फिल्म अभिनेता इनाम उल हक के ससुर और वरिष्ठ रंगकर्मी सरदार अनवर की कोरोना संक्रमण के कारण मौत हो गई। इस घटना से सहारनपुर के कलाकारों, साहित्य प्रेमियों में दुःख का माहौल है। सरदार अनवर 70 साल के थे। उनके चार बेटियां है। सरदार अनवर को सहारनपुर के दानिशवरों में बहुत ऊंचा मुक़ाम हासिल था। रंगमंच की दुनिया मे भी उनका डंका बजता था। उनके दर्जनों शिष्य बॉलीवुड में अभिनय,लेखन और निर्देशन का काम देख रहे हैं। उनके दामाद इनामुल हक़ बॉलीवुड के एक प्रतिभाशाली अभिनेता है। सरदार अनवर उनके भी गुरु थे। सादगी की जिंदगी जीने वाले सरदार अनवर को आख़री वक़्त में एक पॉलीबैग में पैक कर घर भेजा गया और उनके परिवार के लोगों को उनकी एक झलक भी मय्यसर नहीं हुई। दामाद इनामुल हक़ ने बताया कि वो जिंदगी भर इस अफ़सोस से बाहर नहीं निकल पाएंगे कि वो पापा को छू नहीं सके। इनामुलहक के मुताबिक उनके ससुर उनके उस्ताद भी थे और वो उनके लिए कुछ नहीं कर पाएं।
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उनकी अध्यापक बेटी रूमी अनवर ने बताया कि उनकी मौत सिस्टम की लापरवाही से हुई है। कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उन्हें शहर के बाहर पिलखनी स्थित मैडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। उसके बाद उनकी तबियत बिगड़ने लगी। अस्पताल प्रशासन ने कोई रुचि नहीं ली। हमें सूचना दी गई। पास-पड़ोस के दूसरे मरीजों के अनुरोध पर हमें एक फ़ोन कॉल आई। स्थानीय सांसद और विद्यायक के हस्तक्षेप से उनकी देखभाल हुई। इसके बाद अस्पताल प्रशासन ने यह कहकर रैफर कर दिया कि इन्हें वेंटिलेटर की जरूरत है। जबकि सहारनपुर में वेंटिलेटर नहीं है। रूमी बताती है कि इसके बाद वो कागज़ी कार्रवाई और एम्बुलेंस को दिल्ली से बुलाने की सरकारी जिद के बीच घण्टों की नां नुकर के बाद तड़पते रहे। बाद में एम्बुलेंस मिली तो कागज़ी कार्रवाई में देरी के चलते वो जिंदगी से हार गए।
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रूमी बताती है कि यह निश्चित तौर पर सिस्टम की नाकामी है। कागज़ की अदला बदली का काम 6 घण्टे तक हुआ। फ़िर सहारनपुर स्वास्थ्य विभाग दिल्ली से एम्बुलेंस मंगवाने की जिद पर अड़ गया क्योंकि यहां वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं था। अब दिल्ली से एम्बुलेंस आती तो 6 घण्टे और मरीज़ को पहुंचने के लग जाते। रूमी कहती है कि मैंने एक बार एक मजदूर के पेड़ के नीचे दब जाने वाली कहानी पढ़ी थी जिसमे सब जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल देते हैं, फाइलों में वक़्त बीत जाता है और मज़दूर मर जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे अब्बू के साथ हुआ। हमारे 11 घण्टे ख़राब हो गए।
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इनामुल हक़ के अनुसार मैंने अपने पहचान के लोगों से भरसक प्रयास कराने की कोशिश की मगर सब असहाय से दिखाई दिए। समझ नहीं आ रहा है कि अब क्या होगा ! हमारा सहारनपुर अस्पताल से भरोसा टूट गया है। इन्होंने लापरवाही की हदें पार की। आपको बता दें, सरदार अनवर भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के संरक्षक थे और वो 1992 में सहारनपुर में साम्प्रदायिक दंगे के दौरान नुक्कड़ नाटकों के जरिये माहौल को सामान्य बनाने के लिए अपने किए गए प्रयासों पर नायक की तरह उभरे थे। सरदार अनवर ट्रेड यूनियन के नेता पर भी चर्चित रहे और उनके प्रयासों से हजारों लोगों को रोज़गार मिला। उनकी शायरी ग़रीब आदमी को अपने केंद्र में रखती थी। खुद सरदार अनवर ने अपनी जिंदगी बेहद सादगी में गुजार दी। उनकी कोठरी (छोटा कमरा) किताबों से भरा रहता था। पिछले 10 सालों से इप्टा के संरक्षक के तौर पर सामाजिक चेतना के सैकड़ों नाटकों का निर्माण किया और अभिनय की दुनिया में सहारनपुर को एक बड़ी पहचान दिलवाई।
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सरदार अनवर सहारनपुर के डोलिखाल नाम वाले मौहल्ले में रहते थे। उनकी शायरी में अद्भुत संदेश थे।जैसे उनका एक कलाम "हाकिम -ए-शहर की हर बात पे राज़ी निकला, कितना होशियार मेरे घर का क़ाज़ी निकला, मैं समझता था मेरी तरह मुसलमान है वो, वो मेरा यार तो पंजवक्ता नमाज़ी निकला" उनकी शायरी का स्तर बता रहा है। सरदार अनवर की मौत के बाद सहारनपुर में दुःख और नाराजग़ी दोनों है। इप्टा से जुड़े तमाम कलाकार सरदार अनवर की मौत से गहरे आहत है। फ़िल्म निर्देशक शाहिद कबीर, कासिफ नून,अविनाश दास,जावेद सरोहा जैसे बड़े नाम सरदार अनवर से सीख पाते रहे हैं। लेखक रियाज़ हाशमी के मुताबिक सरदार अनवर एक ऐसी शख्शियत के मालिक थे, जिन्होंने एक कमरे की जिंदगी में किताबों से दोस्ती करके सहारनपुर को मिनी बॉलीवुड में तब्दील कर दिया। उन्होंने चार कला और अभिनय का मुम्बई के बाद दूसरा उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा केंद्र सहारनपुर को बना दिया। यहां की सैकड़ों प्रतिभाएं आज उन्होंने निखार दी है। बेहद फक्कड़, ईमानदार सादगी पसंद और समाज को समर्पित सरदार अनवर का चला जाना सहारनपुर को तक़लीफ़ दे रहा है।
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