चीन की तरह नेपाल भी रह रह कर बॉर्डर का मुद्दा उठा रहा है। ऐसा लग रहा है मानो नेपाल अब भारत से जानबूझ कर रिश्ते खत्म करना चाह रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत नेपाल के बीच नक्शे को लेकर विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा है। दरअसल हाल ही में नेपाल ने भारत के हिस्से को अपने नक्शे में दिखाया था, जिसका भारत ने विरोध किया था। लेकिन भारत के बावजूद नेपाल अपने कदम पीछे करने को तैयार नहीं है। नेपाल ने अब भारत के हिस्से को अपने नक्शे में दिखाने के लिए संविधान में संशोधन का बिल अपनी संसद में पेश किया है। इस बिल में भारत के नक्शेवाले कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल के नक्शे में शामिल किए जाने की बात कही गई है।
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ऐसे में माना जा रहा है कि नेपाल की संसद इस बिल को पास कर सकती है, जिसके बाद भारत और नेपाल के बीच विवाद बढ़ सकता है। बता दें कि इससे पहले इस बिल को बुधवार को संसद में पेश किया जाना था, जिसे टाल दिया गया था। वहीं इस पूरे मामले पर भार सरकार की नजर बनी है। सरकार का मानना है कि बॉर्डर के मुद्दे संवेदनशील हैं और इनमें हल निकालने के लिए विश्वास और विश्वास की आवश्यकता होती है। सरकार की ओर से कहा गया है कि हम नेपाल में इस मामले पर एक बड़ी बहस चल रही है। यह इस मुद्दे की गंभीरता को दिखाता है। यह नेपाल और भारत के बीच संबंधों से जुड़े मूल्य को भी प्रदर्शित करता है। हम स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं।
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दरअसल हाल ही में भारत ने लिपुलेख के रास्ते मानसरोवर के लिए एक लिंक रोड का निर्माण किया था जिसके बाद से भारत और नेपाल के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं। नेपाल की ओर से कई ऐसे बयान आए हैं, जिनमें एक तरह से धमकाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया है। नेपाल के रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने हाल ही में इंडियन आर्मी चीफ जनरल मनोज मुकुंद नरवाणे के बयान पर जवाब देते हुए कहा कि उनकी सेना लड़ना भी जानती है।
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गौरतलब है कि नेपाल कैबिनेट की बैठक में भूमि संसाधन मंत्रालय ने नेपाल का यह संशोधित नक्शा जारी किया था। उसी नए नक्शे के अनुसार सांसदों और प्रतीक चिन्ह का लोगो संशोधित किया गया। नेपाल की ओली सरकार ने बुधवार को इसके लिए संविधान में संशोधन विधायक पेश करने की बात कही थी। संविधान संशोधन प्रस्ताव को स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोटा ने सदन में रखने की मंजूरी भी दे दी थी। नेपाल के कानून मंत्री इसे संसद में पेश करने वाले थे। हालांकि बुधवार को इसे सदन के एजेंडे से ही बाहर कर दिया गया था। बता दें कि संवैधानिक तौर पर इस नए नक्शे को मान्यता मिलने पर ही इसे वैध माना जाता है।
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