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया।

16 नवंबर 2010: सीएजी रिपोर्ट में 2जी घोटाले में 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का आंकलन किया गया।

18 नवंबर 2010 : ट्राई ने आवंटित किए गए 121 लाइसेंसों में से 69 को रद्द करने की सिफारिश की।

नवंबर, 2010 : 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन की जांच के लिए जेपीसी गठन की मांग को लेकर संसद में गतिरोध जारी रहा।

13 दिसंबर, 2010 : दूरसंचार विभाग ने उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश शिवराज वी पाटिल समिति का गठन कर स्पेक्ट्रम आवंटन के नियमों एवं नीतियों की जांच करने का जिम्मा सौंपा।

24-25 दिसंबर, 2010 : पूर्व मंत्री ए राजा से सीबीआई ने पूछताछ की।

31 जनवरी, 2011 : सीबीआई ने रोजा से दूसरी बार पूछताछ की। इसी दिन पाटिल समिति ने भी अपनी रिपोर्ट सौंपी।

2 फरवरी 2011 : सीबीआई ने टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला के आरोप में ए राजा, पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के पूर्व निजी सचिव आर के चंदोलिया को गिरफ्तार किया।

2 अप्रैल, 2011: मामले में जांच कर रही सीबीआई ने पहला आरोप-पत्र दाखिल किया।

2 9 अप्रैल, 2011: सीबीआई ने मामले में पूरक आरोपपत्र दायर किया।

15 सितंबर, 2011: भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने पी.चिदंबरम को सह-अभियुक्त बनाने के लिए सीबीआई की विशेष अदालत में याचिका दाखिल की।

22 अक्टूबर 2011: विशेष सीबीआई अदालत ने राजा सहित 17 अभियुक्तों के खिलाफ आरोप तय किए।

22 अक्टूबर 2011: न्यायालय ने राजा और अन्य के खिलाफ आरोप तय किए।

11 नवंबर, 2011: मामले में मुकदमा शुरू हुआ।

23 नवंबर, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने पांच कॉपोर्रेट प्रमुखों को जमानत दी।

12 दिसंबर 2011: सीबीआई ने तीन आरोप पत्र दाखिल किए। इनमें एस्सार के प्रमोटर अंशुमन रुइया, रवि रुइया, एस्सार ग्रुप के रणनीतिक और नियोजन निदेशक विकास श्राफ, लूप टेलीकॉम प्रमोटर किरण खेतान और उनके पति आईपी खेतान, लूप टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड, लूप मोबाइल इंडिया लिमिटेड और एस्सार टेली होल्डिंग शामिल है।

2 फरवरी, 2012: सर्वोच्च न्यायालय ने 2008 में जारी 122 लाइसेंसों को रद्द करने का आदेश दिया, कंपनियों को ऑपरेशन बंद करने के लिए चार महीने का समय दिया गया।

4 फरवरी, 2012: अदालत ने गृह मंत्री पी चिदंबरम को आरोपी बनाने के लिए स्वामी की याचिका को खारिज कर दिया।

28 नवंबर, 2011: डीएमके के सांसद कनिमोझी को जमानत मिल गई।

15 मई 2012: राजा को मिली जमानत ।

25 मई 2012: अदालत ने एस्सार और लूप के प्रमोटरों के खिलाफ आरोप तय किए और जमानत दे दी।

25 अप्रैल, 2014: ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने राजा, कनिमोझी और अन्य के खिलाफ आरोपपत्र दायर किए।

31 अक्टूबर 2014: राजा, कनिमोझी और अन्य लोगों के खिलाफ धन शोधन के आरोप लगाए गए।

17 नवंबर 2014: धन शोधन मामले में मुकदमा शुरू हो गया।

5 दिसंबर, 2017: न्यायालय ने मामले में फैसला सुनाने के लिए 21 दिसंबर का दिन निर्धारित किया।

21 दिसंबर: राजा और कनिमोझी सहित सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया।

Published: 21 Dec 2017, 4:23 PM IST

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Published: 21 Dec 2017, 4:23 PM IST