गुजरात विधानसभा के लिए दूसरे और आखिरी दौर की वोटिंग शुरु होने वाली है। इसके लिए हर स्तर की आखिरी दौर तक जोर-आजमाइश की गई है। पहले दौर के मतदान के बाद जमीनी स्तर से मिल रही खबरों के चलते बीजेपी खेमे में घबराहट का माहौल है, ऐसे में दूसरे चरण के लिए बीजेपी और उसके मातृ संगठन आरएसएस ने नई रणनीति बनाई है।
सूत्रों के मुताबिक इस नीति के तहत मतदान की तारीख को लेकर भ्रम फैलाने से लेकर मतदाताओं को श्रेणीबद्ध करने तक के उपाय शामिल हैं। ये दोनों उपाय खासतौर से उन इलाकों और सीटों पर आजमाए जा रहे हैं, जहां बीजेपी खुद को कमजोर महसूस कर रही है।
सूत्रों का कहना है कि आरएसएस ने पूरे गुजरात में मोहल्ला स्तर तक के मतदाताओँ की विशेष सूची तैयार की है। इस सूची में मतदाताओँ को चार श्रेणियों, ए, बी, सी और डी में बांटा गया है। ए और बी श्रेणी में वे मतदाता हैं, जिनके वोट बीजेपी के पक्ष में जाने को लेकर संघ आश्वस्त है। सी श्रेणी में उन मतदाताओं को रखा गया है, जो बीजेपी से नाराज हैं, लेकिन किसी दूसरे पक्ष के साथ जाने को लेकर दुविधा में हैं। वहीं, डी श्रेणी में ऐसे मतदाताओं को शामिल किया गया है जो बीजेपी से बेहद नाराज हैं और खुलकर दूसरे दलों को समर्थन की बात कर रहे हैं।
इन श्रेणियों के आधार पर बीजेपी और संघ की योजना है कि सी और डी श्रेणी के मतदाता किसी हाल में पोलिंग बूथ तक न पहुंच पाएं।
अहमदाबाद में दलित शक्ति केंद्र और नवसर्जन संस्था से जुड़े मार्टिन मेकवॉन का कहना है कि 12 दिसंबर को प्रचार खत्म होने के बाद से बीजेपी और आरएसएस की टीमें विरोधी वोटों को भ्रमित करने में जुट गई हैं और उनका ध्यान दलित बस्तियों ज्यादा है।
उनका दावा है कि बीजेपी और आरएसएस धन बल का भी इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन इस बार गुजरात चुनाव फर्क है, क्योंकि इस बार बीजेपी से नाराज लोगों ने खुलकर अपने मत का प्रदर्शन किया है। ऐसे में बीजेपी ने ऐसे विरोधी मतदाताओँ की पहचान कर उन्हें पोलिंग बूथ से दूर रखने की योजना बनाई है।
बताया जाता है कि सी और डी श्रेणी वोटरों को पोलिंग बूथ से दूर रखने की संघ और बीजेपी की रणनीति सूरत और कच्छ के कई इलाकों में काफी हद तक कामयाब रही। पटेलों के गढ़ माने जाने वाले सूरत के वारछा में प्रचार के दौरान बीजेपी के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश नजर आया था। लेकिन इस बार वहां वोटिंग प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनावों से कम हो गया।
कुछ दिनों पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी समर्थक रहे मोहन लाल पटेल ने नवजीवन को बताया कि, “सूरत में मोदी जी ने भी अपना पूरा वजन रख दिया। ऐसे में पटेल बहुत इलाकों में विरोधी वोट को कम पड़े। सूरत की वारछा सीट पर 2012 के चुनावों में 69 फीसदी वोट पड़े थे, जबकि 9 दिसंबर को 63 फीसदी वोट पड़े। कामरेज में वोटिंग प्रतिशत 72 फीसदी से गिरकर 65 फीसदी हो गया और करंज में 64 फीसदी से इस साल गिरकर 56 फीसदी आ गया।”
वोटिंग प्रतिशत गिरने पर पटेल आरक्षण आंदोलन से जुड़े हुए धार्मिक मालवीय का कहना है कि, “बीजेपी ने अपना सारा जोर लगा दिया लेकिन फिर भी पटेल हमारे साथ ही रहे। हमारे बहुत से यूथ के नाम ही वोटर लिस्ट से गायब थे। ऐसे सैकड़ों वोटरों की सूची हमारे पास है, लेकिन हम हर समय लड़ाई नहीं कर सकते।”
इसके अलावा एक और रोचक घटना इस चुनाव के दौरान हुई, वह यह कि वोटिंग से एक-दो दिन पहले सौराष्ट्र जाने के लिए बड़ी संख्या में लग्जरी बसें तैयार की गईं और इसे वोटरों को भेजा गया। सूरत में वरिष्ठ पत्रकार फैसल बकीली का कहना है कि, “शादी-ब्याह के मौसम में लोगों को अपने गांव देहात भेजा गया। इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं कि ये बीजेपी विरोधी वोट सौराष्ट्र में पड़े और सूरत की प्रतिष्ठित सीट निकल जाए। ऐसा बीजेपी के पक्ष वालों की चाल हो सकती है। दूसरा तर्क यह है कि बीजेपी विरोधी खेमा अपने इलाके में वोटिंग को लेकर इतना आश्वस्त हो कि इन तमाम वोटरों को इन बसों से सौराष्ट्र में जीत को सुनिश्चित करने के लिए भेजा गया हो।“
बीजेपी और संघ ने एक दूसरा उपाय जो अपनाया, वह था वोटिंग की तारीख को लेकर भ्रम पैदा करना। अहमदाबाद में पिछले सप्ताह एक कार ड्राइवर ने कहा था कि वोटिंग की तारीख बदल गई है, जिसे 14 दिसंबर से बदलकर 15 कर दिया गया है। इस बारे में मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले राकेश कुशवाहा कहते हैं कि, “कुछ दिन पहले अहमदाबाद अमित शाह आया था न, तो वोटिंग की तारीख आगे हो गई। अमित शाह बहुत पावरफुल है मैडम।”
ऐसा ही भ्रम वडोदरा में भी देखने को मिला था, जहां सड़क किनारे भुने हुए ज्वार बेचने वाले दरबार समुदाय के हरीश ने बताया था कि “वोटिंग का दिन बदल गया है तो अब हम 16 को वोट डालेंगे।” दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों ही बीजेपी विरोधी थे और बकौल इनके पूरा मोहल्ला भी इस बार कांग्रेस को वोट देने जा रहा था।
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