भारतीय जनता पार्टी आरोप लगा रही है कि विपक्षी दल गुजरात विधानसभा में जातीय विभाजन कर सत्ता हासिल करना चाहते हैं। लेकिन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि पूरे गुजरात में जातीय आधार पर सबसे ज्यादा भेदभाव होता है।
गुजरात चुनावों से पहले जारी हुए नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के इन आंकड़ों ने गुजरात सरकार की पोल खोलकर रख दी है। आंकड़ों से पता चलता है कि गुजरात में दलितों के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हुए हैं। इतना ही काफी नहीं है। गुजरात में महिलाओं बलात्कार के मामले भी गुजरात में करीब 96 फीसदी बढ़े हैं। दलित महिलाओं पर बलात्कार के मामले में तो यह आंकड़ा 279 फीसदी बढ़ा है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ समय में गुजरात में दलितों पर हमले की कई घटनाएं सामने आई हैं। जिनमें 2015 में हुई ऊना की घटना ने देशभर में सुर्खियां बटोरी थीं। इस लिहाज से दलितों की सुरक्षा गुजरात में एक बड़ा मुद्दा है। दलित आंदोलन से निकले दलित नेता जिग्नेश मेवानी चुनावी मैदान में हैं और वे कांग्रेस के साथ मिलकर लगातार दलित सुरक्षा के मुद्दे पर बीजेपी को घेर रहे हैं।
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हाल ही में जारी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक में गुजरात में 2014 के मुकाबले दलितों के खिलाफ अपराधों में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। 2014 में जहां गुजरात में दलितों के खिलाफ 1094 आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2016 में ये आंकड़ा 1322 तक पहुंचा। वहीं बलात्कार के मामलों में जहां पूरे देश में 12 फीसदी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, वहीं गुजरात में ऐसे अपराधों में 96 फीसदी का इजाफा हुआ है।
इसके अलावा पूरे देश में जहां अनुसूचित जातियों के लोगों की हत्या के आंकड़े 10 फीसदी बढ़े हैं, वहीं गुजरात में अनुसूचित जातियों के लोगों की हत्या की संख्या में 2015-16 के दौरान 106 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है।
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पारदर्शी और भ्रष्टाचार-अपराध मुक्त शासन का वादा करने वाली बीजेपी जिस गुजरात मॉडल को पेश कर सत्ता के शिखर पर पहुंची है, उसा दावे की भी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों ने पोल खोल दी है। आंकड़ों के मुताबिक 2016 में नकली नोट बरामदगी के सबसे ज्यादा मामले यूं तो दिल्ली में हुए, लेकिन गुजरात भी पीछे नहीं है। गुजरात में भी करीब ढाई करोड़ रूपए की नकली करेंसी पकड़ी गई। इसके अलावा नोटबंदी के बाद चलन में आए 2000 रुपए मूल्य के सबसे ज्यादा नकली नोट भी गुजरात में बरामद हुए।
आंकड़ों के मुताबिक अनुसूचित जातियों के खिलाफ जिन राज्यों में सबसे ज्यादा अपराध दर्ज हुए हैं, उनमें बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के शासन वाली सरकारों शीर्ष पर हैं। इस मामले में मध्यप्रदेश नंबर एक पर है, तो राजस्थान, गोवा और बिहार दूसरे,तीसरे और चौथे पायदान पर। इसी सूची में गुजरात भी शामिल हैं जहां 2016 में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराधों के 1322 मामले दर्ज हुए।
इसके अलावा अनुसूचित जाति की महिलाओं पर बलात्कार के सबसे ज्यादा मामले जिन राज्यों में दर्ज किए गए हैं उनमें कर्नाटक और अविभाजित आंध्र प्रदेश को छोड़कर सभी राज्य बीजेपी शासित हैं। आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में अनुसूचित जाति की महिलाओँ पर बलात्कार के मामलों में 500 फीसदी की बढ़ोत्तरी के साथ उत्तराखंड पहले नंबर पर है तो 380 फीसदी की बढ़ोत्तरी के साथ गुजरात दूसरे नंबर पर। इसके अलावा इस सूची में महाराष्ट्र, हरियाणा और राजस्थान शामिल है।
राष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक 2016 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधिक मामलों में 2015 के मुकाबले 5.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2016 में कुल 40,801 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि 2015 में ये आंकड़ा 38,670 तक ही था। उत्तर प्रदेश में इस प्रकार के 10,426 आंकड़ें दर्ज हुए हैं, जो कि पूरे मामलों के 25.6 फीसदी हैं। इसके बाद बिहार का नंबर आता है, जहां लगभग 14 फीसदी अपराध हुए हैं। 2016 में मध्यप्रदेश में दलितों के खिलाफ 43.4 फीसदी संज्ञेय अपराध हुए हैं, जबकि राजस्थान में ये आंकड़ा 42 फीसदी है। गोवा में 36.7 फीसदी, 34.4 फीसदी बिहार में और 32.5 फीसदी गुजरात में। पूरे देश में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध का आंकड़ा 20.6 फीसदी था।
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