विकास का गुजरात मॉडल दरअसल गुजरात मडल है और यह रोजगारविहीन विकास मॉडल है। साथ ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि सिर्फ झूठ है। गुजरात चुनाव से ऐन पहले कई जाने-माने राजनीति शास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों और पत्रकारोँ और पूर्व केंद्रीय मंत्रियों ने मोदी सरकार और विकास के उनके गुजरात मॉडल की धज्जियां उड़ाई हैं। राजनीति शास्त्री क्रिस्टोफ जैफरलॉ ने इसे रोजगार विहीन मॉडल बताया है तो अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने इसे गुजरात मडल यानी गुजरात घपला करार दिया है। वहीं वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने कहा है कि झूठ मोदी सरकार की एकमात्र पहचान है।
दिल्ली में हुए एक लिटरेचर फेस्टिवल में जाने-माने पत्रकार और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने कहा है कि झूठ नरेंद्र मोदी सरकार की पहचान है और यह नौकरियां पैदा करने जैसे कई वादों को पूरा करने में नाकाम रही है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रह चुके शौरी ने देश के लोगों से सरकार के कार्यो को बारीकी से आंकने की अपील की।
दिल्ली में एक लिटरेचर फेस्टिवल में हिस्सा लेते हुए शौरी ने कहा कि वह कई उदाहरण दे सकते हैं जिसमें अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन देकर 'सरकार ने सिर्फ मुद्रा योजना द्वारा साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा नौकरियां पैदा करने का आंकड़ा दिया है।' उन्होंने कहा, "लेकिन, हमें इस पर आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए..झूठ सरकार की पहचान बन चुका है।"
शौरी ने कहा कि हमें इस बात की जांच नहीं करनी चाहिए कि एक व्यक्ति या नेता लंबे समय से क्या कर रहा है, बल्कि उसके कामों पर बारीकी से नजर रखनी चाहिए। महात्मा गांधी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, "गांधीजी कहते थे कि वह (व्यक्ति) क्या कर रहा यह मत देखिए, बल्कि उसके चरित्र को देखिए और आप उसके चरित्र से क्या सीख सकते हैं।"
उन्होंने कहा, "हमने दो बार गलती की, एक बार पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह के मामले में और दूसरी व नरेंद्र मोदी के मामले में चूक कर दी। वे वही बात कहते हैं जो उस क्षण के लिए सुविधाजनक होती है।" शौरी ने सरकार द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र को छोटा करने की भी कड़ी आलोचना की।
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वहीं विकासवादी अर्थशास्त्री और कार्यकर्ता ज्यां द्रेज ने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि तथाकथित ‘‘गुजरात मॉडल’’ किसी भी तरीके से कोई मॉडल है। उन्होंने सामाजिक सूचकों पर राज्य के पिछड़ेपन के संदर्भ में यह बातें रेखांकित कीं। लिटरेचर फेस्टिवल में द्रेज ने कहा कि, ‘आप विकास सूचकों की किसी भी रैंकिंग को देखिये, चाहे वह सामाजिक सूचक हों, मानव विकास सूचकांक हों, बाल विकास सूचकांक हों, बहुआयामी गरीबी सूचकांक हों या फिर योजना आयोग के सभी मानक गरीबी सूचकांक आदि, इन सभी पर गुजरात लगभग हमेशा बीच के आसपास ही रहा है।’
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा, जिसे अब मनरेगा कहा जाता है) के पहले संस्करण का मसौदा तैयार करने में मदद करने वाले द्रेज ने कहा कि यह स्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने से काफी पहले से थी और उसके बाद भी स्थिति यही रही है।
ज्यां द्रेज एक बार ‘गुजरात मडल’ शीर्षक से लेख लिख चुके हैं। उन्होंने याद करते हुए बताया कि दरअसल ‘गुजरात मॉडल’ नाम 2014 के लोकसभा चुनाव के आसपास गढ़ा गया और इसके पीछे सिर्फ राजनीतिक मकसद था। उन्होंने माना कि कुछ आर्थिक सूचक मानकों के लिहाज से गुजरात की स्थिति कहीं-कहीं बेहतर दिखती है, लेकिन इसके बावजूद सामाजिक विकास के संकेतकों को देखें तो यह मॉडल एक विरोधाभासी उदाहरण है।
द्रेज ने कहा कि केंद्र सरकार की नीतियों में निश्चित रूप से कोई कमी है और यह विकास के लिए निजी क्षेत्र पर जरूरत से ज्यादा निर्भर रहने का नतीजा है। ज्यां द्रेज ने हाल ही में मूडीज़ की तरफ से भारत की रेटिंग को बीएए2 से बढ़ाकर बीएए3 करने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें ऐसे इंडेक्स और रेटिंग्स की विश्वसनीयता पर हमेशा शक रहा है। उन्होंने कहा कि, “अगर ऐसी रेटिंग्स तय करने के तौर-तरीकों पर गौर करेंगे तो पता चलता है कि इसमें कुछ खास नहीं है, सिवाय इसके कि इन्हें कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया जाता है।”
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