एक आवाज़ फिर दबाई गईऔर इक निर्भया सताई गई वो ये कहता था छटपटाना नईज़ख्म खाना, मगर बताना नई जो किसी को अगर बताओगीकुछ नए और ज़ख़्म खाओगी तुमने अपना किया ही पाया हैमेरे रुतबे को आज़माया है तुम जो बोलीं, तो ये ही होना थामौत की नींद तुमको सोना था मेरा क्या है, मज़े करूंगा मैंतुम तो मर ही गयीं, जियूँगा मैं चार दिन चंद लोग बोलेंगेथक के आख़िर ख़मोश हो लेंगे चंद शममें भी वो जला देंगेऔर फिर सब तुम्हे भुला देंगे Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ेंप्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia